UNIT 2: DEVELOPMENT ACTIVITIES in hindi

 

UNIT 2: DEVELOPMENT ACTIVITIES

यह यूनिट सॉफ़्टवेयर सिस्टम्स के विकास में शामिल मुख्य गतिविधियों पर केंद्रित है। इन गतिविधियों में आवश्यकताएँ एकत्र करना और उनका विश्लेषण करना, सॉफ़्टवेयर वास्तुकला डिजाइन करना, उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस बनाना, और कोडिंग और डिबगिंग तकनीकों पर काम करना शामिल है। साथ ही, हम सॉफ़्टवेयर के अंदर बग्स को हल करने के लिए डिबगिंग तकनीकों के बारे में भी चर्चा करेंगे।


2.1. Development Activities

डेवलपमेंट एक्टिविटी का मतलब है सॉफ़्टवेयर बनाने की प्रक्रिया में व्यवस्थित कदमों का पालन करना, जो आवश्यकताओं को समझने से लेकर अंतिम उत्पाद को प्रस्तुत करने तक के सभी चरणों को कवर करता है। इस प्रक्रिया में सॉफ़्टवेयर को ठीक से योजना बनाकर, डिज़ाइन करके, कोडिंग करके और परीक्षण और डिबगिंग करके विकसित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सॉफ़्टवेयर निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करता है और प्रभावी रूप से कार्य करता है।


2.1.1. Requirements Gathering and Analysis

Requirements Gathering सॉफ़्टवेयर विकास में पहला कदम है, जिसमें डेवलपमेंट टीम क्लाइंट या अंतिम उपयोगकर्ताओं के साथ मिलकर सॉफ़्टवेयर की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को एकत्र करती है। इस कदम में यह समझना शामिल है कि सॉफ़्टवेयर को क्या करना है, यह कैसे कार्य करेगा, और परियोजना के समग्र लक्ष्य क्या होंगे।

प्रक्रिया:

  1. जानकारी एकत्र करना: स्टेकहोल्डर से मिलकर सॉफ़्टवेयर की इच्छित कार्यक्षमता के बारे में जानकारी एकत्र करें। साक्षात्कार, सर्वेक्षण, प्रश्नावली, आदि का उपयोग करें।
  2. जानकारी का विश्लेषण करना: एकत्रित डेटा को व्यवस्थित करें और यह निर्धारित करें कि कौन सी आवश्यकताएँ कार्यात्मक हैं (सॉफ़्टवेयर को क्या करना चाहिए) और कौन सी गैर-कार्यात्मक हैं (प्रदर्शन, सुरक्षा, उपयोगिता)।
  3. Requirement Specification तैयार करना: एकत्रित जानकारी को एक औपचारिक दस्तावेज़ या Software Requirement Specification (SRS) में परिवर्तित करें, जिसमें सॉफ़्टवेयर से अपेक्षित सुविधाओं और कार्यात्मकताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाया जाए।
  4. Prioritize Requirements: उन आवश्यकताओं को पहचानें जो सॉफ़्टवेयर को पूरा करना चाहिए और उन्हें लागू करने के लिए प्राथमिकता दें।

Requirements Gathering का Flowchart:

Stakeholder Interviews --> Data Collection --> Organize Information --> Analyze Needs --> Create SRS Document --> Prioritize Features

उदाहरण:

यदि आप एक ई-कॉमर्स वेबसाइट विकसित कर रहे हैं, तो आवश्यकताओं में शामिल हो सकते हैं:

  • उपयोगकर्ता पंजीकरण और लॉगिन।
  • उत्पाद सूची।
  • शॉपिंग कार्ट और चेकआउट सिस्टम।
  • भुगतान गेटवे का एकीकरण।

2.2. Design Concepts

जब आवश्यकताएँ एकत्र की जाती हैं, तो अगला कदम सॉफ़्टवेयर का डिज़ाइन करना है। इस चरण में यह योजना बनाई जाती है कि सॉफ़्टवेयर कैसे कार्य करेगा, सिस्टम के घटक कैसे इंटरैक्ट करेंगे, और उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस (UI) कैसा होगा। डिज़ाइन को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है: Software Architecture और UI Design

2.2.1. Software Architecture and Architectural Styles

Software Architecture सॉफ़्टवेयर सिस्टम की समग्र संरचना को संदर्भित करता है। यह सॉफ़्टवेयर और परियोजना के लिए एक ब्लूप्रिंट होता है, जो यह परिभाषित करता है कि सिस्टम के घटक आपस में कैसे जुड़े होंगे और डेटा सिस्टम के माध्यम से कैसे प्रवाहित होगा।

Architectural Styles विभिन्न दृष्टिकोण हैं जिनसे सॉफ़्टवेयर सिस्टम को संरचित किया जा सकता है। कुछ सामान्य आर्किटेक्चरल स्टाइल्स निम्नलिखित हैं:

  1. Monolithic Architecture:

    • सभी घटक एकल इकाई में शामिल होते हैं।
    • इसे विकसित करना आसान होता है, लेकिन स्केल करना मुश्किल है।

    Monolithic Architecture का Diagram:

    +-----------------+ | Application | | (Single Unit) | +-----------------+ | Database | | Logic | | UI | +-----------------+
  2. Client-Server Architecture:

    • सिस्टम को दो मुख्य घटकों में विभाजित किया जाता है: क्लाइंट (फ्रंटेंड) और सर्वर (बैकेंड)।
    • क्लाइंट सर्वर से अनुरोध करता है, और सर्वर उस अनुरोध के साथ डेटा प्रदान करता है।

    Client-Server Architecture का Diagram:

    +--------+ +--------+ | Client | <--> | Server | +--------+ +--------+
  3. Microservices Architecture:

