Thermal Engineering 1 (ME 3005) all units notes in hindi

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Course Code : ME 3005
Course Title : THERMAL ENGINEERING - I


💥💥UNIT 1💥💥

1. ऊर्जा के स्रोत (Sources of Energy)

ऊर्जा हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह हमारे जीवन के विभिन्न कार्यों को संचालित करने के लिए आवश्यक है। ऊर्जा के मुख्य स्रोतों को सामान्यत: दो प्रकारों में बांटा जाता है:

  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Renewable Energy Sources)
  • अर्नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Non-Renewable Energy Sources)

1.1 ऊर्जा स्रोतों का संक्षिप्त विवरण और वर्गीकरण (Brief Description and Classification of Energy Sources)

ऊर्जा के स्रोत वे पदार्थ या प्रक्रियाएँ हैं, जो ऊर्जा प्रदान करते हैं। ऊर्जा के स्रोतों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

1. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Renewable Energy Sources):

ये ऊर्जा स्रोत प्राकृतिक रूप से फिर से उत्पन्न होते हैं और समाप्त नहीं होते हैं। उदाहरण:

  • सौर ऊर्जा (Solar Energy)
  • पवन ऊर्जा (Wind Energy)
  • बायोगैस (Biogas)
  • जैविक ईंधन (Biomass)

2. अर्नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Non-Renewable Energy Sources):

ये ऊर्जा स्रोत सीमित होते हैं और समय के साथ समाप्त हो सकते हैं। उदाहरण:

  • कोयला (Coal)
  • पेट्रोलियम (Petroleum)
  • प्राकृतिक गैस (Natural Gas)
  • परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy)

1.2 सौर ऊर्जा (Solar Energy)

सौर ऊर्जा वह ऊर्जा है, जो सूर्य से प्राप्त होती है। सूर्य की किरणों में अत्यधिक ऊर्जा होती है, जो सौर पैनलों या सौर थर्मल प्रणालियों के माध्यम से प्राप्त की जाती है।

सौर ऊर्जा के अनुप्रयोग (Applications):

  • सौर पैनल: सौर पैनलों का उपयोग बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
  • सौर तापीय ऊर्जा: घरों में गर्म पानी बनाने या ताप प्रदान करने के लिए सौर तापीय प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
  • सौर कुकिंग: सौर ऊर्जा से भोजन पकाने के लिए सौर कुकर का इस्तेमाल किया जाता है।

1.3 पवन ऊर्जा (Wind Energy)

पवन ऊर्जा वह ऊर्जा है, जो हवा के गति से प्राप्त होती है। जब हवा गति करती है, तो उसमें ऊर्जा होती है, जिसे पवन टरबाइन (Wind Turbine) के माध्यम से बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है।

पवन ऊर्जा के अनुप्रयोग (Applications):

  • पवन टरबाइन: पवन टरबाइन का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • पवन मिलें: कृषि कार्यों में पानी पंप करने के लिए पवन मिलों का उपयोग किया जाता है।

1.4 ज्वार ऊर्जा, महासागर तापीय ऊर्जा, भूगर्भीय ऊर्जा (Tidal Energy, Ocean Thermal Energy, Geothermal Energy)

ज्वार ऊर्जा (Tidal Energy): यह ऊर्जा समुद्र के ज्वार और अपतटीय लहरों की गति से उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा विशेषकर तटीय क्षेत्रों में उपयोगी है।

महासागर तापीय ऊर्जा (Ocean Thermal Energy): महासागर की ऊपरी सतह और गहरे पानी के बीच के तापमान अंतर से उत्पन्न ऊर्जा को महासागर तापीय ऊर्जा कहते हैं। इसे समुद्र में तापमान अंतर का लाभ उठाकर विद्युत उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है।

भूगर्भीय ऊर्जा (Geothermal Energy): यह ऊर्जा पृथ्वी की आंतरिक गर्मी से उत्पन्न होती है। जब गर्म पानी या वाष्प को पृथ्वी की सतह से बाहर निकाला जाता है, तो उसका उपयोग बिजली उत्पादन या हीटिंग के लिए किया जाता है।


1.5 बायोगैस, बायोमास, बायोडीजल (Biogas, Biomass, Bio-diesel)

बायोगैस (Biogas): यह गैस जैविक पदार्थों के विघटन से उत्पन्न होती है, जैसे कचरा, गोबर, आदि। बायोगैस का उपयोग ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

बायोमास (Biomass): यह वनस्पति या पशु अपशिष्ट से प्राप्त होती है, जिसे जलाकर ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। जैसे लकड़ी, फसल के अवशेष, आदि।

बायोडीजल (Bio-diesel): यह जैविक स्रोतों से उत्पन्न ईंधन है, जैसे पाम तेल या सोया तेल, जिसे डीजल इंजन में उपयोग किया जा सकता है।


1.6 जलविद्युत ऊर्जा (Hydraulic Energy), परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy)

जलविद्युत ऊर्जा (Hydraulic Energy): यह ऊर्जा जल की गति से उत्पन्न होती है। जलाशयों से गिरते पानी से पवन टरबाइन की तरह जनरेटर घुमाकर विद्युत उत्पन्न किया जाता है। उदाहरण: हाइड्रो पावर स्टेशन्स

परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy): यह ऊर्जा परमाणु विखंडन (nuclear fission) या संयोजन (fusion) से प्राप्त होती है। परमाणु ऊर्जा का उपयोग बड़ी मात्रा में विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। हालांकि, यह ऊर्जा पर्यावरण पर भारी प्रभाव डाल सकती है।


1.7 ईंधन सेल (Fuel Cell)

ईंधन सेल (Fuel Cell): ईंधन सेल एक प्रकार का विद्युत यंत्र है, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रासायनिक संयोजन से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करता है। यह एक बहुत ही स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है क्योंकि इसमें कोई प्रदूषण नहीं होता। ईंधन सेल का उपयोग वाहनों, जैसे हाइड्रोजन से चलने वाली कारों में किया जाता है।


निष्कर्ष: ऊर्जा के स्रोत हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं, और इनका सही उपयोग करके हम ऊर्जा संकट को कम कर सकते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाकर हम पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं।



💥💥UNIT 2💥💥

2. INTERNAL COMBUSTION ENGINES

Internal Combustion Engines (I.C. Engines) are engines in which the combustion of fuel takes place inside the engine. These engines are commonly used in vehicles, machines, and many industrial applications.


2.1 एयर स्टैंडर्ड सायकल विश्लेषण में की गई धारणाएँ (Assumptions Made in Air Standard Cycle Analysis)

जब हम I.C. इंजन के वायु मानक सायकल का विश्लेषण करते हैं, तो कुछ सामान्य धारणाएँ की जाती हैं:

  1. वायुमंडलीय वायु का उपयोग: वायुमंडलीय वायु को इनलेट के रूप में लिया जाता है।
  2. आंतरिक मिश्रण: ईंधन और वायु का मिश्रण पूरी तरह से आंतरिक रूप से होता है, कोई हानि या लीक नहीं होती।
  3. थर्मल और मैकेनिकल नुकसान नहीं: किसी भी प्रकार का गर्मी या यांत्रिक नुकसान नहीं माना जाता।
  4. इंजन की दीवारें आदर्श: इंजन की दीवारें आदर्श होती हैं और कोई ऊर्जा हानि नहीं होती।
  5. किसी भी प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं: संपीड़न और विस्फोटन में रासायनिक प्रतिक्रिया को अनदेखा किया जाता है।
  6. ईंधन का पूर्ण दहन: ईंधन का दहन पूरी तरह से होता है, यानी कोई अपशिष्ट गैस नहीं निकलती।

2.2 कार्नोट, ऑटो और डीजल सायकल का संक्षिप्त विवरण (Brief Description of Carnot, Otto, and Diesel Cycles)

1. कार्नोट सायकल (Carnot Cycle):

यह थर्मोडायनामिक सायकल है जिसमें दो आदर्श प्रक्रियाएँ होती हैं: गर्मी को उच्च तापमान स्रोत से लिया जाता है और ठंडी प्रक्रिया के माध्यम से छोड़ा जाता है। यह एक आदर्श सायकल है जो 100% कार्यक्षमता की ओर इशारा करता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह असंभव है।

2. ऑटो सायकल (Otto Cycle):

यह एक I.C. इंजन सायकल है जो पेट्रोल इंजन में उपयोग होता है। इसमें दो प्रक्रियाएँ होती हैं:

  • संपंक्ति (Compression): वायु-ईंधन मिश्रण का संपीड़न होता है।
  • विस्फोट (Ignition): उच्च दबाव और तापमान पर ईंधन का जलन होता है।

ऑटो सायकल में शॉट-ऑफ और विस्तार प्रक्रियाएँ भी होती हैं।

P-V और T-S आरेख:

  • P-V आरेख में, संपीड़न और विस्फोट प्रक्रियाएँ विशिष्ट होते हैं।
  • T-S आरेख में, ऊष्मा के प्रवाह को दर्शाया जाता है।

3. डीजल सायकल (Diesel Cycle):

यह I.C. इंजन में डीजल ईंधन का उपयोग करने वाला सायकल है। इसमें ईंधन का जलन संपीड़न प्रक्रिया द्वारा होता है, न कि स्पार्क प्लग के माध्यम से। इसमें:

  • संपंक्ति (Compression): हवा का संपीड़न होता है।
  • इंजेक्शन (Injection): उच्च दबाव पर ईंधन इंजेक्ट किया जाता है।
  • विस्फोट (Ignition): उच्च तापमान पर ईंधन जलता है।

2.3 आंतरिक और बाहरी दहन इंजन के बीच अंतर (Difference Between Internal and External Combustion Engines)

आंतरिक दहन इंजन (I.C. Engine)बाहरी दहन इंजन (E.C. Engine)
दहन इंजन के भीतर होता है।दहन इंजन के बाहर होता है।
ईंधन और वायु का मिश्रण इंजन में होता है।ईंधन जलाने के बाद गर्मी को इंजन में प्रवेश कराना पड़ता है।
उच्च कार्यकुशलता (Efficiency)।कम कार्यकुशलता।
हल्के और कॉम्पैक्ट होते हैं।भारी और जटिल होते हैं।

