4. Minor and Micro Irrigation, Water Resources Engineering, CE 4005 Same as CV 4005

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Written by Garima Kanwar | Blog: Rajasthan Polytechnic


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Subject: Water Resources Engineering, CE 4005 Same as CV 4005

Branch: Civil Engineering 🏗️
Semester: 4th Semester 📚

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4. माइनर और माइक्रो सिंचाई 💧🌱

माइनर और माइक्रो सिंचाई प्रणालियाँ जल संसाधनों के कुशल उपयोग के लिए डिज़ाइन की जाती हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी है। ये प्रणालियाँ पानी के उपयोग को अधिक प्रभावी बनाती हैं और फसल की उपज को बढ़ाती हैं। आइए हम इन अवधारणाओं को विस्तार से समझते हैं।


4.1 पर्कोलेशन टैंक – आवश्यकता, स्थल चयन 🏞️💦

पर्कोलेशन टैंक छोटे, मानव निर्मित जलाशय होते हैं जो पानी को इकट्ठा करते हैं और उसे जमीन में रिसने के लिए छोड़ते हैं, जिससे भूमिगत जल स्तर बढ़ता है। ये विशेष रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उपयोगी होते हैं।

पर्कोलेशन टैंक की आवश्यकता:

  • भूमिगत जल का पुनर्भरण: इसका मुख्य उद्देश्य भूमिगत जल तालिका को पुनर्भारित करना है, जिससे सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ती है।
  • पानी का संग्रहण: यह मानसून के मौसम के दौरान पानी जमा करता है, जिसे शुष्क मौसम में उपयोग किया जा सकता है।
  • मृदा अपरदन को रोकना: यह जमा हुआ पानी सतही बहाव को कम करता है और मृदा अपरदन को रोकता है।

स्थल चयन:

पर्कोलेशन टैंक के लिए स्थल चयन निम्नलिखित मानदंडों पर आधारित होना चाहिए:

  1. टोपोग्राफी: क्षेत्र में प्राकृतिक ढलान होनी चाहिए ताकि पानी आसानी से टैंक में प्रवाहित हो सके।
  2. मृदा प्रकार: मृदा में अच्छे पर्कोलेशन गुण होने चाहिए, जैसे बालू या चिकनी मिट्टी, ताकि पानी अच्छी तरह से जमीन में रिस सके।
  3. कैचमेंट क्षेत्र: बड़ा कैचमेंट क्षेत्र अधिक पानी एकत्र कर सकता है।
  4. हाइड्रोलॉजी: पानी का स्रोत जैसे नदियाँ या झीलें पास में होना चाहिए।

4.2 लिफ्ट सिंचाई योजना 🚰🔧

लिफ्ट सिंचाई एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पानी को एक निचली जगह से उठाकर उच्च जगह पर पहुंचाया जाता है, इसमें पंप, पाइपलाइन और अन्य संरचनाओं का उपयोग किया जाता है। यह विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब पानी नदियों या नालों में उपलब्ध हो, लेकिन खेत उच्च जगहों पर स्थित हों।

4.2.1 घटक और उनके कार्य:

  • पंप: पंप पानी को निचली से ऊंची जगह पर उठाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • नहरें/पाइप: पानी को स्रोत से खेतों तक लाने के लिए नहरों या पाइपों का उपयोग किया जाता है।
  • वितरण प्रणाली: यह प्रणाली पानी को खेतों में समान रूप से वितरित करती है (जैसे पाइपलाइन या चैनल्स के माध्यम से)।
  • ऊर्जा स्रोत: पंप के लिए ऊर्जा का स्रोत बिजली, डीजल या नवीकरणीय स्रोत (जैसे सौर ऊर्जा) हो सकता है।

4.2.2 लेआउट:

  • लिफ्ट सिंचाई प्रणाली का लेआउट इस प्रकार होता है:
    1. पानी का स्रोत: एक नदी, नाला या जलाशय।
    2. पंप स्टेशन: पानी को उठाने के लिए पानी के स्रोत के पास स्थित पंप स्टेशन।
    3. पाइपलाइन या नहर नेटवर्क: पानी को खेतों तक लाने के लिए पाइपलाइन या नहरों का उपयोग।
    4. क्षेत्रीय वितरण प्रणाली: अंतिम वितरण प्रणाली, जो पाइपलाइन, स्प्रिंकलर या कूपों के माध्यम से पानी को फसलों तक पहुंचाती है।

4.3 ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई 🌾💧

ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई दो आधुनिक सिंचाई विधियाँ हैं जो पानी के नुकसान को न्यूनतम करने और जल दक्षता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।

4.3.1 ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई की आवश्यकता:

  • जल संरक्षण: दोनों विधियाँ पानी को सीधे पौधों की जड़ क्षेत्र में पहुँचाती हैं, जिससे वाष्पीकरण और बहाव कम होता है।
  • बेहतर फसल उपज: अधिक सटीक पानी वितरण से फसलें स्वस्थ रहती हैं और उपज में वृद्धि होती है।
  • विभिन्न मृदा प्रकारों के लिए उपयुक्त: ये प्रणालियाँ बालू, दोमट या चिकनी मृदाओं में उपयोग की जा सकती हैं, विशेष रूप से असमान वर्षा वाले क्षेत्रों में।

