3. DISASTER MANAGEMENT CYCLE AND FRAME WORK in hindi

Hey Welcome to BTER Rajasthan Polytechnic.

1. Join Groups for PDF's & Regular Updates
Join the community of Civil Engineering students at BTER Polytechnic and stay updated:


2. Help & Donations 💖

If you find our resources helpful and wish to support our initiative, your donation will help us continue improving and providing valuable study material.

  • UPI ID: garimakanwarchauhan@oksbi
  • QR Code

💰 Your support matters! Every contribution helps us reach more students and provide better resources! 🙏


3. Notes Website

  • Official Notes WebsiteVisit Notes Website 📝
    This website provides all study materials, notes, and important updates for Civil Engineering students.

4. Important Links

Explore the following links for additional resources and exam preparation:



3. आपदा प्रबंधन चक्र और ढांचा (Disaster Management Cycle and Framework)

आपदा प्रबंधन चक्र एक समग्र प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य आपदाओं से उत्पन्न होने वाले प्रभावों को कम करना, राहत प्रदान करना, और पुनर्निर्माण के बाद प्रभावी ढंग से समाज को फिर से सशक्त बनाना है। यह चक्र पूर्व-आपदा, आपदा के दौरान, और बाद में की गतिविधियों को शामिल करता है।


3.1. आपदा प्रबंधन चक्र (Disaster Management Cycle)

आपदा प्रबंधन चक्र चार प्रमुख चरणों में बाँटा जाता है:

  1. पूर्व-आपदा चरण (Pre-Disaster Phase)
    यह चरण आपदा के पहले के तैयारियों और जोखिम को कम करने के उपायों पर आधारित है। इसमें जोखिम का मूल्यांकन, तैयारी, और रोकथाम के उपाय शामिल होते हैं।

    • उदाहरण: बाढ़ वाले क्षेत्रों में जल निकासी की प्रणाली बनाना या भूकंप-रोधी भवन बनाना।
  2. आपदा के दौरान (During Disaster Phase)
    जब आपदा घटित होती है, तो तुरंत प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता होती है, जैसे कि राहत कार्य, बचाव, चिकित्सा सेवाएं, और आपदा के प्रकोप से बचने के लिए लोगों की सुरक्षित स्थानों पर निकासी।

    • उदाहरण: भूकंप के बाद मलबे में दबे लोगों को बचाना या बाढ़ के दौरान लोगों को ऊँचे स्थानों पर ले जाना।
  3. आपदा के बाद (Post-Disaster Phase)
    यह चरण आपदा के बाद पुनर्निर्माण और राहत कार्यों का होता है। इसमें प्रभावित क्षेत्रों में पुनः निर्माण, बुनियादी ढांचे की मरम्मत, और प्रभावित परिवारों को सहायता प्रदान करना शामिल होता है।

    • उदाहरण: स्कूल, अस्पताल, और सड़कों का पुनर्निर्माण करना या प्रभावित परिवारों को पुनर्वास के लिए संसाधन प्रदान करना।
  4. पुनर्प्राप्ति चरण (Recovery Phase)
    इसमें दीर्घकालिक पुनर्निर्माण और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को पुनः स्थापित करने के उपाय होते हैं। इसमें बुनियादी ढांचे का सुधार और समाज की सामान्य स्थिति को वापस लाना शामिल होता है।

    • उदाहरण: पुनर्निर्माण योजनाएँ लागू करना, कृषि को पुनः जीवित करना, और प्रभावित लोगों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करना।

3.2. आपदा प्रबंधन में पैरेडाइम शिफ्ट (Paradigm Shift in Disaster Management)

पारंपरिक रूप से, आपदा प्रबंधन का ध्यान सिर्फ आपदा के बाद राहत और पुनर्निर्माण पर था। अब एक पैरेडाइम शिफ्ट हुआ है, जिसमें आपदाओं से पहले और दौरान की तैयारी पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसका उद्देश्य आपदा के प्रभाव को कम करना और पहले से तैयारी करना है।

  • पहले: आपदा आने के बाद राहत कार्य, जैसे बचाव, पुनर्निर्माण, और पुनः स्थापन।
  • अब: रोकथाम, न्यूनकरण, और तैयारी पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
    • उदाहरण: भूकंप की संभावना वाले क्षेत्रों में भवनों को भूकंप-रोधी बनाना या सुनामी से बचने के लिए तटीय क्षेत्रों में चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।

3.3. पूर्व-आपदा (Pre-Disaster)

पूर्व-आपदा का उद्देश्य आपदा से पहले तैयारियों, योजना और जोखिम के मूल्यांकन पर आधारित होता है। इसमें आपदा के प्रभावों को कम करने के लिए कदम उठाए जाते हैं।