2.4 आंतरिक दहन इंजन के फायदे बाहरी दहन इंजन की तुलना में (Advantages of I.C. Engines Over External Combustion Engines)

  1. संगठन में आसान: I.C. इंजन छोटे और हल्के होते हैं, जो इन्हें वाहनों में उपयोग के लिए आदर्श बनाता है।
  2. उच्च कार्यक्षमता: I.C. इंजन का कार्यकुशलता E.C. इंजन से ज्यादा होती है।
  3. ज्यादा शक्ति: I.C. इंजन से अधिक शक्ति मिलती है, जिससे यह अधिक कार्यात्मक होता है।
  4. तेजी से प्रतिक्रिया: I.C. इंजन तुरंत प्रतिक्रिया करता है, जबकि E.C. इंजन को गर्म होने में समय लगता है।
  5. कम रख-रखाव: I.C. इंजन में रख-रखाव कम होता है और इनका कार्यकाल लंबा होता है।

2.5 I.C. इंजन का वर्गीकरण (Classification of I.C. Engines)

I.C. इंजन को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. ईंधन के प्रकार के आधार पर:

    • पेट्रोल इंजन (Spark Ignition Engine, S.I.)
    • डीजल इंजन (Compression Ignition Engine, C.I.)
  2. प्रक्रिया के आधार पर:

    • ऑटो सायकल इंजन (Otto Cycle Engine)
    • डीजल सायकल इंजन (Diesel Cycle Engine)
  3. स्ट्रोक के आधार पर:

    • चार स्ट्रोक इंजन (Four Stroke Engine)
    • दो स्ट्रोक इंजन (Two Stroke Engine)
  4. संरचना के आधार पर:

    • एकल सिलिंडर इंजन (Single Cylinder Engine)
    • बहु सिलिंडर इंजन (Multi Cylinder Engine)

2.6 I.C. इंजन का कार्य और संरचना का चित्र (Working with Neat Sketch of I.C. Engine Indicating Component Part and Function of Parts)

I.C. इंजन के मुख्य भाग:

  • सिलिंडर: दहन प्रक्रिया होती है।
  • पिस्टन: सिलिंडर में ऊपर-नीचे चलता है।
  • क्रैंकशाफ्ट: पिस्टन के गतियों को घूर्णन गति में बदलता है।
  • वाल्व: हवा और ईंधन मिश्रण को सिलिंडर में प्रवेश करता है और गैसों को बाहर निकालता है।
  • स्पार्क प्लग: पेट्रोल इंजन में ईंधन के मिश्रण को जलाने का कार्य करता है।

2.7 चार स्ट्रोक और दो स्ट्रोक पेट्रोल और डीजल इंजन का कार्य (Working of Four-Stroke and Two-Stroke Petrol and Diesel Engines)

चार स्ट्रोक इंजन:

चार स्ट्रोक इंजन में चार चरण होते हैं:

  1. इंटेक स्ट्रोक: वायु-ईंधन मिश्रण सिलिंडर में प्रवेश करता है।
  2. कंप्रेशन स्ट्रोक: मिश्रण को संपीड़ित किया जाता है।
  3. इग्निशन स्ट्रोक: मिश्रण जलाया जाता है और विस्फोट होता है।
  4. एग्जॉस्ट स्ट्रोक: जलने के बाद गैस बाहर निकलती है।

दो स्ट्रोक इंजन:

दो स्ट्रोक इंजन में हर रोटेशन में दहन होता है। इसमें दो प्रक्रियाएँ होती हैं:

  1. इंटेक और कंप्रेशन: दोनों एक साथ होते हैं।
  2. इग्निशन और एग्जॉस्ट: एक साथ होते हैं।

2.8 दो स्ट्रोक और चार स्ट्रोक इंजन का तुलनात्मक अध्ययन (Comparison of Two-Stroke and Four-Stroke Engines)

विशेषताएँदो स्ट्रोक इंजनचार स्ट्रोक इंजन
कार्यप्रणालीएक रोटेशन में दो स्ट्रोकदो रोटेशन में चार स्ट्रोक
शक्ति उत्पादनअधिक शक्तिकम शक्ति
ईंधन खपतअधिककम
निर्माणहल्का और सस्ताभारी और महंगा
वायु प्रदूषणअधिककम

2.9 C.I. और S.I. इंजन का तुलनात्मक अध्ययन (Comparison of C.I. and S.I. Engines)

विशेषताएँC.I. इंजन (Diesel)S.I. इंजन (Petrol)
दहन विधिसंपीड़न द्वारास्पार्क द्वारा
ईंधनडीजलपेट्रोल
दक्षताअधिककम
शोर और कंपनअधिककम
प्रारंभिक लागतउच्चकम

2.10 वाल्व टाइमिंग और पोर्ट टाइमिंग आरेख (Valve Timing and Port Timing Diagrams for Four Stroke and Two Stroke Engines)

वाल्व टाइमिंग: यह इंजन के वाल्वों की खोलने और बंद होने के समय का निर्धारण करता है। चार स्ट्रोक इंजन में, वाल्व टाइमिंग प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इसमें एक रोटेशन के बाद वाल्व काम करते हैं।