    • सिस्टम को छोटे, स्वतंत्र सेवाओं में विभाजित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट व्यापार कार्य के लिए जिम्मेदार होता है।
    • यह स्केलेबिलिटी और लचीलापन प्रदान करता है।

    Microservices Architecture का Diagram:

    +---------------------+ | Service 1 | +---------------------+ | Service 2 | +---------------------+ | Service 3 | +---------------------+
  4. Layered (N-tier) Architecture:

    • सॉफ़्टवेयर घटकों को परतों में व्यवस्थित किया जाता है, और प्रत्येक परत एक विशिष्ट कार्य करती है।
    • सामान्य परतों में प्रस्तुति, व्यापार लॉजिक और डेटा एक्सेस परतें शामिल होती हैं।

    Layered Architecture का Diagram:

    +-------------------+ | Presentation Layer| +-------------------+ | Business Logic | +-------------------+ | Data Access Layer | +-------------------+

2.2.2. Basic UI Design

यूजर इंटरफ़ेस (UI) डिज़ाइन का मतलब है वह इंटरफ़ेस बनाना जिसके माध्यम से उपयोगकर्ता सॉफ़्टवेयर से इंटरैक्ट करेंगे। एक अच्छा UI सहज, उपयोगकर्ता के अनुकूल, और प्रतिक्रियाशील होना चाहिए।

  1. लेआउट: स्क्रीन पर बटन, मेनू, आइकन और टेक्स्ट का स्थान।
  2. संगतता: तत्वों (बटन, टेक्स्ट आकार, रंगों) में एकरूपता बनाए रखें ताकि उपयोगकर्ता अनुभव में सामंजस्य बने।
  3. उपयोगिता: यह सुनिश्चित करें कि उपयोगकर्ता सिस्टम को आसानी से समझ सकें और नेविगेट कर सकें।

Basic UI Design Example:

  • Login Screen:
    • उपयोगकर्ता नाम और पासवर्ड के लिए इनपुट फ़ील्ड।
    • लॉगिन बटन।
    • पासवर्ड भूल गए लिंक।

Basic UI Design का Diagram (Login Screen):

+------------------------+ | Login Screen | |------------------------| | Username: [__________] | | Password: [__________] | | | | [ Login ] [ Forgot ]| +------------------------+

UI Design Principles:

  1. सादगी: केवल आवश्यक तत्वों पर ध्यान केंद्रित करें, ताकि स्क्रीन पर कोई अव्यवस्था न हो।
  2. संगतता: पृष्ठों पर एक समान रंग योजना और लेआउट का उपयोग करें।
  3. सुलभता: सुनिश्चित करें कि UI सभी उपयोगकर्ताओं के लिए सुलभ है, जिनमें विकलांग उपयोगकर्ता भी शामिल हैं।

2.3. Effective Coding and Debugging Techniques

कोडिंग वह चरण है जब डिज़ाइन को एक कार्यशील प्रोग्राम में बदला जाता है। प्रभावी कोडिंग का मतलब है स्वच्छ, पठनीय और बनाए रखने योग्य कोड लिखना। डिबगिंग वह प्रक्रिया है जिसमें सॉफ़्टवेयर में त्रुटियों (बग्स) का पता लगाना और उन्हें ठीक करना शामिल है।

Effective Coding Practices:

  1. Modular Code लिखें: कोड को छोटे, पुन: उपयोगी फ़ंक्शन्स या मेथड्स में विभाजित करें।
  2. Meaningful Variable Names का उपयोग करें: वेरिएबल्स, फ़ंक्शन्स, और क्लासेस का नाम इस आधार पर रखें कि वे क्या दर्शाते हैं, ताकि कोड समझने में आसान हो।
  3. Code में Comments डालें: कोड के जटिल हिस्सों को स्पष्ट करने के लिए टिप्पणियाँ जोड़ें।
  4. Coding Standard का पालन करें: कोडिंग के लिए एक समान इंडेंटेशन, नामकरण की शैलियाँ और फॉर्मेटिंग का पालन करें।

Debugging Techniques:

  1. Print Statements: वेरिएबल्स के मानों को दिखाने के लिए प्रिंट स्टेटमेंट्स का उपयोग करें और कार्यप्रवाह का ट्रैक रखें।
  2. Breakpoints: कोड में ब्रीकपॉइंट्स सेट करें ताकि आप विशेष बिंदुओं पर डेटा और वेरिएबल्स की जांच कर सकें।
  3. Debugging Tools का उपयोग करें: IDEs जैसे Visual Studio, Eclipse, या PyCharm में डिबगिंग टूल्स होते हैं जो आपको वेरिएबल्स की जांच करने और कोड के माध्यम से स्टेप-थ्रू करने की अनुमति देते हैं।
  4. Unit Testing: कोड के प्रत्येक भाग का परीक्षण करें यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह ठीक से काम कर रहा है।

Debugging Process का Flowchart:

Start Debugging | v Check Code for Errors | v Use Print Statements / Breakpoints | v Locate Bug | v Fix Bug and Test Again | v End Debugging

निष्कर्ष

इस यूनिट में सॉफ़्टवेयर विकास की मुख्य गतिविधियाँ जैसे requirements gathering, software design, और coding/debugging techniques को कवर किया गया। इन गतिविधियों को सही ढंग से समझना और लागू करना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि हम ऐसा सॉफ़्टवेयर बना सकें जो प्रभावी, विश्वसनीय और उपयोगकर्ता के लिए आसान हो। सॉफ़्टवेयर आर्किटेक्चर, UI डिज़ाइन सिद्धांतों और डिबगिंग तकनीकों को लागू करके, हम सॉफ़्टवेयर बना सकते हैं जो उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं को पूरा करता हो और बनाए रखना आसान हो।

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