4. Signal Conditioning notes in hindi

 

4. सिग्नल कंडीशनिंग (Signal Conditioning)

सिग्नल कंडीशनिंग एक प्रक्रिया है जिसमें किसी सिग्नल को संसाधित या संशोधित किया जाता है ताकि वह माप या प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त हो सके। इसमें आमतौर पर सिग्नल को बढ़ाना, छानना और रूपांतरण किया जाता है ताकि वह माप प्रणाली की आवश्यकताओं को पूरा कर सके।


4.1 सिग्नल कंडीशनिंग सिस्टम का बुनियादी सिद्धांत

सिग्नल कंडीशनिंग सिस्टम वह प्रणाली है जिसका उपयोग सेंसर से प्राप्त सिग्नल (जैसे तापमान, दबाव या बल) को इस प्रकार संशोधित करने के लिए किया जाता है कि वह प्रसंस्करण, माप या आगे विश्लेषण के लिए उपयुक्त हो। इसमें आमतौर पर वृद्धि, छानना, रूपांतरण और कभी-कभी सिग्नल का पृथक्करण शामिल होता है।

सिग्नल कंडीशनिंग के मुख्य कार्य:

  • वृद्धि (Amplification): कमजोर सिग्नल को उच्च वोल्टेज या करंट स्तर पर बढ़ाना।
  • छानना (Filtering): सिग्नल से अवांछित शोर या आवृत्तियों को हटाना।
  • लिनियराइजेशन (Linearization): गैर-रैखिक सिग्नल को रैखिक रूप में परिवर्तित करना।
  • पृथक्करण (Isolation): सिग्नल स्रोत और माप प्रणाली के बीच विद्युत पृथक्करण प्रदान करना ताकि उच्च वोल्टेज या शोर से सुरक्षा हो सके।
  • रूपांतरण (Conversion): सिग्नल के प्रकार को बदलना, जैसे कि एनालॉग से डिजिटल में रूपांतरण।

सिग्नल कंडीशनिंग में आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले घटक ऑपरेशनल ऐम्प्लीफायर्स (ऑप-ऐम्प्स), फिल्टर्स, ऐम्प्लीफायर्स और ए analog-to-digital converters (ADC) हैं।


4.2 IC 741 का पिन विन्यास (Pin Configuration of IC 741)

IC 741 एक सामान्य-उद्देश्य ऑपरेशनल ऐम्प्लीफायर (ऑप-ऐम्प) है, जो सिग्नल कंडीशनिंग में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। नीचे IC 741 के पिन विन्यास को दर्शाया गया है:

  • पिन 1 (ऑफसेट नल): इस पिन का उपयोग ऑफसेट वोल्टेज समायोजन के लिए किया जाता है।
  • पिन 2 (इनवर्टिंग इनपुट): ऑप-ऐम्प का इनपुट, जहां इनवर्टेड सिग्नल लागू किया जाता है।
  • पिन 3 (नॉन-इनवर्टिंग इनपुट): ऑप-ऐम्प का इनपुट, जहां नॉन-इनवर्टेड सिग्नल लागू किया जाता है।
  • पिन 4 (V-): नकारात्मक पावर सप्लाई पिन।
  • पिन 5 (ऑफसेट नल): ऑफसेट वोल्टेज समायोजन के लिए एक और पिन।
  • पिन 6 (आउटपुट): वह पिन जहां से विस्तृत सिग्नल उपलब्ध होता है।
  • पिन 7 (V+): सकारात्मक पावर सप्लाई पिन।
  • पिन 8 (NC): नॉट कनेक्टेड।

IC 741 ऑप-ऐम्प अपनी बहुमुखी प्रतिभा और विश्वसनीयता के कारण एनालॉग अनुप्रयोगों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।


4.3 आदर्श ऑप-ऐम्प (Ideal OP-AMP) और ऑप-ऐम्प के विद्युत गुण (Electrical Characteristics of OP-AMP)

आदर्श ऑपरेशनल ऐम्प्लीफायर (आदर्श ऑप-ऐम्प) वह सिद्धांतात्मक ऐम्प्लीफायर है, जिसके निम्नलिखित गुण होते हैं:

  • अनंत ओपन-लूप लाभ: बिना फीडबैक के लाभ (वृद्धि) अनंत होती है।
  • अनंत इनपुट इम्पेडेंस: इनपुट टर्मिनलों में कोई करंट प्रवाहित नहीं होता।
  • शून्य आउटपुट इम्पेडेंस: आउटपुट इम्पेडेंस शून्य होती है, जिससे ऑप-ऐम्प किसी भी लोड को बिना वोल्टेज ड्रॉप के चला सकता है।
  • शून्य ऑफसेट वोल्टेज: ऑप-ऐम्प के इनवर्टिंग और नॉन-इनवर्टिंग इनपुट्स के बीच कोई अंतर नहीं होता जब आउटपुट शून्य होता है।
  • अनंत बैंडविड्थ: यह सभी आवृत्तियों को समान रूप से बढ़ाता है बिना किसी क्षीणन के।
  • शून्य शोर: ऑप-ऐम्प में कोई अवांछनीय विद्युत शोर या हस्तक्षेप नहीं होता।
  • पूर्ण रैखिकता: आउटपुट सिग्नल इनपुट का एक पूर्ण रैखिक रूप होता है।