पोर्ट टाइमिंग: यह दो स्ट्रोक इंजन में उपयोग होता है, जिसमें सिलिंडर के पोर्टों के खोलने और बंद होने का समय तय किया जाता है।



💥💥UNIT 3💥💥

3. I.C. ENGINE SYSTEMS

I.C. इंजनों में विभिन्न प्रकार के सिस्टम होते हैं जो इंजन की कार्यक्षमता को बढ़ाने और उसे सुचारु रूप से चलाने में मदद करते हैं। इन सिस्टम्स का उद्देश्य इंजन के संचालन को बेहतर और अधिक कुशल बनाना है।


3.1 पेट्रोल इंजन का ईंधन प्रणाली (Fuel System of Petrol Engines)

पेट्रोल इंजन का ईंधन प्रणाली मुख्य रूप से निम्नलिखित हिस्सों में विभाजित होता है:

  1. ईंधन टैंक: पेट्रोल को संग्रहित करने के लिए टैंक।
  2. फ्यूल पंप: ईंधन को टैंक से इंजन तक पंप करने का कार्य करता है।
  3. फ्यूल फ़िल्टर: ईंधन में से अशुद्धियाँ निकालता है ताकि इंजन में अच्छे से जल सके।
  4. कार्ब्यूरिटर: यह पेट्रोल और हवा का मिश्रण बनाता है, जो इंजन में दहन के लिए उपयुक्त होता है।
  5. इंजेक्टर: इंजेक्टर एक निश्चित दबाव में पेट्रोल को सिलिंडर में इंजेक्ट करता है।

कार्यप्रणाली: पेट्रोल इंजन में कार्ब्यूरिटर से मिश्रण बनकर पेट्रोल सिलिंडर में जाता है, जहां इसे स्पार्क प्लग से जलाया जाता है।


3.2 डीजल इंजन का ईंधन प्रणाली (Fuel System of Diesel Engines)

डीजल इंजन का ईंधन प्रणाली पेट्रोल इंजन से थोड़ा अलग होता है:

  1. ईंधन टैंक: डीजल संग्रहित करने के लिए टैंक।
  2. फ्यूल पंप: ईंधन को टैंक से इंजेक्टर तक पंप करता है।
  3. फ्यूल फ़िल्टर: डीजल में से गंदगी और अशुद्धियाँ निकालने के लिए।
  4. इंजेक्टर: डीजल को उच्च दबाव में सिलिंडर में इंजेक्ट करता है।

कार्यप्रणाली: डीजल इंजन में, एयर का संपीड़न होता है और जैसे ही हवा का तापमान बढ़ता है, डीजल उच्च दबाव में इंजेक्ट किया जाता है, जो खुद-ब-खुद जलता है (Compression Ignition)।


3.3 कूलिंग सिस्टम (Cooling System)

I.C. इंजन में कूलिंग सिस्टम का उद्देश्य इंजन के तापमान को नियंत्रित रखना होता है। यदि इंजन अत्यधिक गर्म हो जाए तो यह उसकी कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।

कूलिंग सिस्टम के प्रकार:

  1. एयर कूलिंग: इसमें इंजन की सतह पर हवा का बहाव होता है, जो इंजन को ठंडा करता है। यह सिस्टम छोटे इंजन (जैसे मोटरसाइकिल) में आम है।
  2. वाटर कूलिंग: इसमें इंजन के अंदर पानी के रेडिएटर और पंप का उपयोग करके इंजन को ठंडा किया जाता है। यह सिस्टम बड़े इंजन में उपयोग होता है।

कार्यप्रणाली: वॉटर कूलिंग सिस्टम में पानी इंजन के चारों ओर से होकर गर्मी को सोखता है और फिर रेडिएटर से बाहर निकलता है, जहां वह ठंडा हो जाता है।


3.4 इग्निशन सिस्टम (Ignition Systems)

इग्निशन सिस्टम का कार्य ईंधन मिश्रण को जलाना है। यह पेट्रोल इंजन में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, जहां स्पार्क प्लग द्वारा मिश्रण को जलाया जाता है।

इग्निशन सिस्टम के प्रकार:

  1. मैगनेटो इग्निशन: इसमें एक छोटे से मैगनेट का उपयोग किया जाता है जो वोल्टेज उत्पन्न करता है।
  2. बattery ignition system: इसमें बैटरी के द्वारा स्पार्क प्लग को ऊर्जा प्रदान की जाती है। यह आधुनिक पेट्रोल इंजन में सामान्य है।

कार्यप्रणाली: स्पार्क प्लग बैटरी से जुड़ा होता है और यह इंजेक्टर के माध्यम से वायु-ईंधन मिश्रण को इग्नाइट करता है।


3.5 I.C. इंजनों में प्रयुक्त स्नेहन प्रणाली के प्रकार (Types of Lubricating Systems Used in I.C. Engines)

स्नेहन प्रणाली इंजन के विभिन्न हिस्सों में घर्षण को कम करने और उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए प्रयोग की जाती है।

स्नेहन प्रणाली के प्रकार:

