3. Three Phase Alternator Notes in Hindi

 

3. तीन-फेज़ अल्टरनेटर:

3.1 कार्य करने का सिद्धांत:

एक तीन-फेज़ अल्टरनेटर electromagnetic induction के सिद्धांत पर काम करता है। जब रोटर (जो सामान्यत: एक चुंबक या इलेक्ट्रोमैग्नेट होता है) स्टेटर (जो अल्टरनेटर का स्थिर भाग है) के अंदर घुमता है, तो एक घुमंतू चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। यह क्षेत्र स्टेटर की वाइंडिंग्स में एक वैकल्पिक धारा (AC) उत्पन्न करता है।

तीन-फेज़ अल्टरनेटर में तीन सेट स्टेटर वाइंडिंग्स होते हैं, जो 120 डिग्री पर स्थित होते हैं, और तीन-फेज़ विद्युत आउटपुट उत्पन्न करते हैं। अल्टरनेटर एक तीन-फेज़ एसी वोल्टेज उत्पन्न करता है, जिसे सामान्यतः पावर जनरेशन, ट्रांसमिशन और वितरण प्रणालियों में उपयोग किया जाता है।

3.2 घुमते और स्थिर आर्मेचर:

  • घुमता आर्मेचर: कुछ अल्टरनेटरों में आर्मेचर रोटर से जुड़ा होता है, जो चुंबकीय क्षेत्र के भीतर घूमता है। इन्हें घूमते हुए आर्मेचर अल्टरनेटर कहा जाता है।
  • स्थिर आर्मेचर: अधिकांश आधुनिक अल्टरनेटरों में आर्मेचर (जिसमें वोल्टेज प्रेरित होता है) स्थिर होता है और स्टेटर से जुड़ा होता है। रोटर घूमता है चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए, और आर्मेचर स्थिर रहता है एसी पावर उत्पन्न करने के लिए।

3.3 संरचनात्मक विवरण:

  • 3.3.1 भाग और उनके कार्य:

    • रोटर: यह अल्टरनेटर का घुमता हुआ हिस्सा है, जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। रोटर दो प्रकार का हो सकता है: सिलेंड्रिकल या सैलियेंट पोल, जो डिजाइन और उपयोग के आधार पर निर्धारित होता है।
    • स्टेटर: यह अल्टरनेटर का स्थिर हिस्सा है, जिसमें वाइंडिंग्स होती हैं, जिसमें करंट प्रेरित होता है। यह सामान्यत: स्टील की परतों से बना होता है ताकि एडी करंट लॉस को कम किया जा सके।
    • स्लिप रिंग्स: इनका उपयोग कुछ अल्टरनेटरों में रोटर वाइंडिंग्स को करंट आपूर्ति करने के लिए किया जाता है (घूमते हुए क्षेत्र वाले अल्टरनेटर में)।
    • बेयरिंग्स: ये रोटर का समर्थन करते हैं और इसे स्टेटर के भीतर सुचारू रूप से घुमने की अनुमति देते हैं।
    • एक्साइटर: यह रोटर को डीसी करंट प्रदान करता है ताकि चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो सके।
  • 3.3.2 रोटर संरचनाएँ:

    • सैलियेंट पोल रोटर: इस प्रकार के रोटर में बड़े प्रक्षिप्त पोल होते हैं, और यह आमतौर पर कम गति वाले अल्टरनेटरों में उपयोग किया जाता है। पोल्स को डीसी करंट से उत्साहित किया जाता है ताकि एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो सके।
    • सिलेंड्रिकल रोटर: इस रोटर की सतह चिकनी होती है और यह उच्च गति वाले अल्टरनेटरों में उपयोग किया जाता है। यह आमतौर पर टर्बो-अल्टरनेटरों में पाया जाता है और उच्च घूर्णन गति पर काम करता है।
  • 3.3.3 वाइंडिंग्स: सिंगल और डबल लेयर:

    • सिंगल लेयर वाइंडिंग: इस प्रकार की वाइंडिंग में प्रत्येक स्लॉट में केवल एक कॉइल होती है। यह सरल होती है और छोटे मशीनों में उपयोग की जाती है।
    • डबल लेयर वाइंडिंग: इस प्रकार में प्रत्येक स्लॉट में दो कॉइल होती हैं, जो इसे अधिक कुशल बनाती हैं, क्योंकि यह उच्च वोल्टेज और करंट संभालने की क्षमता प्रदान करती है। यह बड़ी अल्टरनेटरों में उपयोग की जाती है, जो उच्च पावर आउटपुट उत्पन्न करती हैं।

3.4 अल्टरनेटर लोडिंग:

  • 3.4.1 अल्टरनेटर के टर्मिनल वोल्टेज को प्रभावित करने वाले तत्व: अल्टरनेटर के टर्मिनल वोल्टेज पर कई कारक प्रभाव डालते हैं:

    • अल्टरनेटर पर लोड: जैसे-जैसे लोड बढ़ता है, आंतरिक प्रतिबाधा के कारण वोल्टेज में गिरावट हो सकती है।
    • रोटर की गति: अगर रोटर की गति बदलती है, तो यह आउटपुट वोल्टेज की आवृत्ति और परिमाण को प्रभावित करता है।
    • एक्साइटेशन: रोटर को प्रदान किया जाने वाला एक्साइटेशन करंट (डीसी करंट) आउटपुट वोल्टेज को प्रभावित करता है। उच्च एक्साइटेशन से टर्मिनल वोल्टेज बढ़ता है।
    • लोड का पावर फैक्टर: एक लैगिंग पावर फैक्टर (इंडक्टिव लोड) वोल्टेज में गिरावट का कारण बन सकता है, जबकि एक लीडिंग पावर फैक्टर वोल्टेज में वृद्धि कर सकता है।
  • 3.4.2 आर्मेचर रेजिस्टेंस और लीकिज़ रिएक्टेंस ड्रॉप्स:

    • आर्मेचर रेजिस्टेंस: यह स्टेटर वाइंडिंग्स का प्रतिरोध होता है, और इन वाइंडिंग्स में प्रवाहित होने वाला करंट वोल्टेज ड्रॉप उत्पन्न करता है (I * R)। जितना अधिक करंट, उतना अधिक आर्मेचर रेजिस्टेंस पर वोल्टेज ड्रॉप, जो टर्मिनल वोल्टेज को कम करता है।
    • लीकिज़ रिएक्टेंस: यह वह रिएक्टेंस (इंडक्टिविटी के कारण करंट के प्रवाह के प्रति प्रतिरोध) है, जो स्टेटर वाइंडिंग्स द्वारा उत्पन्न होती है। यह वोल्टेज ड्रॉप का कारण बनती है जब करंट मशीन से प्रवाहित होता है।

3.5 आर्मेचर रिएक्शन विभिन्न पावर फैक्टर पर:

आर्मेचर रिएक्शन वह प्रभाव है जो आर्मेचर वाइंडिंग्स में प्रवाहित करंट द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का रोटर के चुंबकीय क्षेत्र पर पड़ता है। यह रिएक्शन लोड के पावर फैक्टर के अनुसार बदलता है:

  • लैगिंग पावर फैक्टर: इस स्थिति में, स्टेटर वाइंडिंग्स में करंट वोल्टेज से पीछे होता है, और इसके कारण चुंबकीय क्षेत्र रोटर के मुख्य क्षेत्र को कमजोर करता है, जिससे वोल्टेज में गिरावट और दक्षता में कमी होती है।
  • लीडिंग पावर फैक्टर: जब पावर फैक्टर लीडिंग होता है, तो स्टेटर करंट का चुंबकीय क्षेत्र रोटर के चुंबकीय क्षेत्र की मदद करता है, जिससे अल्टरनेटर का वोल्टेज बेहतर होता है।
  • यूनिटी पावर फैक्टर: यूनिटी पावर फैक्टर पर, आर्मेचर रिएक्शन न्यूनतम होता है और अल्टरनेटर अधिक दक्षता से कार्य करता है, जिससे वोल्टेज ड्रॉप कम होता है।

3.6 अल्टरनेटर का रखरखाव:

अल्टरनेटर का रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ताकि यह सही ढंग से काम करता रहे और इसकी कार्यशील जीवनकाल बढ़ सके। मुख्य रखरखाव कार्यों में शामिल हैं:

  • सफाई: नियमित रूप से अल्टरनेटर के हिस्सों की सफाई करना, विशेष रूप से स्टेटर और रोटर, ताकि धूल, गंदगी और मलबा जमा न हो, जिससे अधिक हीटिंग हो।
  • निरीक्षण: रोटर, स्टेटर, स्लिप रिंग्स (यदि लागू हो), और बेयरिंग्स की नियमित जांच ताकि कोई भी दोष या क्षति का पता लगाया जा सके।
  • चिकनाई: यह सुनिश्चित करना कि बेयरिंग्स को ठीक से चिकनाई दी जाए ताकि घर्षण और घिसावट को रोका जा सके।
  • एक्साइटर चेकिंग: नियमित रूप से एक्साइटर प्रणाली की जांच करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि रोटर को सही स्तर का एक्साइटेशन करंट प्रदान किया जा रहा है।
  • तापमान निगरानी: अल्टरनेटर के तापमान की निगरानी करना ताकि अधिक हीटिंग से बचा जा सके। अधिक हीटिंग इंसुलेशन को नुकसान पहुँचा सकती है और अन्य यांत्रिक विफलताएँ हो सकती हैं।
  • वोल्टेज और आवृत्ति परीक्षण: समय-समय पर अल्टरनेटर के आउटपुट वोल्टेज और आवृत्ति का परीक्षण करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये आवश्यक विशिष्टताओं के अनुरूप हैं।

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