Unit 3 Transmission and Steering System Notes in Hindi

 Hello Everyone, Welcome to Rajasthan Polytechnic Blogs.

Subject - AUTOMOBILE ENGINEERING ME 40041
Branch - Mechanical Engineering
Semester - 4th Semester

📍⚡ Important 
👉 WhatsApp Group - Join Now
👉 Telegram Channel - Join Now

UNIT-III: ट्रांसमिशन और स्टीयरिंग सिस्टम

वाहन में ट्रांसमिशन सिस्टम इंजन से पहियों तक शक्ति को स्थानांतरित करता है, जिससे वाहन सुचारू रूप से चल सकता है। वहीं, स्टीयरिंग सिस्टम वाहन की दिशा को नियंत्रित करने का कार्य करता है। इस अध्याय में हम क्लच, गियरबॉक्स, प्रोपेलर शाफ्ट, रियर एक्सल और स्टीयरिंग सिस्टम के बारे में विस्तार से जानेंगे।


3.1 क्लच का सामान्य विन्यास और कार्य करने का सिद्धांत

  • क्लच एक यांत्रिक उपकरण है जो इंजन को ट्रांसमिशन सिस्टम से जोड़ने और अलग करने का कार्य करता है।

  • यह घर्षण (friction) के सिद्धांत पर कार्य करता है, जिसमें दो सतहों के बीच घर्षण बल लागू करके टॉर्क स्थानांतरित किया जाता है।

  • क्लच से गियर परिवर्तन सुचारू रूप से होता है, झटकों को रोका जा सकता है और वाहन पर बेहतर नियंत्रण मिलता है।


3.2 क्लच के प्रकार और उनकी संरचना

(a) सिंगल प्लेट क्लच (Single Plate Clutch)

  • संरचना:

    • इसमें एक ही घर्षण प्लेट (friction plate) होती है, जो फ्लाईव्हील और प्रेशर प्लेट के बीच स्थित होती है।

    • फ्रिक्शन लाइनिंग घर्षण उत्पन्न करती है जिससे क्लच सुचारू रूप से कार्य करता है।

  • कार्य करने का तरीका:

    • जब क्लच पेडल दबाया जाता है, तो फ्रिक्शन प्लेट मुक्त हो जाती है और इंजन ट्रांसमिशन से अलग हो जाता है।

    • जब क्लच पेडल छोड़ा जाता है, तो फ्रिक्शन प्लेट फिर से फ्लाईव्हील और प्रेशर प्लेट के बीच आ जाती है, जिससे पावर ट्रांसमिट होता है।

  • उपयोग: हल्के वाहनों जैसे कारों और मोटरसाइकिलों में।


(b) मल्टी-प्लेट क्लच (Multi-Plate Clutch)

  • संरचना:

    • इसमें कई फ्रिक्शन प्लेटें होती हैं जिससे घर्षण सतह बढ़ जाती है।

    • ये प्लेटें धातु प्लेटों के साथ वैकल्पिक रूप से व्यवस्थित होती हैं।

  • कार्य करने का तरीका:

    • यह सिंगल प्लेट क्लच की तरह ही कार्य करता है लेकिन इसमें अधिक शक्ति स्थानांतरित करने की क्षमता होती है

  • उपयोग: रेसिंग कारों, भारी वाहनों और मोटरसाइकिलों में।


(c) सेंट्रीफ्यूगल क्लच (Centrifugal Clutch)

  • संरचना:

    • इसमें घूर्णीय बल (centrifugal force) का उपयोग करके क्लच को स्वचालित रूप से जोड़ने और अलग करने की व्यवस्था होती है।

    • इसमें वेटेड शूज़ (weighted shoes), स्प्रिंग्स और ड्रम होते हैं।

  • कार्य करने का तरीका:

    • कम गति पर, स्प्रिंग्स शूज़ को ड्रम से अलग रखते हैं, जिससे क्लच डिसएंगेज रहता है।

    • जैसे ही इंजन की गति बढ़ती है, सेंट्रीफ्यूगल बल शूज़ को बाहर धकेलता है, जिससे वे ड्रम के संपर्क में आते हैं और क्लच जुड़ जाता है।

  • उपयोग: स्कूटर और स्वचालित दोपहिया वाहनों में।


3.3 गियर अनुपात की आवश्यकता और गियरबॉक्स के प्रकार

(a) गियर अनुपात की आवश्यकता

  • इंजन सीधा पहियों को आवश्यक टॉर्क और गति नहीं दे सकता, इसलिए विभिन्न सड़क स्थितियों के अनुसार गियर बदलने की जरूरत होती है।