वास्तव में, कोई भी ऑप-ऐम्प इन सभी आदर्श गुणों को नहीं प्रदर्शित कर सकता है, लेकिन इन्हें वास्तविक ऑप-ऐम्प्स के व्यवहार को समझने के लिए संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।


4.4 ऑप-ऐम्प के विभिन्न पैरामीटर (In Brief)

यहाँ ऑप-ऐम्प के विभिन्न विद्युत पैरामीटर को संक्षेप में समझाया गया है:

4.4.1 इनपुट ऑफसेट वोल्टेज (Input Offset Voltage)
  • यह वह वोल्टेज अंतर है जो ऑप-ऐम्प के इनपुट टर्मिनलों के बीच चाहिए होता है ताकि जब कोई इनपुट सिग्नल न हो, तो आउटपुट शून्य हो।
  • यह एक अवांछनीय गुण है, लेकिन आधुनिक ऑप-ऐम्प्स में यह बहुत कम होता है (मिलीवोल्ट रेंज में)।
4.4.2 इनपुट ऑफसेट करंट (Input Offset Current)
  • यह इनवर्टिंग और नॉन-इनवर्टिंग इनपुट टर्मिनलों पर बायस करंट्स के बीच का अंतर है।
  • उच्च इनपुट ऑफसेट करंट से सिग्नल प्रसंस्करण में गलतियां हो सकती हैं।
4.4.3 इनपुट बायस करंट (Input Bias Current)
  • यह वह औसत करंट होता है जो इनवर्टिंग और नॉन-इनवर्टिंग इनपुट टर्मिनलों में प्रवाहित होता है।
  • यह आधुनिक ऑप-ऐम्प्स में बहुत कम होता है, लेकिन उच्च-परिशुद्धता अनुप्रयोगों के लिए यह महत्वपूर्ण हो सकता है।
4.4.4 डिफरेंशियल इनपुट रेजिस्टेंस (Differential Input Resistance)
  • यह ऑप-ऐम्प के दो इनपुट टर्मिनलों (इनवर्टिंग और नॉन-इनवर्टिंग) के बीच रेजिस्टेंस होता है।
  • उच्च डिफरेंशियल इनपुट रेजिस्टेंस की इच्छा की जाती है ताकि इनपुट सिग्नल स्रोत पर लोडिंग कम हो।
4.4.5 CMMR (कॉमन-मोड रेजेक्शन रेशियो)
  • यह ऑप-ऐम्प की क्षमता को दर्शाता है कि वह उन सिग्नल्स को कितना प्रभावी रूप से अस्वीकार कर सकता है जो दोनों इनपुट्स पर समान होते हैं (कॉमन-मोड सिग्नल्स)।
  • उच्च CMMR का मतलब है कि ऑप-ऐम्प शोर या हस्तक्षेप को बेहतर तरीके से अस्वीकार करता है।
4.4.6 SVRR (सप्लाई वोल्टेज रेजेक्शन रेशियो)
  • यह ऑप-ऐम्प की क्षमता को दर्शाता है कि वह सप्लाई वोल्टेज में उतार-चढ़ाव को कितनी अच्छी तरह से अस्वीकार करता है और स्थिर आउटपुट बनाए रखता है।
4.4.7 वोल्टेज गेन (Voltage Gain)
  • यह आउटपुट वोल्टेज का इनपुट वोल्टेज के साथ अनुपात होता है।
  • आदर्श ऑप-ऐम्प का वोल्टेज गेन अनंत होता है, लेकिन वास्तविक ऑप-ऐम्प का गेन सीमित होता है, जो आमतौर पर 10,000 से 1,000,000 तक हो सकता है।
4.4.8 आउटपुट वोल्टेज (Output Voltage)
  • यह वह वोल्टेज होता है जो ऑप-ऐम्प के आउटपुट टर्मिनल से निकलता है।
  • यह आउटपुट वोल्टेज ऑप-ऐम्प के गेन के आधार पर इनपुट सिग्नल से संबंधित होता है।
4.4.9 Slew Rate (स्लू रेट)
  • यह वह दर होती है जिस पर ऑप-ऐम्प का आउटपुट वोल्टेज समय के साथ बदलता है।
  • यह आमतौर पर वोल्ट्स प्रति माइक्रोसेकंड (V/µs) में मापी जाती है। उच्च स्लू रेट उच्च आवृत्ति अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक होता है।
4.4.10 गैन (Gain)
  • यह ऑप-ऐम्प द्वारा इनपुट सिग्नल को बढ़ाने का गुणांक होता है।
  • गैन को बाहरी रेसिस्टर्स के साथ सेट किया जाता है और यह विशेष अनुप्रयोगों के लिए समायोजित किया जा सकता है।
4.4.11 बैंडविड्थ (Bandwidth)
  • यह वह आवृत्तियों की सीमा होती है जिसमें ऑप-ऐम्प अपने निर्दिष्ट गैन को बनाए रखता है।
  • ऑप-ऐम्प्स आमतौर पर उच्च आवृत्तियों पर गैन में गिरावट दिखाते हैं (जिसे गैन-बैंडविड्थ प्रोडक्ट कहा जाता है)।
4.4.12 आउटपुट (Output)
  • यह वह अंतिम विस्तृत सिग्नल होता है जो ऑप-ऐम्प द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • यह अन्य घटकों जैसे ट्रांजिस्टर या मोटर्स को चला सकता है, जो अनुप्रयोग पर निर्भर करता है।
4.4.13 शॉर्ट सर्किट करंट (Short Circuit Current)
  • यह वह अधिकतम करंट होता है जिसे ऑप-ऐम्प शॉर्ट सर्किट की स्थिति में आपूर्ति कर सकता है।
  • ऑप-ऐम्प को शॉर्ट सर्किट के बिना क्षति के सहन करने के लिए सक्षम होना चाहिए।