  • जोखिम मूल्यांकन (Risk Assessment): यह प्रक्रिया प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करती है, जैसे बाढ़, भूकंप, या सुनामी।
    • उदाहरण: बाढ़ वाले क्षेत्रों की पहचान करना और उन क्षेत्रों में जल निकासी की व्यवस्था करना।
  • जोखिम को कम करने के उपाय (Mitigation Measures): आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए तकनीकी उपायों को लागू करना।
    • उदाहरण: भूकंप-रोधी इमारतों का निर्माण।

3.4. जोखिम मूल्यांकन और विश्लेषण (Risk Assessment and Analysis)

जोखिम मूल्यांकन में यह मूल्यांकन किया जाता है कि एक क्षेत्र में किस प्रकार के आपदा की संभावना हो सकती है और उसका प्रभाव कितना हो सकता है। इसमें दोनों प्राकृतिक और मानवजनित आपदाओं को शामिल किया जाता है।

  • उदाहरण: यदि कोई क्षेत्र भूकंप के लिए जोखिमपूर्ण है, तो उस क्षेत्र में भूकंप से बचने के उपाय जैसे भवनों का निर्माण करना या सुरक्षित स्थानों पर निकासी मार्गों की योजना बनाना।

3.5. जोखिम मानचित्रण (Risk Mapping)

जोखिम मानचित्रण का उद्देश्य किसी विशेष क्षेत्र में विभिन्न आपदाओं के जोखिम को मानचित्र पर अंकित करना है। यह मानचित्र स्थानीय सरकारों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों को किसी क्षेत्र में आपदा के प्रभाव को समझने और नीतियाँ तैयार करने में मदद करता है।

  • उदाहरण: बाढ़ वाले क्षेत्रों का नक्शा तैयार करना ताकि बाढ़ के दौरान सुरक्षित मार्गों का पता लगाया जा सके।

3.6. जोनिंग और माइक्रोजोनिंग (Zonation and Microzonation)

  1. जोनिंग (Zonation): यह प्रक्रिया एक बड़े क्षेत्र में आपदा के जोखिम को समझने और उसे विभिन्न जोन में बाँटने की होती है। यह क्षेत्रीय स्तर पर किया जाता है।

    • उदाहरण: भारत में भूकंप के जोन को वर्गीकृत किया गया है जैसे जोन 1 (जोखिम कम) से जोन 5 (जोखिम अधिक) तक।
  2. माइक्रोजोनिंग (Microzonation): यह जोनिंग का और अधिक विस्तार है, जिसमें छोटे स्तर पर विश्लेषण किया जाता है, जैसे शहरों या समुदायों के भीतर जोखिम क्षेत्रों की पहचान करना।

    • उदाहरण: किसी शहर में बाढ़ या भूकंप के खतरे को देखते हुए एक विशेष इलाके में अधिक सुरक्षा उपाय लागू करना।

3.7. आपदाओं की रोकथाम और न्यूनकरण (Prevention and Mitigation of Disasters)

आपदाओं की रोकथाम का उद्देश्य आपदा के कारण होने वाले नुकसान को पहले से कम करना है। न्यूनकरण के उपायों में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, निर्माण मानकों का पालन करना और सार्वजनिक शिक्षा को बढ़ावा देना शामिल है।

  • रोकथाम: आपदा की संभावना को समाप्त करना।
    • उदाहरण: जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फबारी की कमी के खतरे से बचने के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकना।
  • न्यूनकरण: आपदा के प्रभाव को कम करना।
    • उदाहरण: भूकंप के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में भूकंप-रोधी भवन निर्माण।

3.8. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System)

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का उद्देश्य आपदा के आने से पहले ही लोगों को सूचित करना है ताकि वे उचित समय पर सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें।

3.8.1. तैयारी (Preparedness)

यह चरण सुनिश्चित करता है कि आपदा की चेतावनी मिलने के बाद तुरंत कार्रवाई की जाए। इसमें ट्रेनिंग, योजना तैयार करना और संसाधनों का प्रबंधन शामिल है।

  • उदाहरण: बाढ़ या सुनामी के लिए पहले से ही प्राथमिक चिकित्सा किट और बचाव दल तैयार रखना।

3.8.2. क्षमता विकास (Capacity Development)

यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी एजेंसियों, समुदायों और व्यक्तियों के पास आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक संसाधन और ज्ञान है।

  • उदाहरण: आपदा प्रबंधन कार्यशालाओं का आयोजन करना और स्थानीय समुदायों को आपदा की तैयारी के लिए प्रशिक्षण देना।

3.8.3. जागरूकता (Awareness)

यह सुनिश्चित करना कि लोग आपदा के बारे में पूरी तरह से अवगत हों और वे किसी आपदा के दौरान क्या कदम उठाए, इसकी जानकारी रखें।

  • उदाहरण: स्कूलों और समुदायों में आपदा प्रबंधन पर जागरूकता अभियान चलाना।

3.9. आपदा के दौरान (During Disaster)

