AC Distribution System in Hindi

 

एसी वितरण प्रणाली

एसी वितरण प्रणाली बिजली के वितरण के लिए जिम्मेदार है, जो ट्रांसमिशन नेटवर्क से उपभोक्ताओं तक विद्युत शक्ति पहुंचाती है। यह लाइनों, सबस्टेशनों और उपकरणों का एक नेटवर्क है जिसे उपभोक्ताओं तक बिजली वितरित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आइए एसी वितरण प्रणाली के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।


4.1 घटकों का वर्गीकरण और एक आदर्श वितरण प्रणाली की आवश्यकताएँ

घटकों का वर्गीकरण:

एसी वितरण प्रणाली के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं:

  1. ट्रांसमिशन लाइनें: ये उपभोक्ताओं तक बिजली लाने के लिए विद्युत ऊर्जा को सबस्टेशन से ले जाती हैं।
  2. सबस्टेशन: ये ट्रांसमिशन लाइनों से उच्च वोल्टेज को घटाकर वितरण वोल्टेज तक लाते हैं।
  3. ट्रांसफॉर्मर: ये उपकरण वोल्टेज को उपयोगकर्ताओं के लिए उपयुक्त स्तर तक घटाते या बढ़ाते हैं।
  4. फीडर लाइनें: ये विद्युत ऊर्जा को सबस्टेशन से स्थानीय वितरण बिंदुओं तक पहुंचाती हैं।
  5. वितरणकर्ता: ये लाइनों के माध्यम से बिजली उपभोक्ताओं तक पहुंचाई जाती है।
  6. सेवा लाइने: ये उपभोक्ताओं के परिसर को वितरण प्रणाली से जोड़ती हैं।

आदर्श वितरण प्रणाली की आवश्यकताएँ:

  1. विश्वसनीयता: यह बिना किसी विघ्न के बिजली प्रदान करनी चाहिए।
  2. प्रभावशीलता: प्रणाली को कम से कम ऊर्जा हानि के साथ काम करना चाहिए।
  3. लागत-प्रभावशीलता: स्थापना और रखरखाव की लागत कम होनी चाहिए।
  4. लचीलापन: भविष्य में लोड बदलाव और विस्तार के लिए यह प्रणाली लचीली होनी चाहिए।
  5. सुरक्षा: ओवरकरंट, शॉर्ट सर्किट और अन्य दोषों से सुरक्षा होनी चाहिए।
  6. सप्लाई की गुणवत्ता: वोल्टेज और आवृत्ति स्थिर होनी चाहिए।

4.2 प्राथमिक और द्वितीयक वितरण प्रणाली

प्राथमिक वितरण प्रणाली:

  • प्राथमिक वितरण प्रणाली, सबस्टेशन से विद्युत शक्ति को विभिन्न स्थानीय वितरण बिंदुओं तक पहुँचाती है। यह उच्च वोल्टेज स्तर पर काम करती है (आमतौर पर 11 kV, 33 kV या 66 kV)।
  • उदाहरण: पावर ट्रांसमिशन लाइनों द्वारा सबस्टेशन से फीडरों तक विद्युत ऊर्जा का वितरण।

द्वितीयक वितरण प्रणाली:

  • द्वितीयक वितरण प्रणाली, प्राथमिक वितरण प्रणाली से विद्युत शक्ति को उपभोक्ताओं तक ले जाती है, जो कम वोल्टेज (आमतौर पर 400 V या 230 V) पर काम करती है।
  • उदाहरण: अंतिम नेटवर्क जो घरों या व्यवसायों तक बिजली पहुँचाता है।

4.3 फीडर और वितरणकर्ता

फीडर:

  • फीडर प्राथमिक वितरण प्रणाली का एक हिस्सा होता है। यह विद्युत शक्ति को एक सबस्टेशन से वितरण ट्रांसफॉर्मर या स्थानीय वितरण नेटवर्क तक पहुँचाता है।
  • विशेषताएँ:
    • उच्च वोल्टेज (11 kV, 33 kV) पर काम करता है।
    • बड़े क्षेत्रों तक शक्ति पहुँचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
    • सामान्यत: कई वितरणकर्ताओं से जुड़ा होता है।

वितरणकर्ता:

  • वितरणकर्ता द्वितीयक वितरण प्रणाली का हिस्सा है। यह विद्युत शक्ति को फीडरों से उपभोक्ताओं के परिसर तक पहुँचाता है।
  • विशेषताएँ:
    • निम्न वोल्टेज (आमतौर पर 400 V) पर काम करता है।
    • उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करता है।

4.4 फीडर और वितरणकर्ता के डिज़ाइन में ध्यान देने योग्य कारक

  1. लोड घनत्व: जिन क्षेत्रों में अधिक लोड की आवश्यकता होती है, उनके लिए अधिक शक्ति वाले फीडर और वितरणकर्ता डिज़ाइन करने होते हैं।
  2. लाइन की लंबाई: जितनी लंबी फीडर या वितरणकर्ता लाइन होगी, उतना अधिक वोल्टेज ड्रॉप और पावर लॉस होगा।
  3. लागत: स्थापना और रखरखाव की लागत को ध्यान में रखना आवश्यक है।
  4. विश्वसनीयता: प्रणाली को दोषों से बचने और सेवा में रुकावट को न्यूनतम करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
  5. सुरक्षा: उचित इंसुलेशन, सुरक्षा उपकरण (जैसे फ्यूज़ और सर्किट ब्रेकर) और क्लियरेंस बनाए रखना जरूरी है।
  6. भविष्य की वृद्धि: डिज़ाइन में भविष्य में लोड वृद्धि को ध्यान में रखना चाहिए।

4.5 विभिन्न वितरण योजनाओं के प्रकार: रेडियल, रिंग और ग्रिड लेआउट

  1. रेडियल वितरण प्रणाली:

    • विवरण: इस प्रणाली में बिजली एक स्रोत से उपभोक्ताओं तक एक दिशा में प्रवाहित होती है।
    • विशेषताएँ:
      • सरल डिज़ाइन।
      • कम लागत।
      • दोषों के प्रति संवेदनशील; एक दोष पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है।
    • उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य।
  2. रिंग वितरण प्रणाली:

    • विवरण: इस प्रणाली में वितरण लाइनें एक रिंग या लूप में जुड़ी होती हैं। बिजली दोनों दिशाओं में प्रवाहित होती है, जो एक दोष की स्थिति में बैकअप प्रदान करती है।
    • विशेषताएँ:
      • रेडियल प्रणाली की तुलना में अधिक विश्वसनीय।
      • स्थापना में महंगा।
    • उदाहरण: शहरी क्षेत्रों में जहाँ विश्वसनीयता महत्वपूर्ण होती है।
  3. ग्रिड वितरण प्रणाली:

    • विवरण: ग्रिड प्रणाली में रेडियल और रिंग दोनों प्रणालियों का संयोजन होता है, जिसमें कई इंटरकनेक्टेड फीडर एक ग्रिड का निर्माण करते हैं।
    • विशेषताएँ:
      • अत्यधिक विश्वसनीय।
      • बड़ी लोड और दोषों को कुशलतापूर्वक संभाल सकता है।
      • जटिल और महंगा डिज़ाइन।
    • उदाहरण: बड़े शहरों या औद्योगिक क्षेत्रों में जहाँ उच्च विश्वसनीयता और उच्च लोड की आवश्यकता होती है।

4.6 वितरण उप-स्टेशन

4.6.1 वितरण उप-स्टेशनों का वर्गीकरण:

  1. स्टेप-डाउन उप-स्टेशन: ये उप-स्टेशन ट्रांसमिशन वोल्टेज (जैसे 33 kV) को घटाकर वितरण वोल्टेज (जैसे 11 kV) तक लाते हैं।
  2. वितरण उप-स्टेशन: ये उप-स्टेशन उपभोक्ताओं के पास स्थित होते हैं और 11 kV से 400 V तक बिजली वितरित करते हैं।

4.6.2 स्थल चयन:

वितरण उप-स्टेशन के लिए स्थल का चयन करते समय कई पहलुओं पर विचार किया जाता है:

  • लोड केंद्रों के पास: उप-स्टेशन को ऐसे स्थान पर स्थापित किया जाना चाहिए जहाँ विद्युत मांग अधिक हो।
  • सुलभता: साइट को आसान पहुँच के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए ताकि रखरखाव और आपातकालीन मरम्मत संभव हो।
  • पर्यावरणीय कारक: स्थल को बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचा जाना चाहिए।
  • सुरक्षा: स्थल को किसी भी प्रकार के खतरे से मुक्त होना चाहिए जो उपकरण या कर्मचारियों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।

