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Course Code EE 3005
Course Title Renewable Energy Power Plants
💥💥UNIT 1💥💥
1. सोलर पीवी और कंसंट्रेटेड सोलर पावर प्लांट्स
सौर ऊर्जा के दो प्रमुख प्रकार होते हैं - सोलर फोटovoltaिक (पीवी) और कंसंट्रेटेड सोलर पावर (CSP)। इन दोनों प्रकारों का उद्देश्य सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके बिजली का उत्पादन करना है, लेकिन इनकी तकनीकी प्रक्रियाएँ अलग होती हैं।
1.1 भारत का सोलर मानचित्र (Solar Map of India)
भारत में सौर ऊर्जा का बहुत अच्छा संभावनाएं हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में सूर्य की विकिरण (radiation) की मात्रा अलग-अलग होती है।
- गर्म क्षेत्र जैसे राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में सौर विकिरण की मात्रा सबसे अधिक होती है।
- शीतल और आद्र मौसम वाले क्षेत्र जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कुछ अन्य क्षेत्रों में सौर विकिरण कम होता है।
भारत में सोलर मानचित्र यह दर्शाता है कि किस क्षेत्र में सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए अधिक उपयुक्त परिस्थितियाँ हैं।
1.2 वैश्विक सौर ऊर्जा विकिरण (Global Solar Power Radiation)
सौर ऊर्जा विकिरण से तात्पर्य सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचने वाली ऊर्जा की मात्रा से है। यह ऊर्जा दिन के समय सूर्य की स्थिति पर निर्भर करती है।
- सौर विकिरण को किलोकैलोरी प्रति वर्ग मीटर (kcal/m²) या किलोवॉट प्रति वर्ग मीटर (kW/m²) में मापा जाता है।
- उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, जैसे कि अफ्रीका, मध्य पूर्व, और भारत, उच्चतम विकिरण स्तर होते हैं।
- उच्चतम विकिरण क्षेत्र में सौर पावर प्लांट्स को स्थापित करना आर्थिक रूप से लाभकारी होता है।
1.3 कंसंट्रेटेड सोलर पावर (CSP) प्लांट्स
कंसंट्रेटेड सोलर पावर (CSP) तकनीक सूर्य की ऊर्जा को केंद्रित करने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग करती है। इस प्रक्रिया में सूरज की रोशनी को एक जगह पर एकत्रित किया जाता है, ताकि उसे उच्च तापमान पर परिवर्तित किया जा सके और उससे बिजली का उत्पादन किया जा सके।
मुख्य CSP प्रणालियाँ हैं:
- पावर टॉवर
- पैराबोलिक ट्रफ
- पैराबोलिक डिश
1.4 निर्माण और कार्यविधि
यहाँ हम CSP तकनीकों के निर्माण और कार्यविधियों को विस्तार से समझेंगे:
1.4.1 पावर टॉवर (Power Tower)
पावर टॉवर CSP प्रणाली में एक ऊँचा टॉवर होता है, जो सोलर रेसीवर्स (receivers) से घिरा होता है। यह टॉवर सूर्य की रोशनी को केंद्रित करता है और उसे एक रिसीवर पर भेजता है।
- निर्माण: पावर टॉवर के आसपास सैकड़ों आईने होते हैं, जो सूर्य की रोशनी को एक टॉवर की दिशा में केंद्रित करते हैं।
- कार्यविधि: सूर्य की रोशनी रिसीवर पर पड़ती है, जिससे उच्च तापमान उत्पन्न होता है। फिर इसे एक स्टीम टर्बाइन या हीट इंजन द्वारा बिजली में बदल दिया जाता है।
1.4.2 पैराबोलिक ट्रफ (Parabolic Trough)
यह प्रणाली लंबी, घुमावदार, पैराबोलिक (वक्र) शीट से बनी होती है, जो सूर्य की रोशनी को एक छोटे रिसीवर पर केंद्रित करती है।
- निर्माण: इन ट्रफ्स का आकार पैराबोलिक होता है और इनका आकार सूरज के प्रकाश को एक केंद्रित बिंदु पर लाने के लिए डिजाइन किया जाता है।
- कार्यविधि: सूर्य की रोशनी को रिसीवर में भेजा जाता है, जहाँ यह तापमान बढ़ाता है। फिर इस गर्मी का उपयोग इलेक्ट्रिसिटी उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
1.4.3 पैराबोलिक डिश (Parabolic Dish)