आपदा के दौरान त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया देना बहुत जरूरी होता है। इसमें आपदा के प्रभाव को कम करने और लोगों की जान बचाने के लिए कई उपाय किए जाते हैं:

  1. निकासी (Evacuation): प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना।
  2. खोज और बचाव (Search and Rescue): आपदा के दौरान मलबे में दबे लोगों को बचाने का कार्य।
  3. आपातकालीन संचालन केंद्र (Emergency Operation Centre): राहत कार्यों का समन्वय और निर्णय लेने के लिए केंद्रीकृत स्थान।
  4. आपदा संचार (Disaster Communication): आपदा के दौरान लोगों को सुरक्षित स्थानों के बारे में जानकारी देना।

3.9. आपदा के दौरान (During Disaster)

जब कोई आपदा घटित होती है, तब तत्काल और प्रभावी प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। इस दौरान कुछ प्रमुख गतिविधियाँ होती हैं, जो लोगों की जान बचाने, सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने और आपदा के प्रभावों को कम करने के लिए की जाती हैं।


3.9.1. निकासी (Evacuation)

निकासी का उद्देश्य प्रभावित क्षेत्र से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना होता है। आपदा के दौरान, जैसे कि बाढ़, भूकंप, आग, या सुनामी के समय, जब आपदा का खतरा बढ़ जाता है, तो नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जाता है।

  • उदाहरण: सुनामी आने से पहले तटीय क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना।
  • महत्वपूर्ण पहलू: समय पर निकासी सुनिश्चित करने के लिए पहले से निकासी योजना तैयार करना और मार्गों का निर्धारण करना।

3.9.2. आपदा संचार (Disaster Communication)

आपदा के दौरान संचार व्यवस्था महत्वपूर्ण होती है ताकि प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को जानकारी मिल सके और वे समय पर कार्रवाई कर सकें। आपदा संचार प्रणाली में रेडियो, टेलीफोन, मोबाइल नेटवर्क, और इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है।

  • उदाहरण: भूकंप के बाद रेडियो पर राहत कार्यों की जानकारी देना, या ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से सूचना प्रसार करना।
  • महत्वपूर्ण पहलू: संचार नेटवर्क का स्थिर और सुरक्षित रहना ताकि सहायता टीमों और प्रभावित लोगों के बीच संपर्क बनाए रखा जा सके।

3.9.3. खोज और बचाव (Search and Rescue)

खोज और बचाव कार्यों का उद्देश्य आपदा के दौरान मलबे में दबे लोगों को बाहर निकालना और उन्हें प्राथमिक चिकित्सा देना होता है। यह कार्य विशेष प्रशिक्षण प्राप्त दलों द्वारा किया जाता है।

  • उदाहरण: भूकंप के दौरान मलबे में दबे लोगों को निकालने के लिए खोज और बचाव टीमों द्वारा किए गए प्रयास।
  • महत्वपूर्ण पहलू: खोज और बचाव कार्यों के लिए प्रशिक्षित टीमों, उपकरणों और संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना।

3.9.4. आपातकालीन संचालन केंद्र (Emergency Operation Centre)

आपदा के दौरान आपातकालीन संचालन केंद्र (EOC) एक केंद्रीय स्थान होता है, जहाँ आपदा प्रबंधन टीमों, सरकारी एजेंसियों और अन्य संबंधित संगठनों द्वारा कार्यों का समन्वय किया जाता है। यहाँ पर राहत कार्यों, संसाधनों की आपूर्ति, और निर्णय लेने के सभी महत्वपूर्ण कार्य होते हैं।

  • उदाहरण: भारत में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के तहत बनाए गए आपातकालीन संचालन केंद्र।
  • महत्वपूर्ण पहलू: EOC का सही समय पर सक्रिय होना और सभी प्रभावित एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करना।

3.9.5. घटना कमांड प्रणाली (Incident Command System)

यह एक संगठित प्रणाली है, जो आपदा या घटना के दौरान विभिन्न अधिकारियों, एजेंसियों और विभागों के बीच एक मजबूत समन्वय स्थापित करने के लिए काम करती है। यह सिस्टम सुनिश्चित करता है कि सभी कार्य प्राथमिकता के आधार पर और एक संरचित तरीके से किए जाएं।

  • उदाहरण: भूकंप या बाढ़ के दौरान राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल (NDRF) द्वारा क्षेत्रीय कमांडरों के नेतृत्व में बचाव कार्य करना।
  • महत्वपूर्ण पहलू: सभी अधिकारियों और राहत दलों को एक स्थान पर संगठित और निर्देशित करना, ताकि प्रतिक्रिया अधिक प्रभावी हो।

3.9.6. राहत और पुनर्वास (Relief and Rehabilitation)

