2. TRANSMISSION LINE PARAMETERS AND PERFORMANCE in Hindi

 

2. ट्रांसमिशन लाइन पैरामीटर और प्रदर्शन

2.1 लाइन पैरामीटर: R, L और C के सिद्धांत और लाइनों के प्रकार

ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण सामान्यत: कंडक्टर (जैसे तांबा या एल्युमिनियम) से होता है, और इनमें कुछ विशिष्ट लाइन पैरामीटर होते हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि यह लाइन विद्युत ऊर्जा को कैसे ट्रांसमिट करती है।

लाइन के मुख्य पैरामीटर होते हैं:

  1. प्रतिरोध (R):

    • प्रतिरोध कंडक्टर में वर्तमान के प्रवाह का विरोध होता है।
    • यह कंडक्टर के सामग्री, लंबाई और क्रॉस-सेक्शनल क्षेत्रफल पर निर्भर करता है।
    • प्रतिरोध के कारण बिजली की हानि होती है, जो गर्मी के रूप में प्रकट होती है।
    • समीकरण: R=ρLAR = \rho \frac{L}{A}
      • ρ\rho = सामग्री का प्रतिरोधकता
      • LL = कंडक्टर की लंबाई
      • AA = कंडक्टर का क्रॉस-सेक्शनल क्षेत्रफल
  2. Inductance (L):

    • Inductance उस चुंबकीय क्षेत्र के कारण होती है जो कंडक्टर में विद्युत धारा के प्रवाह से उत्पन्न होती है।
    • यह कंडक्टरों के बीच की दूरी, कंडक्टरों की संख्या, और ट्रांसमिशन लाइन की भौतिक विशेषताओं पर निर्भर करती है।
    • समीकरण: L=μ0μr2πln(Dr)L = \frac{\mu_0 \mu_r}{2\pi} \ln \left(\frac{D}{r}\right)
      • μ0\mu_0 = मुक्त स्थान की चुंबकीय पारगम्यता
      • μr\mu_r = कंडक्टर सामग्री की सापेक्ष चुंबकीय पारगम्यता
      • DD = कंडक्टरों के बीच की दूरी
      • rr = कंडक्टर का त्रिज्या
  3. संवेदन (C):

    • संवेदन तब उत्पन्न होती है जब ट्रांसमिशन लाइन के कंडक्टरों के बीच विद्युत क्षेत्र बनता है। जब लाइन को ऊर्जा दी जाती है, तो कंडक्टर चार्ज स्टोर करते हैं, जिससे संवेदन उत्पन्न होती है।
    • यह कंडक्टरों की भौतिक संरचना, कंडक्टरों के बीच की दूरी और आसपास के माध्यम (वायु) के गुणों पर निर्भर करती है।
    • समीकरण: C=2πϵln(Dr)​
      • ϵ\epsilon = माध्यम की प्रवृत्तिपरकता
      • DD = कंडक्टरों के बीच की दूरी
      • rr = कंडक्टर का त्रिज्या

लाइन के प्रकार:

  1. शॉर्ट लाइन: ऐसी लाइनों का लंबाई 50 किमी तक होता है। शॉर्ट लाइनों में, प्रेरण और संवेदन का प्रभाव न्यूनतम होता है, इस कारण इन्हें सरल प्रतिरोध के रूप में माना जा सकता है।
  2. मीडियम लाइन: इन लाइनों की लंबाई 50 किमी से 200 किमी के बीच होती है। इस लंबाई में प्रेरण और संवेदन दोनों का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
  3. लॉन्ग लाइन: ऐसी लाइनों की लंबाई 200 किमी से अधिक होती है, जहां प्रतिरोध, प्रेरण, और संवेदन तीनों को ध्यान में रखना पड़ता है। लंबी लाइनों में वोल्टेज ड्रॉप और जटिल मॉडल की आवश्यकता होती है।

2.2 शॉर्ट लाइन का प्रदर्शन: दक्षता, रेगुलेटर और इसका व्युत्पन्न, पावर फैक्टर का प्रभाव, विभिन्न पावर फैक्टर के लिए वेक्टर आरेख

  1. शॉर्ट लाइन का प्रदर्शन:

    • शॉर्ट लाइन को आमतौर पर 50 किमी तक की लंबाई वाली लाइन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • शॉर्ट लाइनों में श्रृंखला प्रतिबाधा (R + jX) का मुख्य प्रभाव होता है, जबकि शंट एडमिटेंस (संवेदन) को नजरअंदाज किया जा सकता है क्योंकि इसका प्रभाव न्यूनतम होता है।
    • शॉर्ट लाइनों का प्रदर्शन आमतौर पर निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर मूल्यांकित किया जाता है:
      • वोल्टेज रेगुलेशन: यह वह परिवर्तन है जो लोड के बिना या लोड के विभिन्न स्तरों के साथ कनेक्शन के बाद लोड के अंत में वोल्टेज में होता है।
      • दक्षता: यह वह अनुपात होता है जो लोड को दी गई शक्ति और स्रोत से आपूर्ति की गई शक्ति के बीच होता है।
  2. शॉर्ट लाइन की दक्षता:

    • ट्रांसमिशन लाइन की दक्षता का सूत्र है: η=PloadPinput=Vload2Vsource2\eta = \frac{P_{\text{load}}}{P_{\text{input}}} = \frac{V_{\text{load}}^2}{V_{\text{source}}^2} जहाँ:
      • PloadP_{\text{load}} = लोड को दी गई शक्ति,
      • PinputP_{\text{input}} = लाइन को आपूर्ति की गई कुल शक्ति,
      • VloadV_{\text{load}} और VsourceV_{\text{source}} = लोड और स्रोत के वोल्टेज क्रमशः।
  3. रेगुलेटर:

    • वोल्टेज रेगुलेटर का उपयोग इस उद्देश्य के लिए किया जाता है ताकि वह स्रोत वोल्टेज में होने वाली उतार-चढ़ाव के बावजूद लोड में एक स्थिर वोल्टेज बनाए रखे।
  4. पावर फैक्टर का प्रभाव:

    • पावर फैक्टर (PF) वास्तविक शक्ति (P) और आपेक्षिक शक्ति (S) का अनुपात होता है और यह इस बात को व्यक्त करता है कि विद्युत शक्ति का उपयोग कितना कुशलतापूर्वक किया जा रहा है।
    • लैगिंग पावर फैक्टर (इंडक्टिव लोड) में उच्च करंट प्रवाह होता है, जिसके कारण अधिक पावर हानियां होती हैं।
    • लीडिंग पावर फैक्टर (कैपेसिटिव लोड) में अधिक वोल्टेज हो सकता है, जो उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकता है।
    • विभिन्न पावर फैक्टर के लिए वेक्टर आरेख बिजली के वोल्टेज, करंट और पावर के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हैं।

    लैगिंग पावर फैक्टर के लिए वेक्टर आरेख:

    • इस स्थिति में करंट वोल्टेज से पीछे होता है, यानी करंट का तरंग रूप वोल्टेज के मुकाबले देरी से आता है। इससे कुल पावर हानि बढ़ जाती है क्योंकि करंट अधिक होता है।

    लीडिंग पावर फैक्टर के लिए वेक्टर आरेख:

    • इस स्थिति में करंट वोल्टेज से आगे होता है, यानी करंट का तरंग रूप वोल्टेज के मुकाबले पहले आता है। इससे ओवर-वोल्टेज हो सकता है और सिस्टम की अस्थिरता हो सकती है।

2.3 कंडक्टरों का ट्रांसपोजिशन और इसकी आवश्यकता

  • ट्रांसपोजिशन का मतलब है कि ट्रांसमिशन लाइन के कंडक्टरों की स्थिति को समय-समय पर बदलना ताकि प्रत्येक कंडक्टर को दूसरे कंडक्टरों की स्थिति में समान समय बिताने का अवसर मिले।

  • ट्रांसपोजिशन की आवश्यकता:

    • लाइन पैरामीटर को संतुलित करना: तीन-फेज़ सिस्टम में, कंडक्टरों के बीच असमान दूरी के कारण असमान लाइन पैरामीटर (इंडक्टेंस, कैपेसिटेंस) उत्पन्न होते हैं। ट्रांसपोजिशन इस असमानता को संतुलित करता है और सिस्टम को समान बनाता है।
    • रेडियो इंटरफेरेंस को कम करना: असंतुलित ट्रांसमिशन लाइनों से विद्युतचुंबकीय हस्तक्षेप हो सकता है। ट्रांसपोजिशन करने से चुंबकीय क्षेत्र समान रूप से वितरित होता है, जिससे हस्तक्षेप कम होता है।
    • वोल्टेज असमानताओं को न्यूनतम करना: बिना ट्रांसपोजिशन के, वोल्टेज असमानताएं हो सकती हैं, जो सिस्टम की स्थिरता और प्रदर्शन को प्रभावित करती हैं।

