Columns, CE 3003 notes in Hindi, Mechanics of Materials notes in Hindi

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5. कॉलम्स (स्तंभ)

5.1 संपीडन सदस्य, छोटा और लंबा कॉलम, प्रभावी लंबाई, घेरा त्रिज्या, पतलापन अनुपात, कॉलम के अंत स्थिति की प्रकार, अक्षीय लोड वाले कॉलम का बकलिंग

संपीडन सदस्य:

संपीडन सदस्य वह संरचनात्मक तत्व होते हैं जिन पर मुख्य रूप से संपीडन बल (compressive force) लगाया जाता है। कॉलम संपीडन के उदाहरण होते हैं, जिन्हें उनके धुरी के साथ लोड के द्वारा संकुचित किया जाता है।

छोटा और लंबा कॉलम:

  • छोटा कॉलम: जब कॉलम की लंबाई उसकी क्रॉस-सेक्शनल डाइमेंशन्स की तुलना में छोटी होती है, तो उसे छोटा कॉलम माना जाता है। छोटे कॉलमों में सामग्री की ताकत महत्वपूर्ण होती है और ये सामान्यत: संपीडन से टूटते हैं, न कि बकलिंग से।
  • लंबा कॉलम: जब कॉलम की लंबाई उसकी क्रॉस-सेक्शनल डाइमेंशन्स की तुलना में लंबी होती है, तो उसे लंबा कॉलम माना जाता है। लंबे कॉलम बकलिंग के कारण टूटते हैं, न कि संपीडन के कारण।

प्रभावी लंबाई (Effective Length, LeL_e):

प्रभावी लंबाई वह लंबाई होती है जिसका उपयोग कॉलम के बकलिंग की गणना में किया जाता है, और यह कॉलम के दोनों छोर की स्थितियों (बाउंडरी कंडीशन्स) पर निर्भर करती है। प्रभावी लंबाई हमेशा कॉलम की वास्तविक लंबाई के समान नहीं होती।

घेरा त्रिज्या (Radius of Gyration, rr):

कॉलम का घेरा त्रिज्या यह दर्शाता है कि कॉलम के क्रॉस-सेक्शनल एरिया का वितरण किस तरह से हुआ है। यह निम्नलिखित सूत्र से निकाला जाता है:

r=IAr = \sqrt{\frac{I}{A}}

जहां:

  • II = कॉलम के क्रॉस-सेक्शन का संवेगाघात (Moment of Inertia)।
  • AA = कॉलम का क्रॉस-सेक्शनल क्षेत्रफल (Area)।

पतलापन अनुपात (Slenderness Ratio, λ\lambda):

पतलापन अनुपात यह कॉलम के लंबाई और इसके घेरा त्रिज्या का अनुपात है। यह कॉलम की बकलिंग के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है:

λ=Ler\lambda = \frac{L_e}{r}

जहां:

  • LeL_e = प्रभावी लंबाई।
  • rr = घेरा त्रिज्या।

पलटन अनुपात जितना बड़ा होगा, कॉलम उतना ही ज्यादा बकलिंग के लिए संवेदनशील होगा।

कॉलम के अंत स्थितियों के प्रकार:

कॉलम के बकलिंग व्यवहार का निर्भर करता है कि उसके दोनों छोर पर किस प्रकार की स्थितियां हैं। सामान्यत: चार प्रकार की स्थितियां होती हैं:

  1. दोनों छोर स्थिर: कॉलम के दोनों छोर पर पूरी तरह से स्थिरता (fixed) होती है, जिससे बकलिंग की रोकथाम होती है।
  2. एक छोर स्थिर, दूसरा छोर मुक्त: एक छोर पर स्थिरता होती है और दूसरे छोर पर मुक्तता होती है, जिससे बकलिंग ज्यादा होती है।
  3. दोनों छोर पिन (hinged): दोनों छोर पिन होते हैं, जिससे कॉलम घुम सकता है, लेकिन स्थानांतरित नहीं हो सकता। यह स्थिति बकलिंग के लिए मध्यम होती है।
  4. एक छोर पिन, दूसरा छोर स्थिर: एक छोर पिन होता है और दूसरा छोर स्थिर होता है, जिससे बकलिंग की स्थिति में कमी होती है।

अक्षीय लोड वाले कॉलम का बकलिंग:

जब कॉलम पर अक्षीय संपीडन बल लगाया जाता है, तो यदि बल एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है, तो कॉलम में बकलिंग हो सकता है। बकलिंग वह घटना है जिसमें कॉलम एक दिशा में लतराता है और इससे कॉलम की स्थिरता खतरे में पड़ जाती है।


5.2 यूरल का सिद्धांत, यूरल के सिद्धांत में की गई धारणाएँ और इसकी सीमाएँ, बकलिंग लोड की गणना में यूरल के समीकरण का उपयोग