यह एक छोटी, उच्च दक्षता वाली CSP प्रणाली होती है, जो सूरज की रोशनी को एक रिसीवर पर केंद्रित करती है।
- निर्माण: पैराबोलिक डिश की संरचना एक घुमावदार आकार की होती है जो सूरज की रोशनी को एक छोटे रिसीवर पर केन्द्रित करती है।
- कार्यविधि: जैसे ही सूर्य की रोशनी रिसीवर पर पड़ती है, उसका तापमान काफी बढ़ जाता है और इससे गर्मी उत्पन्न होती है, जिससे ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित किया जाता है।
1.5 सोलर फोटovoltaिक (पीवी) पावर प्लांट
सोलर पीवी पावर प्लांट सूर्य की रोशनी को सीधे बिजली में बदलते हैं। इसमें सौर पैनल्स का उपयोग होता है, जो सूर्य की रोशनी को अवशोषित करते हैं और उसे इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
1.5.1 घटक लेआउट (Components Layout)
सोलर पीवी पावर प्लांट में निम्नलिखित प्रमुख घटक होते हैं:
- सोलर पैनल्स (Photovoltaic Panels)
- इंवर्टर (Inverter)
- बिजली मीटर
- बैटरियां (optional, अगर स्टोर किया जाता है)
- मॉनिटरिंग सिस्टम
1.5.2 निर्माण (Construction)
- सोलर पैनल्स का सेटअप: सोलर पैनल्स को एक बड़े क्षेत्र में स्थापित किया जाता है, ताकि अधिक से अधिक सूर्य की रोशनी को अवशोषित किया जा सके।
- इंवर्टर का उपयोग: यह इलेक्ट्रिक शक्ति को सीधे उपयोग में आने योग्य एसी (alternating current) में बदलने के लिए जरूरी होता है।
1.5.3 कार्यविधि (Working)
सोलर पैनल सूर्य की रोशनी को सोखते हैं और उस ऊर्जा को बिजली में बदलते हैं। फिर उस बिजली को इंवर्टर द्वारा परिवर्तित किया जाता है और उसे ग्रिड में भेजा जाता है या स्टोर किया जाता है।
1.6 रुफटॉप सोलर पीवी पावर सिस्टम
रुफटॉप सोलर पावर सिस्टम वह सिस्टम होता है जो घरों या इमारतों की छत पर स्थापित किया जाता है। यह सूर्य की रोशनी को सोखने के लिए सोलर पैनल्स का उपयोग करता है और बिजली का उत्पादन करता है।
- निर्माण: इस प्रणाली में सोलर पैनल्स, बैटरियां (यदि आवश्यक हो), और एक इंवर्टर शामिल होते हैं।
- कार्यविधि: पैनल्स सूर्य की रोशनी को सोखते हैं और उसे एसी में परिवर्तित करके उपयोग करते हैं। अगर अधिक बिजली पैदा होती है, तो इसे ग्रिड में भेजा जा सकता है।
यह प्रणाली कम लागत में भी आसानी से स्थापित की जा सकती है और घरों या कार्यालयों के लिए एक प्रभावी ऊर्जा स्रोत साबित हो सकती है।
यहां तक कि सौर ऊर्जा की दो मुख्य तकनीकें सोलर पीवी और CSP, विभिन्न निर्माण विधियों और कार्यविधियों के माध्यम से सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग करके स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा प्राप्त करने का एक आदर्श तरीका प्रदान करती हैं।
💥💥UNIT 2💥💥
2. बड़े पवन ऊर्जा संयंत्र (Large Wind Power Plants)
पवन ऊर्जा संयंत्रों का उद्देश्य हवा की गतिज ऊर्जा को इलेक्ट्रिक ऊर्जा में बदलना है। पवन ऊर्जा संयंत्रों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बाँटा जाता है:
- बड़े पवन ऊर्जा संयंत्र
- छोटे पवन ऊर्जा संयंत्र
बड़े पवन ऊर्जा संयंत्रों में विशाल टर्बाइनों का उपयोग किया जाता है, जो अधिकतम ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं।
यहां हम बड़े पवन ऊर्जा संयंत्रों के विभिन्न पहलुओं को समझेंगे।
2.1 भारत का पवन मानचित्र (Wind Map of India)
भारत में पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए कई स्थानों पर उपयुक्त स्थितियां हैं। पवन मानचित्र यह दर्शाता है कि कौन से स्थान पर पवन ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है।
- पवन ऊर्जा संभावनाएं: भारत के तटीय क्षेत्रों, जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक में पवन ऊर्जा की सबसे अधिक संभावना होती है।
