Unit 1 Notes in Hindi, FEEE 2004, Polytechnic 2nd Semester

 

इलेक्ट्रॉनिक घटक और संकेतों का अवलोकन


1.1 पैसिव घटक और उनके अनुप्रयोग

1.1.1 रेसिस्टर्स (Resistors), रेसिस्टर्स के प्रकार

रेसिस्टर्स एक पैसिव घटक है जिसका उपयोग विद्युत परिपथों में विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। यह ओहम के नियम का पालन करता है: V=IRV = IR, जहाँ VV वोल्टेज, II करंट, और RR प्रतिरोध होता है। रेसिस्टर्स का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जैसे कि करंट को सीमित करना, वोल्टेज को विभाजित करना, और तापीय ऊर्जा को अवशोषित करना।

रेसिस्टर्स के प्रकार:

  1. फिक्स्ड रेसिस्टर्स: इनमें प्रतिरोध का मान निश्चित होता है। कुछ सामान्य प्रकार हैं:

    • कार्बन कंपोज़िशन रेसिस्टर: सस्ते होते हैं, लेकिन कम स्थिरता और कम परिशुद्धता होती है। छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग होते हैं।
    • मेटल ऑक्साइड रेसिस्टर: उच्च तापमान सहनशीलता और अधिक स्थिरता प्रदान करते हैं। पावर सप्लाई और उच्च तापमान वाले अनुप्रयोगों में उपयोग होते हैं।
    • वायर-वाउंड रेसिस्टर: इनका निर्माण धातु की तार लपेटकर किया जाता है, जो उच्च स्थिरता और उच्च परिशुद्धता प्रदान करता है। इन्हें मापने वाले उपकरणों में उपयोग किया जाता है।
  2. वेरिएबल रेसिस्टर्स (वॉटेज कंट्रोल): इनका प्रतिरोध मान बदलता रहता है।

    • पोटेंशियोमीटर: तीन टर्मिनल होते हैं, और इसका उपयोग वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, वॉल्यूम नियंत्रण।
    • रियोस्टेट: दो टर्मिनल होते हैं, और इसका उपयोग करंट को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जैसे हीटिंग तत्वों में।

1.1.2 कैपेसिटर्स (Capacitors), कैपेसिटर के प्रकार

कैपेसिटर एक इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो दो कंडक्टर प्लेटों के बीच विद्युत चार्ज को स्टोर करता है। इसके पास एक निश्चित कैपेसिटेंस होती है, जो उसकी चार्ज स्टोर करने की क्षमता को दर्शाती है। जब वोल्टेज लागू होता है, तो कैपेसिटर चार्ज होने लगता है और उसके बाद करंट के प्रवाह को रोकता है।

कैपेसिटर के प्रकार:

  1. सिरेमिक कैपेसिटर: छोटे आकार के होते हैं और सस्ते होते हैं। ये सामान्यत: उच्च आवृत्तियों पर काम करते हैं।
  2. इलेक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर: इनकी कैपेसिटेंस उच्च होती है, और ये पोलराइज्ड होते हैं (एक सकारात्मक और एक नकारात्मक टर्मिनल होता है)।
  3. टांटलम कैपेसिटर: इनकी कैपेसिटेंस उच्च होती है और ये छोटे होते हैं। ये भी पोलराइज्ड होते हैं।

कैपेसिटर के अनुप्रयोग:

  • एनर्जी स्टोरेज: करंट को ब्लॉक करते हैं और स्टोर की गई ऊर्जा को बाद में छोड़ते हैं।
  • फिल्टरिंग: पावर सप्लाई में फ्लक्चुएशन को स्मूथ करने के लिए उपयोग होते हैं।
  • कपलिंग और डिकपलिंग: यह AC सिग्नल्स को एक परिपथ से दूसरे परिपथ में जोड़ने और DC सिग्नल्स को ब्लॉक करने के लिए उपयोग होते हैं।

1.1.3 इंडक्टर्स (Inductors), इंडक्टर के प्रकार

इंडक्टर एक इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो विद्युत ऊर्जा को चुंबकीय क्षेत्र के रूप में स्टोर करता है। जब करंट उस परिपथ में प्रवाहित होता है, तो इंडक्टर के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इंडक्टर का प्रतिरोध करंट के बदलाव के प्रति होता है।

इंडक्टर के प्रकार:

  1. एयर कोर इंडक्टर: इनमें कोई चुंबकीय कोर नहीं होता है और ये उच्च आवृत्तियों पर काम करते हैं। उदाहरण: रेडियो सर्किट्स।
  2. आयरन कोर इंडक्टर: इनमें आयरन कोर का उपयोग किया जाता है, जिससे इनकी इंडक्टेंस बढ़ जाती है। उदाहरण: पावर ट्रांसफॉर्मर्स।
  3. टोरोइडल इंडक्टर: इनका आकार डोनट जैसा होता है और यह EMI को कम करते हैं। उदाहरण: पावर सप्लाई सर्किट्स।

इंडक्टर के अनुप्रयोग:

  • एनर्जी स्टोरेज: चुंबकीय क्षेत्र के रूप में ऊर्जा को स्टोर करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार छोड़ते हैं।
  • फिल्टरिंग: इंडक्टर्स को कैपेसिटर्स के साथ मिलाकर विभिन्न आवृत्तियों को फिल्टर करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • ट्रांसफॉर्मर्स: इनका उपयोग वोल्टेज को बदलने के लिए किया जाता है।

1.2 प्रकार की वेवफॉर्म्स

1.2.1 साइनसॉइडल वेवफॉर्म (Sinusoidal Waveform)

साइनसॉइडल वेवफॉर्म एक नियमित, स्मूथ और आवर्ती संकेत होता है। इसे आमतौर पर एसी (AC) सिग्नल के रूप में देखा जाता है, जैसे विद्युत शक्ति प्रणाली में। इसका गणितीय रूप होता है:

v(t)=Vmsin(wt+ϕ)v(t) = V_m \sin(wt + \phi)

यहां,

  • VmV_m अम्प्लिट्यूड (मैक्सिमम वोल्टेज) है।
  • w=2πfw = 2\pi f कोणीय आवृत्ति है, जहाँ ff आवृत्ति है।
  • tt समय है।
  • ϕ\phi फेज शिफ्ट है।

साइनसॉइडल वेव के गुण:

  1. अम्प्लिट्यूड (V_m): अधिकतम वोल्टेज का मान।
  2. आवृत्ति (f): प्रति सेकंड के चक्रों की संख्या।
  3. पीरियड (T): एक पूर्ण चक्र को पूरा करने में लगने वाला समय, T=1fT = \frac{1}{f}
  4. फेज़ शिफ्ट: वेव के स्थान में समय परिवर्तन।

1.2.2 नॉन-साइनसॉइडल एसी वेवफॉर्म्स (Non-Sinusoidal Alternating Waveforms)

नॉन-साइनसॉइडल वेवफॉर्म्स वेवफॉर्म्स होते हैं जो साइनसॉइडल वेव की तरह स्मूथ नहीं होते। इनमें त्रिकोणीय, आयताकार और स्क्वायर वेवफॉर्म्स शामिल हैं। ये वेवफॉर्म्स अक्सर डिजिटल और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग होते हैं।

  • त्रिकोणीय वेव (Triangular Wave): एक वेव जो ऊपर और नीचे एक समान गति से बढ़ती और घटती है।
  • आयताकार वेव (Rectangular Wave): एक वेव जिसमें उच्‍च और निम्न वोल्टेज के स्तर के बीच तीव्र संक्रमण होते हैं।
  • स्क्वायर वेव (Square Wave): एक वेव जो केवल दो स्तरों (उच्च और निम्न) के बीच बदलती है।

महत्वपूर्ण अभ्यास प्रश्न (MCQs)

  1. रेसिस्टर्स का कार्य क्या होता है?

    • a) विद्युत धारा को नियंत्रित करना
    • b) करंट को बढ़ाना
    • c) विद्युत ऊर्जा को स्टोर करना
    • d) चुंबकीय क्षेत्र बनाना
      उत्तर: a) विद्युत धारा को नियंत्रित करना
  2. कैपेसिटर का कार्य क्या है?

    • a) करंट को स्टोर करना
    • b) ऊर्जा स्टोर करना और DC को ब्लॉक करना
    • c) चुंबकीय क्षेत्र बनाना
    • d) करंट को बढ़ाना
      उत्तर: b) ऊर्जा स्टोर करना और DC को ब्लॉक करना
  3. इंडक्टर किसमें ऊर्जा स्टोर करता है?

    • a) विद्युत क्षेत्र
    • b) चुंबकीय क्षेत्र
    • c) वोल्टेज
    • d) तापीय ऊर्जा
      उत्तर: b) चुंबकीय क्षेत्र
  4. साइनसॉइडल वेवफॉर्म के कौन से गुण हैं?