यूरल का सिद्धांत:

यूरल का सिद्धांत लंबी कॉलम्स के बकलिंग व्यवहार को समझाता है। यह सिद्धांत यह कहता है कि कॉलम पर एक निश्चित बकलिंग लोड PcrP_{cr} तब उत्पन्न होता है जब कॉलम अपने प्रभावी लंबाई पर लतराता है। यूरल का बकलिंग लोड निम्नलिखित है:

Pcr=π2EI(Le)2P_{cr} = \frac{\pi^2 E I}{(L_e)^2}

जहां:

  • PcrP_{cr} = बकलिंग लोड (N)
  • EE = सामग्री का यंग्स माड्यूलस (Modulus of Elasticity)
  • II = कॉलम के क्रॉस-सेक्शन का संवेगाघात (Moment of Inertia)
  • LeL_e = प्रभावी लंबाई

यूरल के सिद्धांत में की गई धारणाएँ:

  1. कॉलम सीधा और समान क्रॉस-सेक्शनल होता है।
  2. कॉलम पर एक केंद्रीय अक्षीय लोड होता है।
  3. कॉलम की सामग्री होनोगेनेयस (समान) और इज़ोट्रॉपिक होती है।
  4. कॉलम की प्रारंभिक स्थिति पूरी तरह से सीधी होती है और बकलिंग केवल संकुचन बलों के कारण होता है।
  5. कॉलम के दोनों छोर पर एक निश्चित सीमा होती है (जैसे पिन या स्थिर)।

यूरल के सिद्धांत की सीमाएँ:

  1. यूरल का सिद्धांत केवल लंबी कॉलम्स के लिए लागू होता है (λ>100\lambda > 100)।
  2. यह सिद्धांत केवल इलास्टिक बक्लिंग को मानता है, और प्लास्टिक बक्लिंग या अन्य प्रकार के दोषों को नजरअंदाज करता है।
  3. सिद्धांत में यह माना जाता है कि कॉलम बिल्कुल सीधा है और किसी भी प्रारंभिक विकृति की अनदेखी करता है।
  4. यह सिद्धांत केवल तब लागू होता है जब कॉलम की सामग्री स्थिर और अपरिवर्तित होती है।

5.3 रैंकाइन का सूत्र और इसके द्वारा क्रिपलिंग लोड की गणना

रैंकाइन का सूत्र:

रैंकाइन का सूत्र छोटा और लंबा कॉलम दोनों के लिए क्रिपलिंग लोड (क्रिटिकल लोड) की अधिक व्यावहारिक गणना प्रदान करता है। यह बकलिंग और सामग्री की शक्ति दोनों के प्रभाव को जोड़ता है। रैंकाइन का सूत्र इस प्रकार है:

Pcr=A(1σcr+1σb)P_{cr} = \frac{A}{\left(\frac{1}{\sigma_{cr}} + \frac{1}{\sigma_{b}}\right)}

जहां:

  • PcrP_{cr} = क्रिपलिंग लोड (N)
  • AA = कॉलम का क्रॉस-सेक्शनल क्षेत्रफल
  • σcr\sigma_{cr} = सामग्री का संपीडन क्रिटिकल स्ट्रेंथ
  • σb\sigma_b = बकलिंग लोड से संबंधित तनाव

रैंकाइन का सूत्र का उपयोग:

रैंकाइन का सूत्र उन कॉलम्स के लिए उपयोग किया जाता है जो न तो बहुत छोटे होते हैं न ही बहुत लंबे। यह सूत्र बकलिंग और सामग्री की ताकत दोनों के प्रभाव को एक साथ जोड़ता है।


5.4 कार्यशील लोड/सुरक्षित लोड, डिज़ाइन लोड और सुरक्षा का गुणांक

कार्यशील लोड/सुरक्षित लोड:

कार्यशील लोड (या सुरक्षित लोड) वह अधिकतम लोड होता है जिसे कॉलम सामान्य सेवा में सहन कर सकता है। यह हमेशा क्रिपलिंग लोड से कम होता है, ताकि कॉलम में कोई भी विफलता न हो।

डिज़ाइन लोड:

डिज़ाइन लोड वह लोड है जिसे डिज़ाइन प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है। यह लोड सुरक्षा कारकों और लोड संयोजनों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाता है।

सुरक्षा का गुणांक (Factor of Safety, FoS):

सुरक्षा का गुणांक यह लोड और कॉलम की विफलता के बीच का अनुपात होता है। यह लोड और कॉलम के वास्तविक लोड के बीच एक सुरक्षा सीमा प्रदान करता है:

Factor of Safety (FoS)=Ultimate LoadWorking Load\text{Factor of Safety (FoS)} = \frac{\text{Ultimate Load}}{\text{Working Load}}

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