- उच्च पवन गति क्षेत्र: भारत के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से में पवन गति अधिक होती है, जो पवन टर्बाइनों के लिए आदर्श होते हैं।
- माप और वर्गीकरण: पवन ऊर्जा का आकलन विशेष रूप से पवन गति (m/s) और पवन घनत्व (wind density) के आधार पर किया जाता है।
2.2 पवन ऊर्जा घनत्व (Wind Power Density) – वॉट प्रति वर्ग मीटर
पवन ऊर्जा घनत्व वह माप है जो हवा की गति और हवा में स्थित ऊर्जा का संकेत देता है। इसे वॉट प्रति वर्ग मीटर (W/m²) में मापा जाता है।
- उच्च पवन ऊर्जा घनत्व: पवन ऊर्जा घनत्व जितना अधिक होता है, उतनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
- सामान्य मूल्य: यदि पवन घनत्व 400 W/m² से अधिक होता है, तो वह पवन टर्बाइन स्थापित करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- माप: पवन ऊर्जा घनत्व का माप हवा की गति, पवन की दिशा, और हवा के तापमान के आधार पर किया जाता है।
2.3 लिफ्ट और ड्रैग सिद्धांत (Lift and Drag Principle)
पवन टर्बाइन के पंखों का डिज़ाइन लिफ्ट और ड्रैग के सिद्धांत पर आधारित होता है।
- लिफ्ट: जब पंख हवा से संपर्क करते हैं, तो हवा पंख के ऊपर और नीचे के हिस्से में अलग-अलग गति से बहती है। इससे पंखों पर एक बल उत्पन्न होता है जिसे लिफ्ट कहा जाता है, और यह टर्बाइन को घुमा देता है।
- ड्रैग: ड्रैग वह बल है जो पंखों के खिलाफ हवा के प्रतिरोध के कारण उत्पन्न होता है। पवन टर्बाइन को अधिक से अधिक लिफ्ट प्राप्त करने के लिए पंखों का डिज़ाइन ड्रैग को कम करने के लिए किया जाता है।
2.4 घटक, लेआउट और कार्यविधि (Components, Layout, and Working)
पवन टर्बाइन के प्रमुख घटक होते हैं जो टर्बाइन के संचालन में मदद करते हैं।
2.4.1 गियरयुक्त प्रकार पवन ऊर्जा संयंत्र (Geared Type Wind Power Plants)
गियरयुक्त पवन टर्बाइन में एक गियरबॉक्स होता है जो पंखों के घूमने की गति को बढ़ाता है ताकि जनरेटर अधिक बिजली उत्पन्न कर सके।
- घटक:
- पंख (Blades)
- गियरबॉक्स (Gearbox)
- जनरेटर (Generator)
- टावर (Tower)
- नाभिक (Nacelle)
- कार्यविधि:
- पंख हवा से घूमते हैं और एक गियरबॉक्स के माध्यम से उस गति को बढ़ा लिया जाता है।
- यह गति जनरेटर को दी जाती है, जिससे विद्युत उत्पादन होता है।
2.4.2 डाइरेक्ट ड्राइव प्रकार पवन ऊर्जा संयंत्र (Direct Drive Type Wind Power Plants)
डाइरेक्ट ड्राइव प्रणाली में गियरबॉक्स की आवश्यकता नहीं होती। पंख सीधे जनरेटर से जुड़े होते हैं, जिससे गति को बिना गियरबॉक्स के जनरेटर तक पहुँचाया जाता है।
- घटक:
- पंख
- उच्च गति जनरेटर (High-Speed Generator)
- नाभिक और टावर
- कार्यविधि: पंखों द्वारा उत्पन्न गति को सीधे जनरेटर में भेजा जाता है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है।
2.5 स्थिर गति इलेक्ट्रिक जनरेटर (Constant Speed Electric Generators)
स्थिर गति जनरेटर एक स्थिर गति पर काम करते हैं, जिसका मतलब है कि इनका गति परिवर्तनशील नहीं होता।
2.5.1 स्क्विरल केज इंडक्शन जनरेटर (Squirrel Cage Induction Generators - SCIG)
यह एक प्रकार का इंडक्शन जनरेटर होता है, जिसमें स्थिर गति के साथ एक सर्पिल केज (squirrel cage) होता है।
- विशेषताएँ:
- कम लागत
- सरल डिजाइन
- उच्च दक्षता
- तापमान नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
2.5.2 वाउंड रोटर इंडक्शन जनरेटर (Wound Rotor Induction Generators - WRIG)
इसमें एक वाउंड रोटर होता है जो स्थिर गति पर काम करता है।
- विशेषताएँ:
- वाइंडिंग की मदद से स्थिर गति प्राप्त होती है।