4.6.3 वितरण उप-स्टेशनों के फायदे, नुकसान और अनुप्रयोग:

फायदे:

  • वोल्टेज नियमन: उप-स्टेशन वोल्टेज स्तरों को स्थिर बनाए रखते हैं।
  • विश्वसनीयता: यह निरंतर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद करता है।
  • लागत-प्रभावशीलता: उप-स्टेशनों को उपभोक्ताओं के पास स्थापित करने से ट्रांसमिशन हानि कम होती है।

नुकसान:

  • उच्च प्रारंभिक निवेश: उप-स्टेशन निर्माण में भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।
  • रखरखाव लागत: इनका नियमित रखरखाव आवश्यक है।

अनुप्रयोग:

  • शहरी क्षेत्रों में: उप-स्टेशन उच्च बिजली मांग वाले क्षेत्रों के पास बनाए जाते हैं।
  • औद्योगिक क्षेत्रों में: इनका उपयोग उद्योगों को बड़ी मात्रा में बिजली प्रदान करने के लिए किया जाता है।

4.7 33/11 kV सब-स्टेशन, 11 kV/400 V सब-स्टेशन का सिंगल लाइन आरेख (लेआउट)

  • 33/11 kV सब-स्टेशन का लेआउट:

    • 33/11 kV सब-स्टेशन ट्रांसमिशन वोल्टेज को 33 kV से घटाकर 11 kV तक लाता है, जो स्थानीय वितरण के लिए उपयुक्त होता है।
    • इसमें ट्रांसफॉर्मर, सर्किट ब्रेकर, आइसोलेटर और बसबार होते हैं जो शक्ति वितरण को नियंत्रित करते हैं।
  • 11 kV/400 V सब-स्टेशन का लेआउट:

    • 11 kV/400 V सब-स्टेशन 11 kV से 400 V तक वोल्टेज को घटाता है, जो उपभोक्ताओं के अंतिम वितरण के लिए उपयोग होता है।
    • इसमें ट्रांसफॉर्मर यूनिट्स, वितरण बोर्ड और सुरक्षा उपकरण होते हैं।

4.8 घटकों के प्रतीक और उनके कार्य

यहाँ कुछ सामान्य प्रतीक दिए गए हैं जो वितरण प्रणालियों में उपयोग किए जाते हैं और उनके कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. ट्रांसफॉर्मर (T):

    • कार्य: वोल्टेज को बढ़ाना या घटाना।
  2. सर्किट ब्रेकर (CB):

    • कार्य: दोष की स्थिति में विद्युत प्रवाह को रोकता है।
  3. बसबार (BB):

    • कार्य: विभिन्न सर्किटों को जोड़ने और शक्ति वितरण के लिए कंडक्टर।
  4. स्विच (SW):

    • कार्य: सर्किट को खोलने या बंद करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  5. आइसोलेटर (IS):

    • कार्य: रखरखाव के दौरान सिस्टम के हिस्सों को डिस्कनेक्ट करता है।
  6. फीडर (F):

    • कार्य: विद्युत शक्ति को उप-स्टेशन से स्थानीय वितरण बिंदुओं तक ले जाता है।
  7. वितरणकर्ता (D):

    • कार्य: फीडरों से उपभोक्ताओं तक बिजली वितरण करता है।
  8. सुरक्षा रिले (PR):

    • कार्य: दोषों का पता लगाकर सर्किट ब्रेकर को सक्रिय करता है।

निष्कर्ष

एसी वितरण प्रणाली विद्युत शक्ति को उप-स्टेशनों से उपभोक्ताओं तक वितरित करने का एक महत्वपूर्ण घटक है। प्रणाली का डिज़ाइन, घटक, और लेआउट यह सुनिश्चित करते हैं कि यह विश्वसनीय, प्रभावी और सुरक्षित रूप से काम करे। फीडरों, वितरणकर्ताओं, और उप-स्टेशनों को समझकर, इंजीनियर बेहतर प्रणालियों को डिजाइन कर सकते हैं जो शहरी और ग्रामीण बिजली वितरण दोनों के लिए उपयुक्त हों।

Post a Comment

0 Comments