5. Applications of Science and Technology for Disaster Management in Hindi

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5. आपदा प्रबंधन के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग (Applications of Science and Technology for Disaster Management)

विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे आपदाओं के प्रबंधन में सुधार हुआ है और आपदाओं के प्रभावों को कम करने में मदद मिली है। यहां हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के कुछ महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों को विस्तार से समझेंगे:


5.1. आपदा प्रबंधन में भू-आधिकारिक सूचना (Geo Informatics in Disaster Management)

भू-आधिकारिक सूचना प्रणाली (Geo-informatics) का उपयोग आपदा प्रबंधन में बहुत प्रभावी तरीके से किया जाता है। यह भू-स्थानिक तकनीकों जैसे रिमोट सेंसिंग (RS), भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS), और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) का समावेश करता है, जो आपदाओं के पूर्वानुमान, जोखिम आकलन, और राहत कार्यों में सहायता प्रदान करते हैं।

  • रिमोट सेंसिंग (RS): उपग्रह चित्रों और अन्य दूरस्थ सेंसिंग उपकरणों का उपयोग करके आपदा प्रभावित क्षेत्रों की निगरानी की जाती है। जैसे कि बाढ़, सूखा, या चक्रवात के बारे में रियल-टाइम जानकारी प्राप्त करना।
  • भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS): GIS का उपयोग नक्शे तैयार करने और आपदा जोखिम क्षेत्रों की पहचान करने के लिए किया जाता है। इसके माध्यम से, प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति और आपदा के प्रभाव का विश्लेषण किया जा सकता है।
  • ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS): GPS का उपयोग राहत टीमों द्वारा प्रभावित स्थानों तक त्वरित और सटीक मार्ग निर्धारण के लिए किया जाता है।

उदाहरण: 2004 के सुनामी के बाद, रिमोट सेंसिंग और GIS का उपयोग समुद्री लहरों के प्रभाव का आकलन करने में किया गया।


5.2. आपदा संचार प्रणाली (Disaster Communication System)

आपदा के दौरान, समय पर और प्रभावी संचार अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। आपदा संचार प्रणाली का उद्देश्य आपदा के दौरान लोगों और राहत टीमों के बीच त्वरित जानकारी का आदान-प्रदान करना है।

  • प्रारंभिक चेतावनी (Early Warning): आपदा आने से पहले चेतावनी प्रणाली के माध्यम से लोगों को आगाह करना। जैसे, भूकंप, चक्रवात, सुनामी, या बाढ़ की चेतावनी।
  • संचार उपकरण: आपदा के दौरान संचार के लिए विभिन्न उपकरणों जैसे सैटेलाइट फोन, रेडियो, और इंटरनेट का उपयोग किया जाता है।
  • संचार का प्रसार (Dissemination): चेतावनियाँ और आपदा जानकारी सरकारी एजेंसियों, मीडिया और स्थानीय समुदायों के माध्यम से प्रसारित की जाती हैं।

उदाहरण: चक्रवात आने से पहले भारत सरकार ने "भारत मौसम विज्ञान विभाग" (IMD) के माध्यम से प्रारंभिक चेतावनी दी थी और समुद्री तटों पर त्वरित उपाय किए थे।


5.3. भूमि उपयोग योजना और विकास नियम (Land Use Planning and Development Regulations)

आपदा जोखिम को कम करने के लिए भूमि उपयोग योजना (Land Use Planning) और निर्माण नियमों का पालन करना आवश्यक है। उचित भूमि उपयोग और विकास योजनाएँ प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकती हैं और मानव जीवन को सुरक्षित रख सकती हैं।

  • भूमि उपयोग योजना: यह सुनिश्चित करती है कि निर्माण कार्य किसी आपदा-संवेदनशील क्षेत्र में न हो, जैसे बाढ़ क्षेत्र, भूकंप क्षेत्र, या सुनामी क्षेत्र।
  • विकास नियम: विकास योजनाओं में निर्माण से जुड़े नियमों का पालन किया जाता है, जैसे सुरक्षित भवन निर्माण, जल निकासी की व्यवस्था, और पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करना।