- यह जनरेटर अधिक लचीलापन प्रदान करता है।
2.6 परिवर्तनीय गति इलेक्ट्रिक जनरेटर (Variable Speed Electric Generators)
परिवर्तनीय गति जनरेटर उन परिस्थितियों के लिए होते हैं जहां पवन की गति बदलती रहती है।
2.6.1 डाउबली-फेड इंडक्शन जनरेटर (Doubly-fed Induction Generator - DFIG)
यह एक प्रकार का इंडक्शन जनरेटर होता है जिसमें दो विद्युत आपूर्ति प्रणाली होती हैं।
- विशेषताएँ:
- पवन गति में बदलाव के साथ बिजली उत्पादन की दक्षता बनाए रखता है।
- उच्च दक्षता और लचीलापन।
2.6.2 वाउंड रोटर सिंक्रोनस जनरेटर (Wound Rotor Synchronous Generator - WRSG)
यह जनरेटर वाउंड रोटर और सिंक्रोनस गति तकनीकों का उपयोग करता है।
- विशेषताएँ:
- बेहतर स्थिरता और पावर फैक्टर।
- उच्च पवन गति पर कार्य करने में सक्षम।
2.6.3 परमानेंट मैग्नेट सिंक्रोनस जनरेटर (Permanent Magnet Synchronous Generator - PMSG)
इसमें स्थायी चुम्बक का उपयोग किया जाता है, जो विद्युत निर्माण में मदद करता है।
- विशेषताएँ:
- उच्च दक्षता
- विश्वसनीयता में वृद्धि
- पवन गति में उतार-चढ़ाव के बावजूद बिजली उत्पादन।
इस प्रकार, पवन ऊर्जा संयंत्रों के विभिन्न घटक, कार्यविधि और प्रकार यह सुनिश्चित करते हैं कि हवा से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को प्रभावी और कुशल तरीके से विद्युत में बदला जा सके।
💥💥UNIT 3💥💥
3. छोटे पवन टर्बाइन्स (Small Wind Turbines)
छोटे पवन टर्बाइन का उपयोग छोटे पैमाने पर पवन ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, जैसे घरों, व्यवसायों, या दूर-दराज क्षेत्रों में ऊर्जा आपूर्ति के लिए। छोटे पवन टर्बाइन में विभिन्न प्रकार के डिज़ाइन और घटक होते हैं, जो इनकी कार्यप्रणाली और स्थापना को प्रभावित करते हैं।
3.1 घटक और कार्यविधि (Components and Working of Small Wind Turbines)
छोटे पवन टर्बाइन के कार्य में पंखों, जनरेटर, और अन्य महत्वपूर्ण घटकों का सहयोग होता है। इन्हें दो मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है - क्षैतिज धुरी (Horizontal Axis) और लंबवत धुरी (Vertical Axis) पवन टर्बाइन।
3.1.1 क्षैतिज धुरी छोटे पवन टर्बाइन (Horizontal Axis Small Wind Turbine)
क्षैतिज धुरी पवन टर्बाइन सबसे सामान्य प्रकार का पवन टर्बाइन होता है, जिसमें पंख क्षैतिज दिशा में घुमते हैं। यह पवन ऊर्जा को अधिक कुशलता से अवशोषित करने में सक्षम होते हैं।
3.1.1.1 डाइरेक्ट ड्राइव प्रकार (Direct Drive Type)
- कार्यविधि:
इस प्रणाली में गियरबॉक्स की आवश्यकता नहीं होती। पंख सीधे जनरेटर से जुड़े होते हैं। जैसे ही पंख घूमते हैं, उसी गति से जनरेटर में ऊर्जा उत्पन्न होती है। - लाभ:
- कम रखरखाव
- अधिक विश्वसनीय
- उच्च दक्षता
- उदाहरण: छोटे घरों के लिए उपयुक्त।
3.1.1.2 गियरयुक्त प्रकार (Geared Type)
- कार्यविधि:
गियरबॉक्स की मदद से पंखों द्वारा उत्पन्न गति को बढ़ाया जाता है ताकि जनरेटर को उचित गति मिल सके। यह प्रणाली बड़े पवन टर्बाइन के समान होती है, लेकिन छोटे पैमाने पर। - लाभ:
- गियरबॉक्स के माध्यम से गति को नियंत्रित किया जा सकता है।
- अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है, जब हवा की गति कम हो।
- नुकसान:
- गियरबॉक्स की देखभाल की आवश्यकता होती है।
3.1.2 लंबवत धुरी छोटे पवन टर्बाइन (Vertical Axis Small Wind Turbine)
लंबवत धुरी पवन टर्बाइन में पंख लंबवत दिशा में घूमते हैं। ये टर्बाइन उन स्थानों के लिए उपयुक्त होते हैं जहां हवा की दिशा बार-बार बदलती रहती है।
3.1.2.1 डाइरेक्ट ड्राइव प्रकार (Direct Drive)
- कार्यविधि:
इसमें पंखों का सीधा जुड़ाव जनरेटर से होता है, और हवा के दबाव से उत्पन्न ऊर्जा सीधे जनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित होती है। - लाभ:
- कम रखरखाव
- उच्च दक्षता
- सरल डिजाइन
- उदाहरण: शहरी क्षेत्रों में उपयुक्त, जहां हवा की दिशा बदलती रहती है।
3.1.2.2 गियर ड्राइव (Geared Drive)
- कार्यविधि:
इसमें पंखों द्वारा उत्पन्न गति को बढ़ाने के लिए गियरबॉक्स का उपयोग किया जाता है। गियरबॉक्स जनरेटर को आवश्यक उच्च गति प्रदान करता है। - लाभ:
- गियरबॉक्स के माध्यम से गति नियंत्रण
- अधिक ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है जब हवा की गति कम हो।
- नुकसान:
- गियरबॉक्स का रखरखाव और देखभाल करना पड़ता है।
3.1.3 टावर के प्रकार (Types of Towers)
पवन टर्बाइन को हवा की अधिकतम गति प्राप्त करने के लिए ऊंचाई पर स्थापित किया जाता है। टावर पवन टर्बाइन की संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं।
मुख्य प्रकार के टावर होते हैं:
- लंगर टावर (Guyed Towers): ये हल्के होते हैं और हवा के प्रभाव से टर्बाइन को स्थिर बनाए रखते हैं।
- लंबवत टावर (Monopole Towers): ये एक ही ध्रुव के रूप में होते हैं और अधिक स्थिरता प्रदान करते हैं।
- लोग-युक्त टावर (Lattice Towers): ये मजबूत होते हैं और अधिक ऊंचाई पर टर्बाइन को सहारा देने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
3.1.4 छोटे पवन टर्बाइनों की स्थापना (Installation of Small Wind Turbines)
पवन टर्बाइन की स्थापना की प्रक्रिया का चयन स्थान और उद्देश्य पर निर्भर करता है।
3.1.4.1 छतों पर स्थापना (Rooftops)
- विधि: छोटे पवन टर्बाइन को आवासीय या व्यावसायिक भवनों की छतों पर स्थापित किया जा सकता है।
- लाभ:
- सीमित स्थान में पवन ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है।
- शहरों में ऊर्जा आपूर्ति के लिए उपयुक्त।
- ध्यान देने योग्य बातें:
- पवन की दिशा और गति की स्थिति का मूल्यांकन करें।
- टर्बाइन की आवाज और कंपन को नियंत्रित करना।
3.1.4.2 खुले क्षेत्रों में स्थापना (Open Fields)
- विधि: खुले क्षेत्रों में पवन टर्बाइन को अधिक ऊंचाई पर और बड़ी जगह पर स्थापित किया जाता है, ताकि हवा की गति अधिक से अधिक प्राप्त की जा सके।
- लाभ:
- अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता।
- बड़े क्षेत्र के लिए उपयुक्त।
- ध्यान देने योग्य बातें:
- स्थल और पवन की दिशा का सही मूल्यांकन करना आवश्यक है।
- निकटवर्ती क्षेत्रों में पवन टर्बाइनों का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
3.1.5 छोटे पवन ऊर्जा संयंत्रों में प्रयुक्त विद्युत जनरेटर (Electric Generators Used in Small Wind Power Plants)
छोटे पवन टर्बाइन में आमतौर पर निम्नलिखित प्रकार के जनरेटर उपयोग में लाए जाते हैं:
इंडक्शन जनरेटर (Induction Generators):
- यह सस्ती और विश्वसनीय होती है।
- पवन टर्बाइन की गति के साथ परिवर्तनशील होती है।
सिंक्रोनस जनरेटर (Synchronous Generators):
- यह अधिक स्थिर होता है और विशेष रूप से उच्च दक्षता वाले होते हैं।
- इन्हें मुख्य रूप से बड़े टर्बाइन में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन छोटे टर्बाइनों में भी उपयुक्त हो सकते हैं।
परमानेंट मैग्नेट सिंक्रोनस जनरेटर (Permanent Magnet Synchronous Generator - PMSG):
- यह उच्च दक्षता और कम रखरखाव के लिए प्रसिद्ध होता है।
- यह छोटे पवन टर्बाइनों में उपयोग होता है, क्योंकि इसमें गियरबॉक्स की आवश्यकता नहीं होती।
डाउबली-फेड इंडक्शन जनरेटर (DFIG):
