UNIT 1: The Constitution in Hindi

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यूनिट 1: संविधान

यह यूनिट भारतीय संविधान के मूल पहलुओं, इसकी उत्पत्ति, संरचना, और व्याख्या पर केंद्रित है। इसमें संविधान बनाने का इतिहास, प्रस्थापना की भूमिका, मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों की व्याख्या और राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों का विवरण किया गया है।


1.1 संविधान का परिचय

संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है। यह राजनीतिक सिद्धांतों, सरकार की संरचना, नागरिकों के अधिकारों और राज्य के कर्तव्यों को परिभाषित करता है। भारतीय संविधान अपनी विशेषताओं के कारण अद्वितीय है, क्योंकि इसमें लिखित और अप्रत्यक्ष तत्वों का मिश्रण है, जो देश के प्रशासन को लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप बनाए रखता है।

  • उद्देश्य: संविधान सरकार के संचालन का ढांचा स्थापित करता है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है। यह सरकार के विभिन्न अंगों - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाए रखता है।
  • सुप्रीमेसि: संविधान सर्वोच्च है, इसका अर्थ है कि सभी कानून और सरकार के कार्यों को संविधान के अनुरूप होना चाहिए।
  • लिखित दस्तावेज़: भारतीय संविधान लिखित दस्तावेज़ है, जबकि ब्रिटिश संविधान अप्रत्यक्ष (unwritten) और परंपराओं पर आधारित है।

1.2 भारतीय संविधान के निर्माण का इतिहास

भारतीय संविधान स्वतंत्रता संग्राम के बाद अस्तित्व में आया। यह संविधान उस समय तैयार हुआ जब भारत ने 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की।

  • संविधान सभा: संविधान का निर्माण 1946 में संविधान सभा के गठन के साथ शुरू हुआ। डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में जाना जाता है। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन में संविधान तैयार किया, और इसे 26 नवम्बर 1949 को अपनाया गया। यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।
  • प्रमुख प्रभाव: भारतीय संविधान के निर्माण में विभिन्न देशों के संविधान का प्रभाव था, जैसे:
    • ब्रिटिश संविधान (संसदीय प्रणाली, कानून का शासन)
    • अमेरिकी संविधान (मौलिक अधिकार)
    • आयरिश संविधान (राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत)
    • कनाडाई संविधान (संघीय प्रणाली)

भारतीय संविधान को देश की विविधता, बहुभाषी, बहुधार्मिक समाज को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया।


1.3 प्रस्थापना और मूल संरचना, और इसकी व्याख्या

भारतीय संविधान की प्रस्थापना

प्रस्थापना संविधान का प्रारंभिक भाग है, जो संविधान की मूल भावना और उद्देश्यों को व्यक्त करता है।

  • प्रस्थापना का पाठ:
    • "हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए संकल्पित होकर, अपने सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व..."

प्रस्थापना के मुख्य तत्व:

  1. संप्रभु: भारत स्वतंत्र और किसी बाहरी नियंत्रण से मुक्त है।
  2. समाजवादी: सामाजिक और आर्थिक समानता की दिशा में कार्य करना।
  3. धर्मनिरपेक्ष: राज्य किसी भी धर्म को प्राथमिकता नहीं देता।
  4. लोकतांत्रिक: सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है।
  5. गणराज्य: राज्य का प्रमुख निर्वाचित होता है, यह किसी वंशानुगत राजशाही का हिस्सा नहीं है।
  6. न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व: यह प्रस्थापना संविधान के कार्य करने के सिद्धांतों को दर्शाती है।

मूल संरचना का सिद्धांत

मूल संरचना का सिद्धांत भारतीय संविधान में उन मूलभूत सिद्धांतों को इंगीत करता है, जिन्हें संविधान में संशोधन के बावजूद बदला नहीं जा सकता। यह सिद्धांत केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया था।

  • इसके अनुसार, संविधान के मूल संरचना को बदलने का प्रयास नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान के महत्वपूर्ण सिद्धांत जैसे कानून का शासन, धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्य अपरिवर्तित रहें।

1.4 मौलिक अधिकार और कर्तव्य और उनकी व्याख्या

मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के भाग III में दिए गए हैं, और ये प्रत्येक नागरिक को कुछ विशेष अधिकार प्रदान करते हैं। ये अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।

मौलिक अधिकारों के प्रकार:

  1. समानता का अधिकार (धारा 14-18): यह कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है और धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
    • उदाहरण: कानून के समक्ष समानता, अस्पृश्यता का उन्मूलन, भेदभाव का निषेध।
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (धारा 19-22): यह व्यक्तियों को स्वतंत्रता प्रदान करता है, जैसे विचार, अभिव्यक्ति, संप्रदाय, और आंदोलन की स्वतंत्रता।
    • उदाहरण: बोलने की स्वतंत्रता, शांति से इकट्ठा होने का अधिकार, गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ सुरक्षा।
  3. शोषण के खिलाफ अधिकार (धारा 23-24): यह मानव तस्करी, मजबूर श्रम और बाल श्रम को प्रतिबंधित करता है।
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (धारा 25-28): यह नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (धारा 29-30): यह अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, भाषा और लिपि के संरक्षण का अधिकार देता है।
  6. संविधानिक उपचार का अधिकार (धारा 32): यह नागरिकों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार देता है।

मौलिक कर्तव्य

मौलिक कर्तव्य संविधान के भाग IVA में उल्लिखित हैं और ये 42वीं संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से जोड़े गए थे। ये कर्तव्य नागरिकों को देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझाने के लिए हैं।

मौलिक कर्तव्यों की सूची (धारा 51A):

  1. संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना।
  2. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से बचना।
  3. भाईचारे और समानता की भावना को बढ़ावा देना।
  4. देश की समृद्ध विरासत को बनाए रखना।

मौलिक अधिकार न्यायालय में लागू किए जा सकते हैं, जबकि मौलिक कर्तव्य लागू नहीं होते हैं, यानी नागरिक इन कर्तव्यों का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं होते।


1.5 राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (DPSPs) संविधान के भाग IV में दिए गए हैं, जो राज्य को सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये सिद्धांत राज्य को नागरिकों के कल्याण के लिए नीतियाँ बनाने की दिशा में प्रेरित करते हैं।

  • उद्देश्य: ये सिद्धांत राज्य को एक न्यायपूर्ण और समृद्ध समाज बनाने के लिए दिशानिर्देश प्रदान करते हैं।
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के उदाहरण:
    1. पर्याप्त आजीविका के साधनों का अधिकार (धारा 39(a))।
    2. समान काम के लिए समान वेतन (धारा 39(d))।
    3. शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना (धारा 41)।
    4. बालकों और युवाओं की शोषण से रक्षा (धारा 39(e))।
    5. जीवन स्तर को बेहतर करना और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना (धारा 43)।

मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में अंतर

  • मौलिक अधिकार न्यायालय में लागू किए जा सकते हैं, और ये व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करते हैं।
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत न्यायालय में लागू नहीं होते, लेकिन ये सरकार को नीतियाँ बनाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान देश के लोकतंत्र और शासन का आधार है। यह सरकार के कार्य करने के सिद्धांत, नागरिकों के अधिकारों, और कानून बनाने के तरीके को निर्धारित करता है। संविधान की प्रस्थापना, मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को समझना भारतीय राजनीतिक और कानूनी प्रणाली को समझने के लिए आवश्यक है। ये सभी तत्व सुनिश्चित करते हैं कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बने, जहां न्याय और समानता की प्राथमिकता हो।

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