  1. वेट स्नेहन (Wet Lubrication): इस प्रणाली में स्नेहक (ऑयल) इंजन के ब्लॉक के नीचे एक कंटेनर में रहता है। यह ऑयल पंप द्वारा इंजन के हिस्सों में पहुंचाया जाता है।
  2. ड्राई स्नेहन (Dry Lubrication): इसमें ऑयल का सेवन इंजन के एक खुले सिस्टम से होता है, जो एक अधिक नियंत्रित तरीके से काम करता है।

कार्यप्रणाली: स्नेहन सिस्टम इंजन के विभिन्न हिस्सों, जैसे पिस्टन, क्रैंकशाफ्ट, और वाल्व को चिकनाई प्रदान करता है, जिससे घर्षण कम होता है और इंजन की लाइफ बढ़ती है।


3.6 I.C. इंजन की गवर्निंग के प्रकार (Types of Governing of I.C. Engines)

गवर्निंग सिस्टम का उद्देश्य इंजन की गति को नियंत्रित करना है, ताकि इंजन की गति जरूरत से ज्यादा न हो।

गवर्निंग के प्रकार:

  1. स्पीड गवर्निंग (Speed Governing): इसमें इंजन की गति को नियंत्रित किया जाता है। यह आमतौर पर वाष्प इंजन या डीजल इंजन में उपयोग होता है।
  2. लोड गवर्निंग (Load Governing): यह इंजन को अधिक लोड से बचाता है और सुनिश्चित करता है कि इंजन सही लोड के तहत कार्य करे।

कार्यप्रणाली: गवर्निंग सिस्टम इंजन की गति को नियंत्रित करने के लिए थ्रॉटल वाल्व को नियंत्रित करता है। यह गति को स्थिर रखता है।


3.7 सुपरचार्जिंग का उद्देश्य (Objective of Supercharging)

सुपरचार्जिंग का उद्देश्य इंजन में अधिक हवा का प्रवाह बढ़ाना है, ताकि अधिक ईंधन का मिश्रण जलाया जा सके और इंजन की शक्ति को बढ़ाया जा सके।

सुपरचार्जिंग के लाभ:

  1. अधिक शक्ति: इंजन में अधिक हवा और ईंधन का मिश्रण जलने से अधिक शक्ति उत्पन्न होती है।
  2. इंजन की क्षमता में वृद्धि: यह इंजन की कार्यक्षमता को बढ़ाता है, जिससे इंजन कम आकार में अधिक शक्ति उत्पन्न कर सकता है।
  3. ऊंचे ऊंचाई पर कार्य करने की क्षमता: सुपरचार्जिंग इंजन को उच्च ऊंचाई पर भी अधिक शक्ति प्रदान करने में मदद करता है, जहां हवा की घनता कम होती है।

कार्यप्रणाली: सुपरचार्जर इंजन के एयर इनलेट को अधिक दबाव से हवा प्रदान करता है, जिससे अधिक वायु-ईंधन मिश्रण इंजन में प्रवेश करता है और इंजन अधिक शक्ति उत्पन्न करता है।


निष्कर्ष: I.C. इंजन के विभिन्न सिस्टम्स जैसे ईंधन प्रणाली, कूलिंग सिस्टम, इग्निशन सिस्टम, स्नेहन प्रणाली, गवर्निंग, और सुपरचार्जिंग सभी इंजन की कार्यक्षमता और दक्षता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन सिस्टम्स का उचित संचालन इंजन के जीवनकाल को बढ़ाता है और उसे अधिक शक्तिशाली बनाता है।



💥💥UNIT 4💥💥

4. PERFORMANCE OF I.C. ENGINES

I.C. इंजन के प्रदर्शन को सही तरीके से मापने और समझने के लिए विभिन्न पैरामीटर्स, परीक्षण और गणना की जाती हैं। यह इंजन के कार्यकुशलता, शक्ति उत्पादन और ईंधन खपत का मूल्यांकन करने में मदद करती है।


4.1 I.C. इंजन के प्रदर्शन पैरामीटर्स (Performance Parameters in IC Engine)

I.C. इंजन का प्रदर्शन विभिन्न मानकों के आधार पर मापा जाता है। इन मानकों में शामिल हैं:

  1. ब्रेक हार्स पावर (BHP): यह इंजन द्वारा आउटपुट शक्ति का माप है, जो पिस्टन और क्रैंकशाफ्ट के गति के कारण उत्पन्न होती है। इसे बाहरी रूप से मापते हैं।

    BHP=2πNT60BHP = \frac{2\pi NT}{60}

    जहां,

    • N = इंजन की गति (RPM)
    • T = क्रैंक शाफ्ट पर टॉर्क (N-m)
  2. इंडिकेटेड हार्स पावर (IHP): यह इंजन के अंदर उत्पन्न शक्ति का माप है, जो इंजन के पिस्टन में जलने वाली ऊर्जा से निकलती है।

  3. फ्री पॉवर (FP): यह उस शक्ति को कहते हैं, जो इंजन में बिना किसी बाहरी लोड के उत्पन्न होती है।

  4. थर्मल कार्यकुशलता (Thermal Efficiency): यह इंजन द्वारा प्राप्त शक्ति के मुकाबले उस शक्ति का अनुपात है, जिसे ईंधन में से प्राप्त किया जाता है। इसे इस प्रकार मापा जाता है:

    Thermal Efficiency=BHPInput Energy from Fuel×100\text{Thermal Efficiency} = \frac{BHP}{\text{Input Energy from Fuel}} \times 100
  5. Mechanical Efficiency: यह इंजन द्वारा उत्पन्न शुद्ध आउटपुट पावर (BHP) और IHP के बीच का अनुपात है।

  6. Specific Fuel Consumption (SFC): यह दर्शाता है कि इंजन को एक यूनिट शक्ति उत्पन्न करने के लिए कितनी ईंधन की आवश्यकता होती है।

    SFC=Fuel Consumption RatePower Output\text{SFC} = \frac{\text{Fuel Consumption Rate}}{\text{Power Output}}

4.2 प्रदर्शन परीक्षण (Performance Test)

I.C. इंजन के प्रदर्शन को मापने के लिए विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं, जैसे:

  1. लोड परीक्षण: इस परीक्षण में इंजन को विभिन्न लोड पर चलाया जाता है और उसकी शक्ति, ईंधन खपत और अन्य पैरामीटर्स को मापा जाता है।
  2. स्पीड परीक्षण: इंजन की गति बढ़ाई जाती है और प्रदर्शन की माप की जाती है।
  3. बेंच परीक्षण: यह परीक्षण स्थिर परिस्थितियों में इंजन का प्रदर्शन मापने के लिए किया जाता है।

4.3 मोर्स परीक्षण (Morse Test)

मोर्स परीक्षण का उपयोग इंजन की ब्रेक पावर और इंडिकेटेड पावर के बीच के अंतर को मापने के लिए किया जाता है। यह परीक्षण विशेष रूप से मल्टी-सिलिंडर इंजन पर किया जाता है।

कार्यप्रणाली:

  1. इंजन को एक लोड में चलाया जाता है, और हर सिलिंडर से निकलने वाली शक्ति की माप की जाती है।
  2. इंजन के पिस्टन के टॉर्क को मापने के लिए प्रत्येक सिलिंडर के लिए पावर मापी जाती है।

यह परीक्षण इंजन के व्यवहार को समझने में मदद करता है और यह बताता है कि कितनी शक्ति इंजन के प्रत्येक सिलिंडर से उत्पन्न हो रही है।


4.4 हीट बैलेंस शीट (Heat Balance Sheet)

हीट बैलेंस शीट इंजन में ऊर्जा के प्रवाह का लेखा-जोखा है, यह बताती है कि इंजन में कितनी ऊर्जा (हीट) ईंधन से उत्पन्न होती है और इसका उपयोग कहां होता है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख भाग होते हैं:

  1. ईंधन से उत्पन्न ऊर्जा: ईंधन में से कितनी ऊर्जा इंजन में प्रवेश करती है।
  2. आउटपुट पावर: इंजन द्वारा उत्पन्न शक्ति।
  3. हीट लॉस: इंजन के विभिन्न हिस्सों में गर्मी की हानि (जैसे, एक्जॉस्ट गैस, कूलिंग सिस्म और बैकवर्ड फ्लो)।
  4. फ्यूल कंजम्प्शन: इंजन के द्वारा उपयोग की गई ईंधन की मात्रा।

हीट बैलेंस का सूत्र:

Input Heat=Output Power+Heat Loss\text{Input Heat} = \text{Output Power} + \text{Heat Loss}

4.5 B.P., I.P. और F.P. का निर्धारण करने के तरीके (Methods of Determination of B.P., I.P. and F.P.)

  1. ब्रेक पावर (B.P.): यह इंजन द्वारा बाहरी कार्य में उत्पन्न की गई शक्ति को दर्शाता है। इसे एक टॉर्क मीटर या डाइनोमीटर का उपयोग करके मापा जाता है।

  2. इंडिकेटेड पावर (I.P.): यह इंजन के अंदर उत्पन्न शक्ति को दर्शाता है, जिसे मापने के लिए इंडिकेटेड पावर मीटर का उपयोग किया जाता है। इसे कंप्रेशन और विस्फोट के दौरान उत्पन्न शक्ति को जोड़कर मापा जाता है।

  3. फ्री पॉवर (F.P.): यह वह शक्ति है, जो इंजन के बिना किसी बाहरी लोड के काम करने से उत्पन्न होती है।

समीकरण:

B.P.=2πNT60\text{B.P.} = \frac{2 \pi NT}{60} I.P.=B.P.+Mechanical Losses\text{I.P.} = \text{B.P.} + \text{Mechanical Losses}
F.P.=B.P.Load Power\text{F.P.} = \text{B.P.} - \text{Load Power}

4.6 I.C. इंजन के प्रदर्शन पर सरल संख्यात्मक समस्याएँ (Simple Numerical Problems on Performance of I.C. Engines)

उदाहरण 1:

मान लीजिए, एक इंजन का क्रैंकशाफ्ट RPM 1500 है और टॉर्क 20 Nm है। तो ब्रेक पावर (B.P.) कितनी होगी?