- यह पवन टर्बाइन की गति के साथ ऊर्जा उत्पादन में लचीलापन प्रदान करता है।
- यह पवन ऊर्जा संयंत्रों में विशेष रूप से उच्च दक्षता के लिए इस्तेमाल होता है।
इस प्रकार, छोटे पवन टर्बाइनों के विभिन्न प्रकार और उनके घटक, कार्यविधि और स्थापना विधियाँ पवन ऊर्जा के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करती हैं, चाहे वह घरों की छतों पर हो या खुले क्षेत्रों में।
💥💥UNIT 4💥💥
4. बायोमास आधारित ऊर्जा संयंत्र (Biomass-Based Power Plants)
बायोमास ऊर्जा संयंत्र वह संयंत्र होते हैं जो जैविक पदार्थ (जैसे लकड़ी, कृषि अपशिष्ट, आदि) से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इन संयंत्रों में बायोमास को ईंधन के रूप में जलाया जाता है या उसे जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से ऊर्जा में बदला जाता है।
4.1 ठोस ईंधन के गुण (Properties of Solid Fuel for Biomass Power Plants)
बायोमास आधारित पावर प्लांट्स में विभिन्न प्रकार के ठोस ईंधन का उपयोग होता है, जो पौधों और कृषि अपशिष्ट से प्राप्त होते हैं। इन ठोस ईंधनों के गुण यह तय करते हैं कि वे ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए कितने उपयुक्त हैं।
4.1.1 बैगास (Bagasse)
- परिभाषा: बैगास गन्ने के रस का निष्कर्षण के बाद बचने वाला अपशिष्ट होता है।
- गुण:
- इसमें उच्च कैलोरी सामग्री होती है।
- इसमें जलाने पर कम राख उत्पन्न होती है।
- यह आसानी से उपलब्ध होता है, खासकर चीनी मिलों के पास।
- उपयोग: बैगास का उपयोग बायोमास पावर प्लांट्स में मुख्य रूप से भट्टी में जलाने के लिए किया जाता है।
4.1.2 लकड़ी के चिप्स (Wood Chips)
- परिभाषा: लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े, जो लकड़ी की छंटाई या अन्य प्रक्रिया से प्राप्त होते हैं।
- गुण:
- उच्च कैलोरी सामग्री
- नमी की कम प्रतिशतता, जो जलाने में दक्षता बढ़ाता है।
- जलाने में अपेक्षाकृत कम राख उत्पन्न होती है।
- उपयोग: लकड़ी के चिप्स का उपयोग बायोमास पावर प्लांट्स में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, खासकर ठंडे मौसम वाले क्षेत्रों में।
4.1.3 चावल की भूसी (Rice Husk)
- परिभाषा: चावल की भूसी, चावल के उत्पादन के दौरान निकलने वाला अपशिष्ट होता है।
- गुण:
- इसमें उच्च ऊष्मा मान (calorific value) होता है।
- इसमें उच्च राख होती है, लेकिन यह आसानी से उपलब्ध है।
- उपयोग: चावल की भूसी का उपयोग बायोमास पावर प्लांट्स में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, खासकर चावल उत्पादन वाले क्षेत्रों में।
4.1.4 नगरपालिका कचरा (Municipal Waste)
- परिभाषा: यह वह कचरा होता है जो शहरी क्षेत्रों से आता है, जैसे घरेलू कचरा, प्लास्टिक, कागज, आदि।
- गुण:
- इसमें मिश्रित सामग्री होती है, जिससे इसे जलाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- इसमें अपघटन योग्य पदार्थ होते हैं।
- कचरे का सही प्रबंधन और अलगाव आवश्यक है।
- उपयोग: नगरपालिका कचरे का उपयोग बायोमास पावर प्लांट्स में किया जा सकता है, खासकर थर्मल विधियों के माध्यम से।
4.2 तरल और गैसीय ईंधन के गुण (Properties of Liquid and Gaseous Fuel for Biomass Power Plants)
बायोमास आधारित ऊर्जा संयंत्रों में कुछ तरल और गैसीय ईंधनों का भी उपयोग होता है, जो जैविक पदार्थों से उत्पन्न होते हैं।
4.2.1 जट्रोफा (Jatropha)
- परिभाषा: जट्रोफा एक प्रकार का पौधा है, जिसका तेल बायोडीजल बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- गुण:
- उच्च तेल उत्पन्न क्षमता।
- बायोडीजल के रूप में परिवर्तित होने में सक्षम।