2.4 स्किन प्रभाव, फेरांटी प्रभाव और निकटता प्रभाव

  1. स्किन प्रभाव:

    • स्किन प्रभाव वह परिघटना है जिसमें एसी (वैकल्पिक धारा) कंडक्टर की सतह पर प्रवाहित होती है, बजाय इसके कि वह कंडक्टर के सम्पूर्ण क्रॉस-सेक्शन में प्रवाहित हो।
    • यह इसलिए होता है क्योंकि एसी द्वारा उत्पन्न बदलते हुए चुंबकीय क्षेत्र कंडक्टर की सतह पर अधिक धारा प्रवाह उत्पन्न करते हैं, जिससे उच्च आवृत्तियों पर प्रतिरोध और शक्ति हानि बढ़ जाती है।
    • स्किन प्रभाव उच्च आवृत्तियों पर अधिक स्पष्ट होता है और उच्च वोल्टेज वाले कंडक्टरों में अधिक प्रभावी होता है।
  2. फेरांटी प्रभाव:

    • फेरांटी प्रभाव एक लंबी ट्रांसमिशन लाइन में उत्पन्न होने वाली एक स्थिति है, जिसमें लोड की हल्की स्थिति या बिना लोड के वोल्टेज स्रोत के अंत में वोल्टेज, स्रोत वोल्टेज से अधिक हो सकता है।
    • यह प्रभाव लाइन की संवेदन के कारण उत्पन्न होता है, जो कि लाइन में संग्रहित रिएक्टिव पावर के कारण वोल्टेज को बढ़ा सकता है।
  3. निकटता प्रभाव:

    • निकटता प्रभाव तब होता है जब दो या दो से अधिक कंडक्टरों में एसी धारा प्रवाहित होती है और वे एक-दूसरे के करीब होते हैं। इस स्थिति में, एक कंडक्टर द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र दूसरे कंडक्टर की धारा वितरण को प्रभावित करता है।
    • इसका परिणाम यह होता है कि करंट समान रूप से कंडक्टर के क्रॉस-सेक्शन में वितरित नहीं होता है, जिससे हानियां बढ़ती हैं और दक्षता कम होती है।

मुख्य बिंदुओं का सारांश:

  1. लाइन पैरामीटर: मुख्य लाइन पैरामीटर (R, L, C) ट्रांसमिशन लाइन के विद्युत गुणों को प्रभावित करते हैं।
  2. शॉर्ट लाइन का प्रदर्शन: शॉर्ट लाइनों में मुख्य रूप से प्रतिरोध के कारण शक्ति हानि होती है, और इनकी दक्षता और वोल्टेज रेगुलेशन लंबाई और लोड की स्थिति पर निर्भर करते हैं।
  3. कंडक्टरों का ट्रांसपोजिशन: ट्रांसपोजिशन से लाइन पैरामीटर संतुलित होते हैं और हस्तक्षेप कम होता है।
  4. स्किन, फेरांटी और निकटता प्रभाव: ये प्रभाव ट्रांसमिशन लाइनों में विद्युत प्रवाह और वोल्टेज प्रोफाइल को प्रभावित करते हैं, जिससे दक्षता और स्थिरता पर असर पड़ता है।

अभ्यास प्रश्न:

  1. ट्रांसमिशन लाइन के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले मुख्य पैरामीटर कौन से हैं? प्रतिरोध, प्रेरण और संवेदन के सिद्धांत को स्पष्ट करें।
  2. शॉर्ट ट्रांसमिशन लाइन का प्रदर्शन कैसे होता है? इसके दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?
  3. फेरांटी प्रभाव क्या है और यह लंबी ट्रांसमिशन लाइनों पर कैसे प्रभाव डालता है?
  4. ट्रांसमिशन लाइनों में कंडक्टरों के ट्रांसपोजिशन की आवश्यकता को स्पष्ट करें।
  5. स्किन प्रभाव क्या है और यह ट्रांसमिशन लाइनों में उच्च आवृत्तियों वाले करंट को कैसे प्रभावित करता है?

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