आपदा के दौरान और बाद में राहत कार्यों का मुख्य उद्देश्य प्रभावित लोगों को तात्कालिक मदद पहुंचाना और उनकी जीवनरेखा को वापस सामान्य बनाना है। यह प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य सामग्री, पानी, स्वास्थ्य सेवाएँ, और अस्थायी आवास जैसी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर ध्यान केंद्रित करता है।

  • उदाहरण: बाढ़ के दौरान प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य वितरण, चिकित्सा सेवाएँ और अस्थायी आश्रय प्रदान करना।
  • महत्वपूर्ण पहलू: प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों को मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त करना, ताकि वे पुनः अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

3.10. आपदा के बाद (Post-Disaster)

जब आपदा का खतरा कम हो जाता है, तो आपदा के बाद के चरण में पुनः निर्माण, पुनःस्थापना, और प्रभावित समुदायों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ठीक करने के उपाय किए जाते हैं।


3.10.1. नुकसान और आवश्यकताओं का मूल्यांकन (Damage and Needs Assessment)

यह प्रक्रिया आपदा के बाद की स्थिति को समझने के लिए की जाती है, ताकि यह मूल्यांकन किया जा सके कि कितनी क्षति हुई है और किस प्रकार की सहायता की आवश्यकता है।

  • उदाहरण: भूकंप के बाद इमारतों की स्थिति, सड़कें, पुल और बिजली की आपूर्ति की स्थिति की जांच करना।
  • महत्वपूर्ण पहलू: सही और समयबद्ध मूल्यांकन, ताकि जरूरतमंदों तक शीघ्र सहायता पहुंचाई जा सके।

3.10.2. महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की पुनर्स्थापना (Restoration of Critical Infrastructure)

आपदा के बाद, प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की पुनर्निर्माण की आवश्यकता होती है। इसमें सड़कें, पुल, अस्पताल, स्कूल और अन्य सार्वजनिक सेवाएं शामिल हैं।

  • उदाहरण: भूकंप के बाद स्कूलों, अस्पतालों और अन्य सार्वजनिक भवनों का पुनर्निर्माण।
  • महत्वपूर्ण पहलू: इन बुनियादी ढाँचों की शीघ्र और स्थिर पुनःस्थापना ताकि समाज का सामान्य जीवन जल्दी से बहाल हो सके।

3.10.3. प्रारंभिक पुनर्प्राप्ति, पुनर्निर्माण और पुनर्विकास (Early Recovery, Reconstruction and Redevelopment)

यह प्रक्रिया आपदा के बाद समुदाय की स्थिरता और विकास के लिए महत्वपूर्ण होती है। इसमें आर्थिक गतिविधियों को पुनः शुरू करना, रोजगार अवसर प्रदान करना, और प्रभावित समुदायों के लिए आवश्यक सेवाएँ बहाल करना शामिल है।

  • उदाहरण: प्रभावित किसानों के लिए कृषि के लिए सहायता प्रदान करना, रोजगार सृजन के अवसरों की पुनःस्थापना।
  • महत्वपूर्ण पहलू: लंबे समय तक स्थिरता और विकास के लिए सामुदायिक पुनर्निर्माण योजनाएँ तैयार करना।

3.10.4. IDNDR, Yokohama Strategy, Hyogo Framework of Action

यह अंतरराष्ट्रीय रणनीतियाँ हैं, जिनका उद्देश्य आपदाओं से निपटने की वैश्विक तैयारी और क्षमता बढ़ाना है:

  1. IDNDR (International Decade for Natural Disaster Reduction): यह कार्यक्रम 1990 के दशक में शुरू किया गया था, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम किया जा सके। इसका उद्देश्य आपदा प्रबंधन में वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना था।

  2. Yokohama Strategy: 1994 में जापान में एक सम्मेलन के दौरान अपनाई गई, यह रणनीति आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है, जिसमें निवारक उपायों पर बल दिया गया है।

  3. Hyogo Framework of Action: 2005 में जापान में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस ढांचे को अपनाया गया था, जिसका उद्देश्य आपदा जोखिम को कम करना और देशों को आपदाओं से बेहतर तरीके से निपटने के लिए प्रेरित करना था।

  • महत्वपूर्ण पहलू: इन रणनीतियों का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर आपदा जोखिम को कम करना, सूचना साझा करना, और देशों में आपदा प्रबंधन की क्षमता को बढ़ाना है।

📢 🔔 Download PDF & Join Study Groups:
📥 WhatsApp Group: Join Now
📥 Telegram Channel: Join Now
📺 Watch Lecture on YouTube: BTER Polytechnic Classes
📍 Stay connected for more study materials! 🚀

Thank You for Visiting!

We wish you all the best for your studies. Keep learning, and don't hesitate to reach out for help! 📚✨

Post a Comment

0 Comments