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2. सिम्पल स्ट्रेसेस और स्ट्रेन्स (Simple Stresses and Strains)
2.1 कठोर, लचीला और प्लास्टिक शरीर (Rigid, Elastic and Plastic Bodies)
कठोर शरीर (Rigid Body):
ऐसा शरीर जो किसी बाहरी बल के द्वारा आकार या आकार में परिवर्तन नहीं करता है। इसे कोई भी बल लागू किया जाए, वह अपनी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं करता। उदाहरण: स्टील की एक मोटी चादर।लचीला शरीर (Elastic Body):
ऐसा शरीर जो बाहरी बल के हटने पर अपना मूल आकार और आकार वापस प्राप्त कर लेता है। इसका आकार बल के अनुपात में परिवर्तन होता है, और बल हटने पर वापस सामान्य हो जाता है।
उदाहरण: रबर का बैण्ड, लचीला स्टील।प्लास्टिक शरीर (Plastic Body):
ऐसा शरीर जो बाहरी बल लगाने पर आकार में स्थायी परिवर्तन कर लेता है और बल हटाने पर यह पूर्व स्थिति में वापस नहीं आता।
उदाहरण: सॉंड, मिट्टी।
2.2 लचीले शरीर का विरूपण (Deformation of Elastic Body under Various Forces)
जब एक लचीला शरीर पर बल लगाया जाता है, तो वह विरूपित (deformed) हो जाता है, लेकिन बल हटने पर यह वापस अपने मूल आकार में आ जाता है। विरूपण का प्रकार और मात्रा उस पर लगाए गए बल के प्रकार और आकार पर निर्भर करती है। मुख्य प्रकार के विरूपण:
लंबाई में परिवर्तन (Change in Length):
जब शरीर पर कोई एक्सटर्नल लोड (जैसे खिंचाव या संकुचन) लगाया जाता है, तो यह शरीर की लंबाई में बदलाव कर सकता है।आकार में परिवर्तन (Change in Shape):
जब बल लागू किया जाता है तो शरीर का आकार भी बदल सकता है, जैसे कि एक वर्ग के आकार का आयत में बदलना।
2.3 स्ट्रेस और स्ट्रेन के परिभाषाएँ (Definitions of Stress and Strain)
2.3.1 स्ट्रेस (Stress):
स्ट्रेस वह बल है जो एक इकाई क्षेत्रफल पर लागू होता है। इसे बल प्रति क्षेत्रफल (Force per Unit Area) के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसका समीकरण है:
जहां:
- = लागू बल (Force) (N)
- = क्षेत्रफल (Area) (m²)
स्ट्रेस के दो प्रकार होते हैं:
- तन्य स्ट्रेस (Tensile Stress): जब शरीर में खिंचाव के कारण बल लगता है।
- संपीडन स्ट्रेस (Compressive Stress): जब शरीर में संकुचन के कारण बल लगता है।
2.3.2 स्ट्रेन (Strain):
स्ट्रेन वह अनुपात है जो एक शरीर के आकार या लंबाई में परिवर्तन को उसके मूल आकार या लंबाई से करता है। इसे बिना इकाई के मापते हैं, क्योंकि यह एक अनुपात होता है। इसका समीकरण है:
जहां:
- = लंबाई में परिवर्तन (Change in Length)
- = प्रारंभिक लंबाई (Original Length)
2.3.3 लचीलापन (Elasticity):
लचीलापन वह गुण है जिसमें शरीर बल लगाने के बाद अपना आकार और आकार वापस प्राप्त कर लेता है। यह न्यूटन के तीसरे नियम पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक क्रिया का प्रतिक्रिया होती है। शरीर का लचीलापन जितना अधिक होता है, उतना वह अपनी मूल अवस्था में जल्दी लौटता है।
2.3.4 हुक्स का नियम (Hooke's Law):
हुक्स का नियम यह कहता है कि लचीला शरीर पर लगाया गया तनाव उस शरीर के आकार में परिवर्तन के अनुपात में होता है, जब तक कि तनाव शरीर के लचीलेपन की सीमा में हो।
जहां:
- = तनाव (Stress)
- = यंग्स माड्यूलस (Young's Modulus)
- = स्ट्रेन (Strain)
यह नियम केवल उस सीमा तक सही होता है जब तक शरीर अपनी लचीली सीमा में रहता है। जब यह सीमा पार कर जाता है, तो शरीर स्थायी रूप से बदल सकता है।
2.3.5 लचीला सीमा (Elastic Limit):
यह वह अधिकतम सीमा होती है जिसमें शरीर पर लागू किया गया बल उसे वापस उसकी मूल स्थिति में ला सकता है। यदि लोड इस सीमा से अधिक हो जाता है, तो शरीर स्थायी रूप से विकृत हो जाता है और पुनः अपनी स्थिति में नहीं लौटता।
2.3.6 यंग्स माड्यूलस (Modulus of Elasticity):
यंग्स माड्यूलस एक स्थिरांक है जो किसी पदार्थ की लचीलापन को मापता है। यह उस पदार्थ के तनाव और स्ट्रेन के अनुपात के रूप में व्यक्त होता है।
यह मापता है कि पदार्थ अपने आकार को कितना बदलने के लिए प्रतिरोध करता है। अधिक यंग्स माड्यूलस का मतलब है कि पदार्थ में कम विकृति होगी।
2.4 तनाव के प्रकार - सामान्य, प्रत्यक्ष, बेंडिंग और शियर (Types of Stresses - Normal, Direct, Bending and Shear)
सामान्य तनाव (Normal Stress):