समीकरण:

B.P.=2πNT60B.P. = \frac{2 \pi NT}{60}

जहां,

  • N = 1500 RPM
  • T = 20 Nm

समीकरण में मान डालें:

B.P.=2π×1500×2060=314.16 Watts या 0.314 kWB.P. = \frac{2 \pi \times 1500 \times 20}{60} = 314.16 \text{ Watts} \text{ या } 0.314 \text{ kW}

उदाहरण 2:

मान लीजिए कि एक इंजन की I.P. 10 kW है और उसमें 1 kW के यांत्रिक नुकसान होते हैं। तो ब्रेक पावर (B.P.) क्या होगी?

समीकरण:

B.P.=I.P.Mechanical LossesB.P. = I.P. - \text{Mechanical Losses}
B.P.=101=9 kWB.P. = 10 - 1 = 9 \text{ kW}

निष्कर्ष: I.C. इंजन के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न पैरामीटर्स और परीक्षणों का उपयोग किया जाता है। इन परीक्षणों और गणनाओं से इंजन की कार्यकुशलता, शक्ति, और ईंधन खपत को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।



💥💥UNIT 5💥💥

5. AIR COMPRESSORS

एयर कंप्रेसर एक यांत्रिक उपकरण है जिसका कार्य हवा को संकुचित करना है ताकि उसका दबाव बढ़ सके और उसे विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किया जा सके। यह कई उद्योगों में ऊर्जा स्रोत के रूप में और यांत्रिक कामकाजी प्रणालियों में उपयोग होता है।


5.1 एयर कंप्रेसर के कार्य (Functions of Air Compressor)

एयर कंप्रेसर का मुख्य कार्य हवा को संकुचित करना है, ताकि उसकी दबाव और घनता बढ़ाई जा सके। इसे आमतौर पर निम्नलिखित कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है:

  1. दबाव में वृद्धि: हवा को संकुचित करके उसका दबाव बढ़ाना।
  2. पावर जनरेशन: एयर कंप्रेसर का उपयोग पावर टूल्स, मशीनरी और उपकरणों में किया जाता है।
  3. ऑपरेटिंग मीडिया: हवा को संकुचित करके उसे औद्योगिक प्रक्रियाओं में काम करने के लिए लागू करना।
  4. कूलिंग और डिह्यूमिडिफिकेशन: संकुचित हवा का उपयोग विभिन्न उपकरणों को ठंडा करने या नमी हटाने के लिए किया जा सकता है।

5.2 संकुचित हवा के उपयोग (Uses of Compressed Air)

संकुचित हवा का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है:

  1. पावर टूल्स: जैसे पिस्टल ड्रिल, एयर रिवेटर्स, एयर ड्राइवेन टूल्स।
  2. पंपिंग: गैसों या तरल पदार्थों को पंप करने के लिए।
  3. सफाई: संकुचित हवा का उपयोग मशीनों, उपकरणों और अन्य भागों को साफ करने के लिए।
  4. मूल्यांकित उपकरणों में: जैसे एयर कंडीशनिंग, एयर ब्रेक सिस्टम आदि।
  5. उद्योग में: संकुचित हवा का उपयोग मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस में, जैसे की प्लास्टिक निर्माण, धातु प्रसंस्करण, आदि में।

5.3 एयर कंप्रेसर के प्रकार (Types of Air Compressors)

एयर कंप्रेसर के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो उनके निर्माण, कार्य प्रणाली और प्रदर्शन के अनुसार वर्गीकृत होते हैं। कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

  1. रिसीप्रोकेटिंग कंप्रेसर (Reciprocating Compressors): इसमें पिस्टन और सिलिंडर का उपयोग होता है। हवा को संकुचित करने के लिए पिस्टन ऊपर-नीचे हिलते हैं।
  2. रोटरी कंप्रेसर (Rotary Compressors): इसमें घूमते हुए पंखे या रोटर होते हैं जो हवा को संकुचित करते हैं।
  3. सेंट्रीफ्यूगल कंप्रेसर (Centrifugal Compressors): इसमें एक रोटर हवा को उच्च गति से घुमाता है और उसे संकुचित करता है।
  4. एक्सियल फ्लो कंप्रेसर (Axial Flow Compressors): इसमें हवा रोटर के अक्षीय दिशा में गुजरती है, जिससे उसकी गति और दबाव बढ़ता है।

5.4 सिंगल स्टेज रिसीप्रोकेटिंग एयर कंप्रेसर - इसका निर्माण और कार्य (Single Stage Reciprocating Air Compressor - Its Construction and Working with Line Diagram Using P-V Diagram)

निर्माण:
सिंगल स्टेज रिसीप्रोकेटिंग एयर कंप्रेसर में एक सिलिंडर और पिस्टन होते हैं, जो हवा को संकुचित करने का काम करते हैं। इसमें एक वॉल्व सिस्टम होता है, जो हवा को सिलिंडर में प्रवेश करने और बाहर जाने की अनुमति देता है।

कार्यप्रणाली:

  1. पिस्टन हवा को सिलिंडर के अंदर खींचता है (इंटेक प्रक्रिया)।
  2. जैसे ही पिस्टन ऊपर की ओर जाता है, हवा संकुचित होती है और उसके दबाव में वृद्धि होती है।
  3. संकुचित हवा एक वॉल्व के माध्यम से बाहर निकलती है (एक्सहॉस्ट प्रक्रिया)।
  4. यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