- इसे शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।
- उपयोग: जट्रोफा का तेल बायोडीजल के उत्पादन के लिए उपयोग होता है।
4.2.2 बायोडीजल (Bio-diesel)
- परिभाषा: यह जैविक तेल से प्राप्त एक प्रकार का जैविक डीजल होता है।
- गुण:
- प्रदूषण कम करने वाली ऊर्जा स्रोत।
- यह अन्य डीजल ईंधनों के मुकाबले ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल होता है।
- उपयोग: बायोडीजल का उपयोग परिवहन और बिजली उत्पादन में किया जाता है।
4.2.3 गोबर गैस (Gobar Gas)
- परिभाषा: यह जैविक अपशिष्ट, खासकर गोबर से उत्पन्न होने वाली मीथेन गैस होती है।
- गुण:
- नवीकरणीय और सस्ती ऊर्जा स्रोत।
- इसमें उच्च ऊर्जा घनत्व होता है।
- उपयोग: गोबर गैस का उपयोग बायोगैस संयंत्रों में और घरेलू गैस के रूप में किया जाता है।
4.3 बायो-केमिकल आधारित ऊर्जा संयंत्र का लेआउट (Layout of a Bio-Chemical Based Power Plant)
बायो-केमिकल आधारित पावर प्लांट में जैविक प्रक्रिया के माध्यम से ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, जैसे कि बायोगैस संयंत्र।
- मुख्य घटक:
- वेस्ट डिगेस्टर: जहां जैविक अपशिष्ट के अपघटन के द्वारा गैस का उत्पादन होता है।
- गैस कलेक्शन सिस्टम: जहां उत्पन्न गैस को एकत्र किया जाता है।
- जनरेटर: गैस को जलाकर ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए जनरेटर का उपयोग किया जाता है।
4.4 थर्मो-केमिकल आधारित ऊर्जा संयंत्र का लेआउट (Layout of a Thermo-Chemical Based Power Plant)
थर्मो-केमिकल ऊर्जा संयंत्र में जैविक पदार्थों को उच्च तापमान पर जलाकर या गैसीकरण करके ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, जैसे नगरपालिका कचरे से।
- मुख्य घटक:
- गैसीफायर: जहां कचरे को उच्च तापमान पर गैस में परिवर्तित किया जाता है।
- कूलिंग सिस्टम: गैस के ठंडा होने के बाद उसे ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- जनरेटर: गैस को जलाकर विद्युत उत्पादन किया जाता है।
4.5 एग्रो-केमिकल आधारित ऊर्जा संयंत्र का लेआउट (Layout of an Agro-Chemical Based Power Plant)
एग्रो-केमिकल आधारित संयंत्रों में बायोमास को रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से ऊर्जा में बदला जाता है, जैसे बायोडीजल संयंत्र।
- मुख्य घटक:
- तेल निष्कर्षण इकाई: जहां पौधों के तेल से बायोडीजल निकाला जाता है।
- प्रसंस्करण संयंत्र: बायोडीजल को शुद्ध और परिवर्तित किया जाता है।
- उत्पादन इकाई: बायोडीजल को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए उपयुक्त जनरेटर होते हैं।
इस प्रकार, बायोमास आधारित ऊर्जा संयंत्र विभिन्न प्रकार के जैविक अपशिष्ट और पदार्थों से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं, जो स्थायी और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण हैं।
💥💥UNIT 5💥💥
5. समुद्री ऊर्जा (Ocean Energy)
समुद्री ऊर्जा का उपयोग महासागरों, समुद्रों, और महासागरीय जल से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। समुद्री ऊर्जा में विभिन्न प्रकार की ऊर्जा शैलियाँ होती हैं, जैसे लहरों की ऊर्जा, ज्वार की ऊर्जा, समुद्र के तापमान अंतर से उत्पन्न ऊर्जा, आदि। समुद्रों से ऊर्जा निकालना एक पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित और स्थिर ऊर्जा स्रोत हो सकता है।
5.1 समुद्री ऊर्जा का परिचय (Introduction to Ocean Energy)
