1. THREE PHASE INDUCTION MOTOR Notes in Hindi

 

1. तीन-फेज इंडक्शन मोटर:

1.1 कार्य सिद्धांत:

एक तीन-चरणीय इंडक्शन मोटर विद्युत चुंबकीय प्रेरणा के सिद्धांत पर काम करता है। जब तीन-चरणीय करंट को स्टेटर की विंडिंग्स को प्रदान किया जाता है, तो यह एक घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह घुमंतू क्षेत्र रोटर में प्रेरित वोल्टेज उत्पन्न करता है, जो अपने चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करता है। स्टेटर और रोटर के चुंबकीय क्षेत्रों के बीच परस्पर क्रिया से टॉर्क उत्पन्न होता है, जिससे रोटर घुमने लगता है।

1.2 घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण:

तीन-चरणीय करंट जो एक-दूसरे से 120 डिग्री अलग होते हैं, घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं। यह तीन-चरणीय करंट एक ऐसा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जो स्थान में एक निश्चित गति से घूमता है, जिसे सिंक्रोनस स्पीड कहा जाता है। यह घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र की गति स्टेटर के आपूर्ति करंट की आवृत्ति और मोटर के पोल की संख्या पर निर्भर करती है।

1.3 सिंक्रोनस स्पीड:

सिंक्रोनस स्पीड वह गति होती है जिस पर स्टेटर द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र घूमता है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा गणना किया जाता है:

Ns=120×fPN_s = \frac{120 \times f}{P}

जहाँ:

  • NsN_s = सिंक्रोनस स्पीड (RPM में)
  • ff = आपूर्ति आवृत्ति (Hz में)
  • PP = मोटर के पोल की संख्या

सिंक्रोनस स्पीड स्थिर होती है और यह केवल आपूर्ति की आवृत्ति और पोल की संख्या पर निर्भर करती है।

1.4 रोटर:

रोटर मोटर का घूमने वाला हिस्सा होता है। यह स्टेटर के अंदर स्थित होता है और घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र से प्रेरित विद्युत-प्रेरण (emf) प्राप्त करता है। रोटर दो प्रकार का हो सकता है:

  • स्क्वायरल केज रोटर: यह सबसे सामान्य प्रकार होता है, जिसमें तांबा या एल्युमिनियम की सलाखों का एक साधारण ढांचा होता है जो दोनों छोर पर जोड़ा जाता है।
  • स्लिप रिंग रोटर: इसमें बाहरी ब्रश और रिंग होते हैं, जो रोटर के प्रतिरोध को नियंत्रित करने के लिए बाहरी प्रतिरोध जोड़ने की अनुमति देते हैं।

1.5 स्लिप:

स्लिप वह अंतर है जो सिंक्रोनस स्पीड और रोटर की वास्तविक गति के बीच होता है, जिसे सिंक्रोनस स्पीड के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है:

Slip=NsNrNs×100Slip = \frac{N_s - N_r}{N_s} \times 100

जहाँ:

  • NsN_s = सिंक्रोनस स्पीड
  • NrN_r = रोटर की गति

स्लिप यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि रोटर और घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र के बीच सापेक्ष गति हो, जिससे प्रेरित विद्युतधारा उत्पन्न हो और टॉर्क उत्पन्न हो।

1.6 तीन-फेज इंडक्शन मोटर का निर्माण:

  • 1.6.1 स्क्वायरल केज इंडक्शन मोटर: स्क्वायरल केज रोटर में लैमिनेटेड आयरन कोर होते हैं जिनमें संचालन सामग्री (तांबा या एल्युमिनियम) की सलाखें स्लॉट्स में डाली जाती हैं। इन सलाखों के दोनों छोर पर रिंग्स जोड़कर एक पिंजरे जैसा संरचना बनती है। यह सबसे अधिक उपयोग होने वाला प्रकार होता है क्योंकि यह साधारण और मजबूत होता है।
  • 1.6.2 स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर: इस रोटर में संचालन सलाखों की बजाय विंडिंग्स होती हैं। ये विंडिंग्स बाहरी प्रतिरोध से जुड़ी होती हैं, जो मोटर के स्टार्टिंग करंट और टॉर्क को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।

1.7 रोटर की गुणताएँ:

  • 1.7.1 आवृत्ति: रोटर करंट की आवृत्ति वह होती है जो स्टेटर की आपूर्ति आवृत्ति और रोटर की गति के बीच अंतर से उत्पन्न होती है। रोटर करंट की आवृत्ति स्टेटर आवृत्ति से कम होती है और इसे निम्नलिखित तरीके से व्यक्त किया जाता है:

    fr=f×(1s)f_r = f \times (1 - s)

    जहाँ frf_r रोटर आवृत्ति है और ss स्लिप है।

  • 1.7.2 प्रेरण विद्युत (Induction emf): प्रेरण विद्युत वह वोल्टेज होती है जो रोटर में स्टेटर के घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र के कारण उत्पन्न होती है। यह विद्युत रोटर में प्रेरित धारा उत्पन्न करती है, जो चुंबकीय क्षेत्र के साथ परस्पर क्रिया कर टॉर्क उत्पन्न करती है।

  • 1.7.3 पावर फैक्टर (शुरुआत और चालू स्थिति में): शुरुआत में, पावर फैक्टर कम होता है क्योंकि स्लिप अधिक होता है और मोटर द्वारा खींची जाने वाली करंट अधिक होती है। जब मोटर चलने की स्थिति में आती है, तो पावर फैक्टर सुधारता है क्योंकि स्लिप कम हो जाता है और मोटर सिंक्रोनस स्पीड के पास पहुंच जाती है।