लाइन आरेख:


+---------------------------------+ | | | रिसीप्रोकेटिंग कंप्रेसर | | (पिस्टन, सिलिंडर, वॉल्व) | | | +---------------------------------+

P-V डायग्राम:

  • इस कंप्रेसर के लिए P-V (दबाव - वॉल्यूम) डायग्राम में एक समानांतर वृद्धि और गिरावट होती है, जो पिस्टन के काम करने के कारण उत्पन्न होती है। पहले वॉल्यूम बढ़ता है, और फिर दबाव बढ़ता है जब हवा संकुचित होती है।

5.5 मल्टी-स्टेज कंप्रेसर – सिंगल स्टेज कंप्रेसर की तुलना में इसके लाभ (Multi-Stage Compressors – Advantages Over Single Stage Compressors)

मल्टी-स्टेज कंप्रेसर में एक से अधिक सिलिंडर होते हैं, और हवा को कई चरणों में संकुचित किया जाता है। प्रत्येक चरण में, हवा का दबाव थोड़ा बढ़ाया जाता है।

लाभ:

  1. उच्च दबाव उत्पन्न करना: मल्टी-स्टेज कंप्रेसर अधिक दबाव उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि सिंगल स्टेज कंप्रेसर में यह सीमित होता है।
  2. कूलिंग: हवा को प्रत्येक चरण के बीच ठंडा किया जा सकता है, जिससे कंप्रेसर की कार्यक्षमता बढ़ती है और गर्मी के नुकसान को रोका जाता है।
  3. बेहतर दक्षता: मल्टी-स्टेज कंप्रेसर में कम ऊर्जा की खपत होती है क्योंकि प्रत्येक स्टेज में संकुचन कम होता है।

5.6 रोटरी कंप्रेसर (Rotary Compressors)

रोटरी कंप्रेसर में हवा को संकुचित करने के लिए एक घूमता हुआ रोटर (या पंखा) प्रयोग में लाया जाता है। यह एक निरंतर प्रक्रिया होती है, जिसमें हवा को संकुचित करके अधिक दबाव उत्पन्न किया जाता है।


5.6.1 सेंट्रीफ्यूगल कंप्रेसर (Centrifugal Compressor)

निर्माण और कार्य: सेंट्रीफ्यूगल कंप्रेसर में एक रोटर या पंखा होता है, जो हवा को उच्च गति से घुमाता है। हवा का प्रवाह रोटर से होकर घुमावदार रास्ते से निकलता है, जिससे उसका दबाव बढ़ जाता है।

कार्यप्रणाली:

  1. हवा को रोटर में खींचा जाता है।
  2. रोटर के घूमने से हवा उच्च गति से बाहर निकलती है, जिससे हवा का दबाव बढ़ता है।

उपयोग: यह कंप्रेसर बड़े औद्योगिक अनुप्रयोगों में जैसे गैस टरबाइन प्रणालियों में उपयोग होते हैं।


5.6.2 अक्षीय फ्लो कंप्रेसर (Axial Flow Compressor)

निर्माण और कार्य: अक्षीय फ्लो कंप्रेसर में रोटर के अक्षीय दिशा में हवा प्रवाहित होती है। इसमें कई रोटर्स और स्टेटर्स होते हैं, जो हवा के दबाव और गति को बढ़ाते हैं।

कार्यप्रणाली:

  1. हवा रोटर के अक्षीय दिशा में प्रवेश करती है।
  2. हवा को विभिन्न स्टेटर्स द्वारा संकुचित किया जाता है और फिर दबाव बढ़ाया जाता है।

उपयोग: यह कंप्रेसर आमतौर पर जेट इंजन में उपयोग किया जाता है।


5.6.3 वैन टाइप कंप्रेसर (Vane Type Compressors)

निर्माण और कार्य: वैन टाइप कंप्रेसर में एक रोटर होता है, जिस पर वैन (फिन्स) लगे होते हैं। वैन रोटर के घूमने पर हवा को संकुचित करते हैं। यह कंप्रेसर पिस्टन की तरह काम करता है, लेकिन इसकी प्रक्रिया निरंतर होती है।

कार्यप्रणाली:

  1. वैन रोटर के संपर्क में आने वाली हवा को संकुचित करती है।
  2. वैन की गति से हवा की दिशा और दबाव को नियंत्रित किया जाता है।

उपयोग: वैन टाइप कंप्रेसर छोटे औद्योगिक अनुप्रयोगों में उपयोग होते हैं, जैसे कि कार्बन कंप्रेसर और एयर कंडीशनिंग प्रणालियों में।


निष्कर्ष: एयर कंप्रेसर विभिन्न प्रकार के होते हैं और उनका उपयोग कई उद्योगों में हवा को संकुचित करके अधिक शक्ति उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। हर कंप्रेसर के प्रकार के अपने विशेष उपयोग और लाभ होते हैं, जैसे कि सेंट्रीफ्यूगल, अक्षीय फ्लो, और वैन टाइप कंप्रेसर। मल्टी-स्टेज कंप्रेसर सिंगल स्टेज कंप्रेसर की तुलना में अधिक दक्ष होते हैं।

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