यह वह तनाव होता है जो सीधे शरीर के क्रॉस-सेक्शन पर लागू होता है, और यह खिंचाव या संकुचन का कारण बनता है। इसे तन्य और संपीडन के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।प्रत्यक्ष तनाव (Direct Stress):
जब बल सीधे शरीर की लंबाई पर लागू होता है, तो उसे प्रत्यक्ष तनाव कहा जाता है।बेंडिंग तनाव (Bending Stress):
यह वह तनाव है जो बीम में बेंडिंग मोमेंट के कारण उत्पन्न होता है। बेंडिंग तनाव के कारण बीम के विभिन्न भागों में खिंचाव और संकुचन होता है।शियर तनाव (Shear Stress):
यह वह तनाव है जो शरीर के एक हिस्से को दूसरे हिस्से के सापेक्ष खिसकाने का प्रयास करता है। शियर तनाव को शियर फोर्स और क्रॉस-सेक्शनल क्षेत्रफल के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है।
2.5 तनाव की प्रकृति (Nature of Stresses)
तन्य तनाव (Tensile Stress):
जब शरीर के भीतर खिंचाव (stretching) होता है, तो उसे तन्य तनाव कहा जाता है।संपीडन तनाव (Compressive Stress):
जब शरीर के भीतर संकुचन (compression) होता है, तो उसे संपीडन तनाव कहा जाता है।
2.6 स्टील बार के लिए तनाव-स्ट्रेन वक्र (Stress-Strain Curve for Steel Bar under Tension)
जब किसी स्टील बार पर खिंचाव बल लागू किया जाता है, तो उसका तनाव-स्ट्रेन वक्र (Stress-Strain Curve) कुछ प्रमुख बिंदुओं को दिखाता है:
यील्ड पॉइंट (Yield Point):
यह वह बिंदु होता है जहां पर स्टील के बार में स्थायी विकृति (plastic deformation) शुरू होती है। यील्ड तनाव उस बिंदु पर होता है जहां स्ट्रेचिंग के बाद भी तनाव बढ़ता नहीं है।अल्टीमेट तनाव (Ultimate Stress):
यह वह बिंदु होता है जहां पर अधिकतम तनाव होता है और बाद में तनाव घटने लगता है।फ्रैक्चर पॉइंट (Fracture Point):
यह वह बिंदु होता है जहां स्टील का बार टूट जाता है।
2.7 शरीर के विरूपण के कारण (Deformation of Body Due to Axial Force)
जब कोई बल किसी शरीर पर लागू होता है, तो वह शरीर में लंबाई में परिवर्तन उत्पन्न करता है। इस परिवर्तन की गणना तनाव और स्ट्रेन के आधार पर की जाती है। यदि इस प्रकार का बल शरीर के एक बिंदु पर लागू किया जाता है, तो शरीर के अन्य भागों में कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
2.8 तापमान में बदलाव के कारण तनाव और विरूपण (Concept of Temperature Stresses and Strain)
तापमान में परिवर्तन के कारण किसी लचीले शरीर में विरूपण उत्पन्न हो सकता है। यदि तापमान में वृद्धि होती है, तो शरीर का आकार बढ़ता है, और यदि तापमान में कमी होती है, तो आकार कम होता है। इस प्रकार के विरूपण को तापीय तनाव कहा जाता है। यह तनाव किसी बाहरी बल के बिना उत्पन्न होता है और गणना के लिए थर्मल स्ट्रेन का उपयोग किया जाता है।
2.9 लंबवत और पार्श्वीय विरूपण (Longitudinal and Lateral Strain)
लंबवत विरूपण (Longitudinal Strain):
यह विरूपण उस दिशा में होता है जिसमें बल लगाया जाता है, जैसे किसी वस्तु की लंबाई में परिवर्तन।पार्श्वीय विरूपण (Lateral Strain):
यह विरूपण उस दिशा में होता है जो बल के अनुरूप नहीं होती, जैसे किसी वस्तु की चौड़ाई या ऊंचाई में परिवर्तन।
2.10 यंग्स माड्यूलस, मोड्यूलस ऑफ रिगिडिटी, पॉइसन अनुपात, बायएक्सियल और त्रि-आक्सियल तनाव, आयतनात्मक तनाव, वॉल्यूमेट्रिक स्ट्रेन, बल्क माड्यूलस (Introduction only)
यह बिंदु केवल अवधारणात्मक समझ के लिए है और इनकी पूरी गणना और परिभाषाएं अधिक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता हो सकती हैं।
2.11 यंग्स माड्यूलस, मोड्यूलस ऑफ रिगिडिटी और बल्क माड्यूलस के बीच संबंध (Relation Between Modulus of Elasticity, Modulus of Rigidity and Bulk Modulus - Without Derivation)
यहां, यंग्स माड्यूलस (E), मोड्यूलस ऑफ रिगिडिटी (G), और बल्क माड्यूलस (K) के बीच एक सामान्य संबंध होता है:
सारांश:
- स्ट्रेस और स्ट्रेन के सिद्धांतों को समझना किसी भी लचीले शरीर के विरूपण और बल के प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण है।
- हुक्स का नियम और यंग्स माड्यूलस तनाव और स्ट्रेन के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हैं।
- तापमान में बदलाव और लंबवत और पार्श्वीय विरूपण के कारण उत्पन्न होने वाले तनावों को भी समझना आवश्यक है।
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