1.8 टॉर्क और स्लिप (गति) के गुणांक:

  • सिंक्रोनस स्पीड पर, स्लिप शून्य होता है, और कोई टॉर्क उत्पन्न नहीं होता।
  • जैसे-जैसे मोटर गति पकड़ती है और स्लिप बढ़ता है, टॉर्क बढ़ता है। टॉर्क अपनी अधिकतम मात्रा तक पहुंचता है जब स्लिप लगभग 0.2-0.3 (यानी रोटर गति सिंक्रोनस स्पीड के लगभग 80-70%) होता है।
  • उच्च स्लिप पर (जब मोटर धीमी गति से चल रही होती है), टॉर्क फिर से घटने लगता है।

1.9 टॉर्क: प्रारंभिक, पूर्ण लोड और अधिकतम, और उनके बीच संबंध:

  • प्रारंभिक टॉर्क: यह वह टॉर्क होता है जो मोटर को पहली बार चालू करते समय उत्पन्न होता है और यह आम तौर पर स्क्वायरल केज मोटरों के लिए उच्च होता है।
  • पूर्ण लोड टॉर्क: यह वह टॉर्क होता है जो मोटर अपने पूर्ण लोड पर चलने पर उत्पन्न करता है, और इसमें स्लिप सामान्य रूप से कम होता है।
  • अधिकतम टॉर्क: यह वह अधिकतम टॉर्क होता है जिसे मोटर उत्पन्न कर सकती है, जो आमतौर पर स्लिप के लगभग 0.2-0.3 पर होता है।

इन टॉर्कों के बीच संबंध यह है:

  • प्रारंभिक टॉर्क पूर्ण लोड टॉर्क से अधिक होता है, विशेष रूप से स्क्वायरल केज मोटरों में।
  • अधिकतम टॉर्क एक विशिष्ट स्लिप पर उत्पन्न होता है, और उसके बाद टॉर्क घटने लगता है।

1.10 इंडक्शन मोटर को एक सामान्यीकृत ट्रांसफॉर्मर के रूप में देखना और फेजर डायग्राम:

इंडक्शन मोटर को एक सामान्यीकृत ट्रांसफॉर्मर के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ स्टेटर प्राथमिक (प्राथमिक) और रोटर द्वितीयक (सेकेंडरी) होता है। रोटर में ऊर्जा का रूपांतरण घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र के साथ प्रेरित वोल्टेज से होता है। फेजर डायग्राम यह दिखाने में मदद करता है कि स्टेटर करंट, रोटर करंट, और प्रेरित वोल्टेज के बीच का संबंध क्या है।

1.11 स्टार्टर:

  • 1.11.1 आवश्यकता और प्रकार: एक स्टार्टर की आवश्यकता होती है ताकि प्रारंभिक करंट को सीमित किया जा सके, क्योंकि प्रारंभिक करंट पूर्ण-लोड करंट से कई गुना अधिक हो सकता है। बिना स्टार्टर के, यह उच्च प्रारंभिक करंट मोटर या विद्युत आपूर्ति को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • 1.11.2 स्टेटर प्रतिरोध: इस प्रकार के स्टार्टर में स्टेटर की विंडिंग्स में प्रतिरोध जोड़ा जाता है ताकि प्रारंभिक करंट को सीमित किया जा सके। यह छोटे मोटरों के लिए आमतौर पर उपयोग किया जाता है।
  • 1.11.3 ऑटो ट्रांसफॉर्मर: यह स्टार्टर मोटर को शुरू करते समय वोल्टेज को कम करता है, जिससे प्रारंभिक करंट कम हो जाता है। एक बार मोटर एक निश्चित गति पर पहुँच जाती है, तब पूरी वोल्टेज प्रदान की जाती है।
  • 1.11.4 स्टार-डेल्टा: इस स्टार्टर में शुरुआत में स्टार संयोजन में मोटर की विंडिंग्स जोड़ी जाती हैं (जिससे वोल्टेज और करंट कम होता है), और फिर जब मोटर पूरी गति तक पहुँच जाती है, तब डेल्टा संयोजन में स्विच किया जाता है।
  • 1.11.5 रोटर प्रतिरोध: इस स्टार्टर में रोटर सर्किट में अतिरिक्त प्रतिरोध जोड़ा जाता है ताकि प्रारंभिक करंट और टॉर्क को नियंत्रित किया जा सके।

1.12 तीन-फेज इंडक्शन मोटरों का रखरखाव:

नियमित रखरखाव मोटर के विश्वसनीय संचालन को सुनिश्चित करता है। सामान्य अभ्यासों में शामिल हैं:

  • इन्सुलेशन प्रतिरोध की जाँच ताकि विंडिंग्स में खराबी न हो।
  • कंपन और शोर की निगरानी ताकि यांत्रिक समस्याओं का पता चल सके।
  • बेयरिंग्स को लुब्रिकेट करना ताकि घिसावट कम हो।
  • हीटिंग को रोकने के लिए उचित कूलिंग सुनिश्चित करना।
  • वेंटिलेशन के लिए वायु प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए एयर वेंट्स की सफाई।

यह रखरखाव मोटर के जीवन को बढ़ाने और इसकी कुशलता को बनाए रखने में मदद करता है।

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