  • गियरबॉक्स का उपयोग टॉर्क और गति को बदलने के लिए किया जाता है

  • निचले गियर अधिक टॉर्क प्रदान करते हैं (स्टार्टिंग और चढ़ाई के लिए), जबकि ऊपरी गियर उच्च गति के लिए उपयुक्त होते हैं।


(b) गियरबॉक्स के प्रकार

(i) स्लाइडिंग मेश गियरबॉक्स (Sliding Mesh Gearbox)

  • संरचना:

    • इसमें स्लाइडिंग गियर्स होते हैं, जिन्हें चालक को मैन्युअली लगाना पड़ता है।

  • कार्य करने का तरीका:

    • गियर्स को स्लाइड करके अलग-अलग गति प्राप्त की जाती है।

    • इसमें डबल-डिक्लचिंग (Double Declutching) की आवश्यकता होती है।

  • उपयोग: पुराने ट्रकों और बसों में।

(ii) कॉन्स्टेंट मेश गियरबॉक्स (Constant Mesh Gearbox)

  • संरचना:

    • इसमें सभी गियर्स हमेशा जुड़े रहते हैं, लेकिन एक समय में केवल एक जोड़ा गियर ही संलग्न होता है।

  • कार्य करने का तरीका:

    • डॉग क्लच द्वारा आवश्यक गियर को मुख्य शाफ्ट से जोड़ा जाता है।

  • उपयोग: मध्यम गति वाले वाहनों में।

(iii) सिंक्रोमेश गियरबॉक्स (Synchromesh Gearbox)

  • संरचना:

    • यह कॉन्स्टेंट मेश गियरबॉक्स के समान होता है लेकिन इसमें सिंक्रोनाइज़र होते हैं।

  • कार्य करने का तरीका:

    • सिंक्रोनाइज़र गियरों की गति को मिलाकर सुचारू बदलाव सुनिश्चित करते हैं।

  • उपयोग: आधुनिक कारों में।

(iv) स्वचालित गियरबॉक्स (Automatic Transmission - AT)

  • इसमें हाइड्रोलिक टॉर्क कन्वर्टर और प्लेनेटरी गियर्स का उपयोग किया जाता है।

  • कोई क्लच पेडल नहीं होता, और गियर शिफ्टिंग स्वचालित रूप से होती है।

  • उपयोग: लक्जरी कारों, एसयूवी और आधुनिक वाहनों में।


3.4 प्रोपेलर शाफ्ट और यूनिवर्सल जॉइंट

(a) प्रोपेलर शाफ्ट (Propeller Shaft)

  • उद्देश्य: रियर-व्हील-ड्राइव (RWD) वाहनों में गियरबॉक्स से रियर एक्सल तक पावर ट्रांसफर करता है

  • संरचना:

    • दोनों सिरों पर यूनिवर्सल जॉइंट्स (U-joints) लगे होते हैं जो लचीलापन प्रदान करते हैं।

(b) यूनिवर्सल जॉइंट (Universal Joint - U-Joint)

  • प्रोपेलर शाफ्ट को घूर्णन और झुकाव दोनों की अनुमति देता है

  • यह सड़क की ऊबड़-खाबड़ सतहों पर भी सुचारू पावर ट्रांसमिशन सुनिश्चित करता है


3.5 रियर एक्सल के प्रकार

(a) सेमी-फ्लोटिंग एक्सल (Semi-Floating Axle)

  • व्हील हब सीधे एक्सल पर लगे होते हैं।

  • उपयोग: हल्के वाहनों में।

(b) फुल-फ्लोटिंग एक्सल (Full-Floating Axle)

  • एक्सल केवल टॉर्क ट्रांसफर करता है, जबकि भार एक्सल हाउसिंग सहन करता है।

  • उपयोग: भारी ट्रकों में।


3.6 स्टीयरिंग सिस्टम के प्रकार और कार्य

(a) मैनुअल स्टीयरिंग

  • पूरी तरह यांत्रिक लिंकेज द्वारा काम करता है।

  • प्रकार:

    • रैक एंड पिनियन – आधुनिक कारों में।

    • वर्म एंड रोलर – ट्रकों में।

(b) पावर स्टीयरिंग

  • हाइड्रोलिक या इलेक्ट्रिक पावर का उपयोग करता है।

  • प्रकार:

    • हाइड्रोलिक पावर स्टीयरिंग (HPS)

    • इलेक्ट्रिक पावर स्टीयरिंग (EPS)


निष्कर्ष

इस अध्याय में हमने क्लच, गियरबॉक्स, प्रोपेलर शाफ्ट, रियर एक्सल और स्टीयरिंग सिस्टम का अध्ययन किया।

Post a Comment

0 Comments