4.5 ऑप-ऐम्प का उपयोग विभिन्न कॉन्फ़िगरेशन में

ऑप-ऐम्प्स बहुत ही बहुमुखी घटक होते हैं, जो सिग्नल कंडीशनिंग में विभिन्न कार्यों को करने के लिए विभिन्न कॉन्फ़िगरेशन में उपयोग किए जाते हैं। नीचे कुछ सामान्य उपयोग दिए गए हैं:

4.5.1 इनवर्टिंग मोड (Inverting Mode)
  • इनवर्टिंग ऐम्प्लीफायर कॉन्फ़िगरेशन में इनपुट सिग्नल को ऑप-ऐम्प के इनवर्टिंग इनपुट पर लागू किया जाता है, जबकि नॉन-इनवर्टिंग इनपुट को सामान्यत: ग्राउंड किया जाता है। आउटपुट सिग्नल इनपुट सिग्नल का इनवर्टेड और वृद्धि हुआ रूप होता है।
  • समीकरण: Vout=(RfRin)VinV_{out} = -\left(\frac{R_f}{R_{in}}\right) V_{in}
4.5.2 नॉन-इनवर्टिंग मोड (Non-Inverting Mode)
  • नॉन-इनवर्टिंग ऐम्प्लीफायर कॉन्फ़िगरेशन में इनपुट सिग्नल को नॉन-इनवर्टिंग इनपुट पर लागू किया जाता है, और फीडबैक रेसिस्टर आउटपुट को इनवर्टिंग इनपुट से जोड़ता है। आउटपुट इनपुट के साथ समान फेज में होता है और इसे बढ़ाया जाता है।
  • समीकरण: Vout=(1+RfRin)VinV_{out} = \left(1 + \frac{R_f}{R_{in}}\right) V_{in}
4.5.3 एडर (Adder)
  • इनवर्टिंग ऐडर का उपयोग कई इनपुट सिग्नल्स को एक आउटपुट में जोड़ने के लिए किया जाता है। प्रत्येक इनपुट सिग्नल को इनवर्टिंग इनपुट पर रेसिस्टर के माध्यम से लागू किया जाता है।
  • समीकरण: Vout=(RfR1V1+RfR2V2+...)V_{out} = -\left(\frac{R_f}{R_1} V_1 + \frac{R_f}{R_2} V_2 + ... \right)
4.5.4 सबट्रैक्टर (Subtractor)
  • डिफरेंशियल ऐम्प्लीफायर का उपयोग एक सिग्नल से दूसरे सिग्नल को घटाने के लिए किया जाता है। यह दोनों इनपुट सिग्नल्स के बीच अंतर को बढ़ाता है।
  • समीकरण: Vout=(RfR1)(V2V1)V_{out} = \left(\frac{R_f}{R_1}\right) (V_2 - V_1)
4.5.5 डिफरेंशियल ऐम्प्लीफायर (Differential Amplifier)
  • डिफरेंशियल ऐम्प्लीफायर दोनों इनपुट सिग्नल्स के बीच अंतर को बढ़ाता है, और यह उन अनुप्रयोगों में उपयोगी होता है जहाँ शोर को अस्वीकार करना महत्वपूर्ण हो, जैसे कि सेंसर सिग्नल प्रोसेसिंग में।
  • समीकरण: Vout=(RfR1)(V2V1)V_{out} = \left(\frac{R_f}{R_1}\right) (V_2 - V_1)
4.5.6 इंस्ट्रूमेंटेशन ऐम्प्लीफायर (Instrumentation Amplifier)
  • इंस्ट्रूमेंटेशन ऐम्प्लीफायर एक उच्च-गैन डिफरेंशियल ऐम्प्लीफायर है जिसे बहुत उच्च इनपुट इम्पेडेंस और उच्च कॉमन-मोड रेजेक्शन की आवश्यकता वाले अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है।
  • कार्य: यह छोटे डिफरेंशियल सिग्नल्स को बड़े कॉमन-मोड शोर के साथ बढ़ा सकता है।

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