समुद्री ऊर्जा उन सभी प्रकार की ऊर्जा को संदर्भित करती है जो समुद्रों और महासागरों से प्राप्त होती हैं। महासागरों में ऊर्जा का विशाल भंडार होता है, जिसे वैज्ञानिक और इंजीनियर विभिन्न प्रकार की तकनीकों का उपयोग करके विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिए अध्ययन कर रहे हैं। समुद्री ऊर्जा का प्रयोग पर्यावरण के लिए लाभकारी हो सकता है, क्योंकि यह एक नवीकरणीय और प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा स्रोत है।
समुद्र में ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया जा सकता है:
- ज्वार की ऊर्जा (Tidal Energy): समुद्र के ज्वार और अपवाह के कारण उत्पन्न ऊर्जा।
- लहरों की ऊर्जा (Wave Energy): समुद्र की लहरों से उत्पन्न ऊर्जा।
- समुद्र की तापमान अंतर से ऊर्जा (Ocean Thermal Energy): समुद्र की सतही और गहरे पानी के बीच के तापमान अंतर से ऊर्जा प्राप्त करना।
समुद्री ऊर्जा को अपार संभावनाओं से भरा हुआ माना जाता है, और यह उर्जा संकट को कम करने में मददगार हो सकता है।
5.2 समुद्री ऊर्जा के प्रकार (Types of Ocean Energy)
समुद्री ऊर्जा को दो प्रमुख प्रकारों में बांटा जा सकता है: ओपन साइकिल और क्लोज़ड साइकिल। दोनों प्रणालियाँ समुद्र की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिए भिन्न तरीके अपनाती हैं।
5.2.1 ओपन साइकिल (Open Cycle)
- विधि:
ओपन साइकिल सिस्टम समुद्र के पानी को एक विशेष प्रकार के चैंबर में डालता है, जहाँ पानी के गर्मी या ठंडक का उपयोग किया जाता है। इसमें समुद्र के गर्म पानी को सीधे वाष्पीकरण प्रक्रिया से विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। - कार्यप्रणाली:
- इस प्रणाली में समुद्र के गर्म पानी से वाष्प उत्पन्न किया जाता है।
- उत्पन्न वाष्प को टरबाइन में भेजा जाता है, जिससे टरबाइन घूमता है और जनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- इसके बाद, वाष्प को ठंडा करके फिर से पानी के रूप में वापस भेजा जाता है।
- लाभ:
- यह प्रणाली सरल और कम लागत वाली हो सकती है।
- ताजे पानी के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है।
- नुकसान:
- इस प्रणाली के लिए समुद्र का पानी बहुत गर्म होना चाहिए, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मिलता है।
- इसकी दक्षता अपेक्षाकृत कम हो सकती है।
5.2.2 क्लोज़ड साइकिल (Closed Cycle)
- विधि:
क्लोज़ड साइकिल सिस्टम में समुद्र के पानी को एक प्रणाली में बंद किया जाता है, और एक विशेष रसायन या गैस का उपयोग करके इसे वाष्पीकरण के लिए प्रेरित किया जाता है। इस प्रणाली में समुद्र के पानी का सीधे वाष्पीकरण नहीं किया जाता। - कार्यप्रणाली:
- समुद्र का ठंडा पानी एक एंटरनल चक्र के माध्यम से उपयोग होता है।
- इसे एक रासायनिक गैस (जैसे अमोनिया) से जोड़ा जाता है। समुद्र के ठंडे पानी से गैस को ठंडा किया जाता है, जिससे गैस वाष्पीकरण करती है।
- फिर, इस वाष्प को टरबाइन में भेजा जाता है और विद्युत उत्पादन के लिए टरबाइन को घुमाया जाता है।
- लाभ:
- यह प्रणाली उच्च दक्षता वाली होती है।
- इसकी उपयोगिता उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में समान रूप से होती है।
- नुकसान:
- इसमें उच्च लागत और जटिल तकनीकी व्यवस्था होती है।
- इस प्रणाली को स्थापित करने के लिए अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार, समुद्री ऊर्जा के ओपन साइकिल और क्लोज़ड साइकिल दोनों प्रकार समुद्र की प्राकृतिक शक्तियों को विद्युत ऊर्जा में बदलने के विभिन्न तरीके प्रदान करते हैं, और प्रत्येक की अपनी विशिष्टताएँ और फायदे हैं। इन दोनों तकनीकों का उपयोग समुद्र से विद्युत उत्पादन के भविष्य में एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकता है।
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