4.3.2 घटक और लेआउट:

  • ड्रिप सिंचाई:

    1. मुख्य पाइपलाइन और उपमुख्य पाइपलाइन: पानी को पौधों तक पहुंचाने के लिए पाइपलाइन का उपयोग।
    2. इमिटर्स: ये छोटे उपकरण होते हैं जो पानी को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाते हैं।
    3. फिल्टर: पानी को साफ करने के लिए ताकि उसमें कोई मलबा न हो।
    4. प्रेशर रेगुलेटर: प्रणाली में पानी का दबाव सामान्य बनाए रखने के लिए।

    लेआउट: पानी मुख्य पाइपलाइन से उपमुख्य पाइपलाइन के माध्यम से प्रवाहित होता है, फिर लैटरल लाइनों से होकर पौधों की जड़ों तक इमिटर्स द्वारा पहुंचता है।

  • स्प्रिंकलर सिंचाई:

    1. स्प्रिंकलर हेड्स: ये पानी को बूँदों के रूप में छिड़कते हैं, जैसे वर्षा।
    2. मुख्य और लैटरल पाइपलाइन: पानी को स्रोत से स्प्रिंकलर हेड्स तक ले जाने के लिए पाइपलाइन का उपयोग।
    3. पंप: स्प्रिंकलर के लिए आवश्यक दबाव प्रदान करता है।
    4. कंट्रोलर: सिंचाई के समय और अवधि को नियंत्रित करता है।

    लेआउट: पानी मुख्य पाइपलाइन से लैटरल पाइपलाइन के माध्यम से स्प्रिंकलर हेड्स तक जाता है, जो पूरे क्षेत्र में पानी वितरित करते हैं।


4.4 कुआं सिंचाई 💧🔨

कुआं सिंचाई एक प्रक्रिया है जिसमें कुएँ से पानी खींचकर फसलों को सिंचित किया जाता है। यह एक प्राचीन और सामान्य सिंचाई विधि है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां भूमिगत जल उपलब्ध है।

4.4.1 कुआँ के प्रकार और जलवृद्धि:

  • कुआँ के प्रकार:

    1. खुले कुएँ: बड़े, उथले कुएँ होते हैं, जिनसे पानी मैन्युअल रूप से या पंप द्वारा निकाला जाता है।
    2. ट्यूबवेल: गहरे कुएँ होते हैं, जो बोर के माध्यम से खोदे जाते हैं और इनसे पानी निकालने के लिए पंप लगे होते हैं।
    3. बोरवेल: ट्यूबवेल के समान, ये कुएँ गहरे होते हैं और पानी निकालने के लिए पंप लगे होते हैं।
  • कुआँ की जलवृद्धि: कुएँ की जलवृद्धि विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है:

    1. गहराई: गहरे कुएँ अधिक पानी प्रदान कर सकते हैं।
    2. आक्विफर के गुण: जल स्तर और जलवाहन क्षमता कुएँ की जलवृद्धि को प्रभावित करते हैं।
    3. पंपिंग दर: पानी निकालने की दर भी जलवृद्धि को प्रभावित करती है।

4.4.2 कुआं सिंचाई के फायदे और नुकसान:

  • फायदे:

    1. विश्वसनीय जल स्रोत: यह पानी की निरंतर आपूर्ति प्रदान करता है, विशेष रूप से शुष्क मौसम में।
    2. कम लागत: प्रारंभिक निवेश के बाद, संचालन लागत कम होती है।
    3. स्वतंत्रता: किसान वर्षा या सतही जल स्रोतों पर निर्भर नहीं होते।
  • नुकसान:

    1. अत्यधिक जल दोहन: कुएँ का अत्यधिक उपयोग जल स्तर को घटा सकता है।
    2. उच्च प्रारंभिक निवेश: कुएँ खोदने और पंप स्थापित करने की लागत अधिक हो सकती है।
    3. जल की गुणवत्ता: भूमिगत जल में लवण या अन्य अशुद्धियाँ हो सकती हैं।

सारांश 📝

  • माइनर और माइक्रो सिंचाई प्रणालियाँ जैसे पर्कोलेशन टैंक, लिफ्ट सिंचाई, ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई और कुआँ सिंचाई पानी के कुशल प्रबंधन में मदद करती हैं, खासकर जल-आभाव वाले क्षेत्रों में।
  • पर्कोलेशन टैंक भूमिगत जल को पुनर्भारित करते हैं और मृदा अपरदन को रोकते हैं।
  • लिफ्ट सिंचाई प्रणालियाँ पंपों के माध्यम से पानी को उच्च स्थानों तक पहुँचाती हैं।
  • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई पानी को सीधे पौधों की जड़ क्षेत्र में पहुँचाती हैं, जल बचाती हैं और फसल की उपज बढ़ाती हैं।
  • कुआँ सिंचाई भूमिगत जल का उपयोग करती है, लेकिन अत्यधिक उपयोग से जल स्रोत समाप्त हो सकते हैं।

इन सिंचाई प्रणालियों का उपयोग कृषि में जल का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।

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