उदाहरण: मुंबई जैसे तटीय शहरों में उच्च-ऊंचाई वाली इमारतों के निर्माण से पहले भूमि उपयोग और विकास नियमों का पालन किया जाता है ताकि बाढ़ और चक्रवात के जोखिम को कम किया जा सके।


5.4. आपदा सुरक्षा डिजाइन और निर्माण (Disaster Safe Designs and Constructions)

आपदा सुरक्षा डिजाइन और निर्माण तकनीकें आपदाओं के दौरान संरचनाओं को सुरक्षित बनाने के लिए विकसित की जाती हैं। इन डिजाइनों का उद्देश्य आपदा के प्रभावों को सहन करना और लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है।

  • भूकंपीय डिजाइन: भूकंप के प्रभाव को कम करने के लिए भवनों का डिज़ाइन किया जाता है। इसमें भवनों की मजबूत संरचना और लचीलेपन को ध्यान में रखा जाता है।
  • बाढ़ सुरक्षा निर्माण: बाढ़ के समय पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने और भवनों की सुरक्षा के लिए निर्माण तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
  • चक्रवात सुरक्षा: चक्रवात के समय हवाओं और वर्षा से भवनों की सुरक्षा के लिए कड़े निर्माण नियमों का पालन किया जाता है।

उदाहरण: जापान और कैलिफ़ोर्निया में भूकंपीय डिजाइन और निर्माण विधियाँ अपनाई जाती हैं, जो भूकंप के दौरान संरचनाओं को सुरक्षित रखती हैं।


5.5. आपदाओं का संरचनात्मक और गैर-structural समाधान (Structural and Non-Structural Mitigation of Disasters)

आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए दो प्रकार के उपाय किए जाते हैं: संरचनात्मक (Structural) और गैर-structural (Non-Structural) उपाय।

  1. संरचनात्मक उपाय:

    • मजबूत भवन निर्माण
    • बांध, डेम और जल निकासी प्रणालियाँ
    • समुद्र तटीय क्षेत्र में रेत के टीले और चट्टानों का निर्माण
    • भूकंपीय सुरक्षा के लिए मजबूती
  2. गैर-structural उपाय:

    • आपदा से बचाव के लिए चेतावनी प्रणालियाँ
    • सामुदायिक प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम
    • भूमि उपयोग योजना और नियम
    • भवन सुरक्षा के लिए नियम और मानक

उदाहरण: ओडिशा राज्य में चक्रवातों से बचाव के लिए तटीय क्षेत्रों में मजबूत तटीय सुरक्षा दीवारों का निर्माण किया गया है।


5.6. आपदा प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (S & T Institutions for Disaster Management in India)

भारत में कई संस्थान और संगठन आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं। ये संस्थान अनुसंधान, विकास और आपदा प्रबंधन प्रक्रियाओं में मदद करते हैं।

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD): यह विभाग मौसम की भविष्यवाणी, चक्रवातों और भूकंपों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): यह संगठन आपदा प्रबंधन में नीति और दिशा-निर्देश तैयार करता है।
  • राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NEC): भूकंपों के बारे में अनुसंधान और पूर्वानुमान के लिए काम करता है।

उदाहरण: IMD द्वारा चक्रवात और भारी बारिश के लिए प्रारंभिक चेतावनियाँ दी जाती हैं, ताकि समय रहते आपदा के प्रभावों से बचा जा सके।


निष्कर्ष

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों ने आपदा प्रबंधन को अधिक प्रभावी और व्यवस्थित बना दिया है। आपदाओं के पूर्वानुमान, त्वरित प्रतिक्रिया, राहत कार्य और पुनर्निर्माण के लिए नवीनतम तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।

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