    • a) अनियमित
    • b) स्मूथ और आवर्ती
    • c) केवल दो स्तर
    • d) कोई भी नहीं
      उत्तर: b) स्मूथ और आवर्ती
  5. नॉन-साइनसॉइडल वेवफॉर्म्स का उदाहरण कौन सा है?

    • a) त्रिकोणीय वेव
    • b) साइनसॉइडल वेव
    • c) टांटलम कैपेसिटर
    • d) एयर कोर इंडक्टर
      उत्तर: a) त्रिकोणीय वेव

 महत्वपूर्ण अभ्यास प्रश्नों के साथ पूर्ण समाधान


1. रेसिस्टर्स (Resistors) के काम और प्रकारों को समझाइए। प्रत्येक प्रकार का उपयोग कहां किया जाता है, यह बताइए।

उत्तर:

रेसिस्टर एक पैसिव इलेक्ट्रॉनिक घटक है, जो विद्युत प्रवाह को सीमित करता है। यह ओहम के नियम (V=IRV = IR) का पालन करता है, जहाँ VV वोल्टेज, II धारा, और RR प्रतिरोध होता है।

रेसिस्टर्स के प्रकार:

  1. फिक्स्ड रेसिस्टर्स:

    • कार्बन कंपोज़िशन रेसिस्टर: कार्बन पाउडर को एक बाइंडर के साथ मिलाकर बनाया जाता है। ये रेसिस्टर्स विभिन्न प्रतिरोध मानों में होते हैं और सामान्यत: निम्न-परिशुद्धता अनुप्रयोगों में उपयोग होते हैं।

      • उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में करंट लिमिटिंग के लिए उपयोग होते हैं।
    • मेटल ऑक्साइड रेसिस्टर: मेटल ऑक्साइड फिल्म से बने होते हैं, जो उच्च स्थिरता प्रदान करते हैं और उच्च तापमान सहन कर सकते हैं।

      • उदाहरण: पावर सप्लाई में जहाँ स्थिरता महत्वपूर्ण होती है।
    • वायर-वाउंड रेसिस्टर: एक इंसुलेटिंग कोर के चारों ओर रेसिस्टिव मटेरियल (अधिकतर धातु) की तार लपेट कर बने होते हैं। इन रेसिस्टर्स की परिशुद्धता अधिक होती है।

      • उदाहरण: प्रिसीजन माप उपकरणों में उपयोग होते हैं।
  2. वेरिएबल रेसिस्टर्स:

    • पोटेंशियोमीटर: एक तीन-टर्मिनल रेसिस्टर है, जिसमें स्लाइडिंग कांटैक्ट होता है, जिससे प्रतिरोध को समायोजित किया जा सकता है। इसे वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है, जैसे ऑडियो डिवाइस में वॉल्यूम समायोजन।
      • उदाहरण: ऑडियो एम्पलीफायरों में वॉल्यूम नियंत्रण।
    • रियोस्टेट: एक दो-टर्मिनल वेरिएबल रेसिस्टर है, जो करंट को नियंत्रित करने के लिए उपयोग होता है।
      • उदाहरण: डिमर स्विचेस या हीटिंग एलिमेंट्स में करंट को नियंत्रित करने के लिए।

रेसिस्टर्स के अनुप्रयोग:

  • वोल्टेज डिवाइडर: दो रेसिस्टर्स को सीरीज़ में जोड़ने से इनपुट वोल्टेज को छोटे वोल्टेजों में विभाजित किया जा सकता है।
  • करंट लिमिटिंग: रेसिस्टर्स का उपयोग घटकों को अत्यधिक करंट से बचाने के लिए किया जाता है।

2. साइनसॉइडल वेवफॉर्म को परिभाषित कीजिए। इसके गुणों को गणितीय रूप में समझाइए।

उत्तर:

साइनसॉइडल वेवफॉर्म एक प्रकार की वेवफॉर्म है, जो एक स्मूद और नियमित आवर्ती ओस्सीलेशन (द्वंद्व) के रूप में होती है। यह सबसे सामान्यतः एसी पावर सिस्टम्स और संचार प्रणालियों में उपयोग होती है।

गणितीय अभिव्यक्ति: साइनसॉइडल वोल्टेज सिग्नल का समीकरण इस प्रकार होता है:

v(t)=Vmsin(wt+ϕ)v(t) = V_m \sin(wt + \phi)

जहां:

  • VmV_m अम्प्लिट्यूड (अधिकतम वोल्टेज) है।
  • ww कोणीय आवृत्ति है, w=2πfw = 2 \pi f, जहां ff आवृत्ति (Hz) है।
  • tt समय है।
  • ϕ\phi फेज शिफ्ट है (जो रेडियंस में मापी जाती है)।

साइनसॉइडल वेव के गुण:

  1. अम्प्लिट्यूड (V_m): यह वेव का अधिकतम मान है।
  2. आवृत्ति (f): यह उस वेव द्वारा एक सेकंड में किए गए पूर्ण चक्रों की संख्या है, जिसे हर्ट्ज (Hz) में मापा जाता है।
  3. पीरियड (T): यह एक चक्र पूरा करने में लगने वाला समय है, T=1fT = \frac{1}{f}
  4. फेज़: यह वेव के उत्पत्ति के स्थान पर समय परिवर्तन को दर्शाता है।

वेवफॉर्म उदाहरण:

  • एक 50Hz साइनसॉइडल वेव का पीरियड T=150=20T = \frac{1}{50} = 20 मिलीसेकंड होगा।
  • यह सिग्नल +VmV_m और -VmV_m के बीच दोलन करेगा।

3. विद्युत परिपथों में कैपेसिटर्स (Capacitors) का कार्य बताइए। इसके प्रकार और उपयोग क्या हैं?

उत्तर:

कैपेसिटर एक पैसिव इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो दो कंडक्टर प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र के रूप में ऊर्जा स्टोर करता है। इसका स्टोर करने की क्षमता फैराड (F) में मापी जाती है।

कैपेसिटर का कार्य:

  • जब एक वोल्टेज कैपेसिटर के दोनों टर्मिनलों पर लागू होता है, तो वह चार्ज हो जाता है और ऊर्जा स्टोर करता है। एक बार पूरा चार्ज होने के बाद, यह सीधे करंट (DC) को ब्लॉक करता है, जबकि आवर्तित करंट (AC) को पारित करता है।
  • कैपेसिटेंस (C) वह गुण है जो कैपेसिटर की चार्ज स्टोर करने की क्षमता को दर्शाता है। यह निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त होता है: Q=CVQ = C \cdot Vजहां:
    • QQ वह चार्ज है जो स्टोर होता है,
    • CC कैपेसिटेंस है,
    • VV लागू वोल्टेज है।

कैपेसिटर्स के प्रकार:

  1. सिरेमिक कैपेसिटर:

    • ये छोटे इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में उपयोग होते हैं क्योंकि ये छोटे आकार के और सस्ते होते हैं।
    • उदाहरण: फिल्टर्स, डिकपलिंग और टाइमिंग सर्किट्स में उपयोग होते हैं।
  2. इलेक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर:

    • इनकी बड़ी कैपेसिटेंस होती है और ये पोलराइज्ड होते हैं, अर्थात इनके पास सकारात्मक और नकारात्मक टर्मिनल होते हैं।
    • उदाहरण: पावर सप्लाई फिल्टरों और ऑडियो अनुप्रयोगों में उपयोग होते हैं।
  3. टांटलम कैपेसिटर:

    • इनकी कैपेसिटेंस उच्च होती है और आकार छोटे होते हैं, यह भी पोलराइज्ड होते हैं।
    • उदाहरण: उच्च-आवृत्ति सर्किट्स और पोर्टेबल उपकरणों में उपयोग होते हैं।

कैपेसिटर्स के अनुप्रयोग:

  1. ऊर्जा भंडारण: कैपेसिटर ऊर्जा को स्टोर करता है और जब आवश्यक होता है, तो इसे रिलीज़ करता है।
  2. फिल्टरिंग: पावर सप्लाई में, कैपेसिटर वोल्टेज के उतार-चढ़ाव को स्मूथ करता है (रिपल्स को हटाना)।
  3. कपलिंग और डिकपलिंग: कैपेसिटर एक चरण से दूसरे चरण में AC सिग्नल को कपल करता है, जबकि DC सिग्नल को ब्लॉक करता है।

4. विद्युत परिपथों में इंडक्टेंस (Inductance) का महत्व बताइए। इसके प्रकार और अनुप्रयोगों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:

इंडक्टर एक पैसिव इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो करंट प्रवाह के दौरान चुंबकीय क्षेत्र के रूप में ऊर्जा स्टोर करता है। इंडक्टेंस वह गुण है, जो इंडक्टर के द्वारा करंट प्रवाह में बदलाव का विरोध करता है।

इंडक्टेंस का सूत्र: इंडक्टर पर उत्पन्न वोल्टेज को निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त किया जाता है:

VL=LdidtV_L = L \cdot \frac{di}{dt}

जहां:

  • LL इंडक्टेंस है (हेनरी में),
  • didt\frac{di}{dt} करंट में परिवर्तन की दर है।

इंडक्टर्स के प्रकार:

  1. एयर कोर इंडक्टर:

    • इसमें चुंबकीय कोर नहीं होता है, जिससे ये उच्च आवृत्ति अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त होते हैं।
    • उदाहरण: रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सर्किट्स में उपयोग होते हैं।
  2. आयरन कोर इंडक्टर:

    • इनका कोर आयरन या किसी अन्य चुंबकीय सामग्री का होता है, जो उच्च इंडक्टेंस प्रदान करता है।
    • उदाहरण: पावर ट्रांसफॉर्मर्स और निम्न आवृत्ति सर्किट्स में उपयोग होते हैं।
  3. टोरोइडल इंडक्टर:

    • यह डोनट के आकार में होते हैं और ये कम इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस (EMI) उत्पन्न करते हैं।
    • उदाहरण: पावर सप्लाई सर्किट्स में और इंडक्टर फिल्टर्स में उपयोग होते हैं।

इंडक्टर्स के अनुप्रयोग:

  1. ऊर्जा भंडारण: इंडक्टर चुंबकीय क्षेत्र में ऊर्जा स्टोर करते हैं और जब करंट कम होता है, तो इसे छोड़ते हैं।
  2. फिल्टरिंग: इंडक्टर्स का उपयोग कैपेसिटर्स के साथ मिलकर फ्रीक्वेंसी को फिल्टर करने में किया जाता है।
  3. ट्रांसफॉर्मर्स: इंडक्टर्स का उपयोग ट्रांसफॉर्मर्स में किया जाता है, जो एसी वोल्टेज को बढ़ाने या घटाने के लिए उपयोग होते हैं।

5. साइनसॉइडल वेवफॉर्म और स्क्वायर वेवफॉर्म में अंतर बताइए। इन्हें कहां उपयोग किया जाता है?

उत्तर:

साइनसॉइडल वेवफॉर्म और स्क्वायर वेवफॉर्म दोनों आवर्ती संकेत होते हैं, लेकिन इनका रूप, आवृत्ति, और उपयोग अलग होते हैं।

साइनसॉइडल वेवफॉर्म:

  • साइनसॉइडल वेवफॉर्म एक स्मूथ और निरंतर दोलन होती है, जिसमें नियमित आवृत्ति और अम्प्लिट्यूड होती है। इसे इस प्रकार व्यक्त किया जाता है: v(t)=Vmsin(wt)v(t) = V_m \sin(wt)
    • गुण:
      • स्मूथ दोलन।
      • एसी पावर ट्रांसमिशन में उपयोग होता है।
      • प्राकृतिक घटनाओं जैसे ध्वनि तरंगों और प्रकाश तरंगों का प्रतिनिधित्व करता है।

स्क्वायर वेवफॉर्म:

  • स्क्वायर वेवफॉर्म दो स्पष्ट स्तरों (उच्च और निम्न) के बीच बदलती है, जिनकी अवधि समान होती है। v(t)={Vm,जब 0t<T/2Vm,जब T/2t<Tv(t) = \begin{cases} V_m, & \text{जब } 0 \leq t < T/2 \\ -V_m, & \text{जब } T/2 \leq t < T \end{cases}
    • गुण:
      • उच्च और निम्न के बीच अचानक परिवर्तन।
      • डिजिटल सर्किट्स और घड़ी संकेतों में उपयोग होती है।
      • स्क्वायर वेव में केवल विषम हार्मोनिक्स होते हैं।

अंतर:

  1. वेव का रूप: साइनसॉइडल में स्मूथ वक्राकार रूप होता है; स्क्वायर में तीव्र संक्रमण होते हैं।
  2. हार्मोनिक्स: साइनसॉइडल वेव में केवल मूल आवृत्ति होती है; स्क्वायर वेव में विषम हार्मोनिक्स होते हैं।
  3. अनुप्रयोग:
    • साइनसॉइडल: एसी पावर सिस्टम्स, ऑडियो सिग्नल्स, और संचार में उपयोग होता है।
    • स्क्वायर वेव: डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स, घड़ी संकेत, पल्स चौड़ाई मॉडुलेशन (PWM), और समय परिपथों में उपयोग होती है।

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1 Comments

  1. मैम धन्यवाद 🙏🙏

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