2. Crop Water Requirement and Reservoir Planning , Water Resources Engineering, CE 4005 Same as CV 4005

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For 4th Semester Polytechnic CE Students
Written by Garima Kanwar | Blog: Rajasthan Polytechnic


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Subject: Water Resources Engineering, CE 4005 Same as CV 4005

Branch: Civil Engineering 🏗️
Semester: 4th Semester 📚

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2. फसल जल आवश्यकता और जलाशय योजना 🌾💧

फसलों के लिए जल उपयोग और जलाशय प्रणालियों की योजना जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन और कृषि उत्पादन को अधिकतम करने के लिए आवश्यक है। यह खंड फसल जल आवश्यकताओं, सिंचाई विधियों और जलाशयों की योजना से संबंधित प्रमुख अवधारणाओं को कवर करता है।


2.1 सिंचाई और इसका वर्गीकरण 💦🌱

सिंचाई भूमि में फसलों की वृद्धि में सहायता के लिए पानी का कृत्रिम रूप से आवेदन है। यह कृषि में एक महत्वपूर्ण प्रथा है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पर्याप्त वर्षा नहीं होती।

सिंचाई का वर्गीकरण:

  1. सतही सिंचाई: पानी सीधे मिट्टी की सतह पर लागू किया जाता है (जैसे, बाढ़, फरो, और बेसिन सिंचाई)।
  2. ड्रिप सिंचाई: पानी पाइपों या ट्यूबों के नेटवर्क के माध्यम से सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचता है।
  3. स्प्रिंकलर सिंचाई: पानी खेतों पर इस प्रकार छिड़का जाता है जैसे प्राकृतिक वर्षा होती है।
  4. सतही जल सिंचाई: पानी भूमिगत पाइपों या ट्यूबों के माध्यम से भूमि के नीचे लागू किया जाता है।

2.2 फसल जल आवश्यकता 🌾💧

फसल जल आवश्यकता वह पानी है जो किसी फसल को उसके विभिन्न वृद्धि चरणों के दौरान आवश्यकता होती है। यह फसल की उपज को अधिकतम करने और जल प्रबंधन को कुशल बनाने के लिए आवश्यक है।


2.2.1 फसल मौसम 🌱🌦️

फसल मौसम वे अवधि हैं जब विभिन्न फसलों को बढ़ने के लिए तापमान, वर्षा और अन्य जलवायु स्थितियों के आधार पर उगाया जाता है।

  • खरीफ (मॉनसून) मौसम: वर्षा के मौसम में उगने वाली फसलें (जून से सितंबर तक)।
  • रबी (सर्दी) मौसम: सर्दियों के मौसम में उगने वाली फसलें (अक्टूबर से मार्च तक)।
  • जायद (गर्मी) मौसम: गर्मी में उगने वाली फसलें (मार्च से जून तक)।

2.2.2 फसल अवधि 🌾🗓️

फसल अवधि वह समय है जब एक फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती है, रोपाई से लेकर फसल की कटाई तक। यह आमतौर पर दिनों में मापी जाती है और यह फसल के प्रकार पर निर्भर करती है।

  • उदाहरण: चावल की फसल को बढ़ने में 120-150 दिन लग सकते हैं, जबकि गेंहू की फसल को लगभग 100-120 दिन की आवश्यकता होती है।

2.2.3 बेस अवधि ⏳

बेस अवधि वह समय है जो सिंचाई प्रणाली में पानी का उपयोग होने के दौरान एक फसल के उगने के लिए आवश्यक होता है। यह समय पहली सिंचाई से लेकर अंतिम कटाई तक होता है। बेस अवधि पानी की आवश्यकता की योजना बनाने में मदद करती है।


2.2.4 ड्यूटी 🌾

ड्यूटी वह भूमि का क्षेत्रफल है जिसे एक निर्धारित समय अवधि में एक पानी की इकाई द्वारा सिंचित किया जा सकता है। यह पानी की दक्षता का माप है।

  • उदाहरण: यदि 1 घन मीटर पानी 2 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई करता है, तो ड्यूटी 2 हेक्टेयर प्रति घन मीटर होगी।

2.2.5 डेल्टा 🌊

डेल्टा वह कुल पानी की गहराई है जो किसी फसल को उसकी वृद्धि अवधि के दौरान आवश्यकता होती है। इसे आमतौर पर मिलीमीटर या सेंटीमीटर में व्यक्त किया जाता है और यह पूरी फसल अवधि के लिए पानी की कुल आवश्यकता को दर्शाता है।

  • उदाहरण: एक फसल को 400 मिमी डेल्टा की आवश्यकता हो सकती है, यानी पूरे फसल अवधि में उसे 400 मिमी पानी की आवश्यकता होगी।

2.2.6 CCA (कृषि योग्य कमांड क्षेत्र) 🌾🏞️

CCA वह कुल भूमि क्षेत्र है जिसे एक विशिष्ट सिंचाई प्रणाली के तहत प्रभावी रूप से सिंचाई किया जा सकता है। यह वह क्षेत्र है जहाँ उपलब्ध जल संसाधनों का उपयोग करके फसलें उगाई जा सकती हैं।

  • उदाहरण: यदि एक सिंचाई प्रणाली कुल 100 हेक्टेयर भूमि को पानी प्रदान कर सकती है, तो CCA 100 हेक्टेयर होगा।

2.2.7 GCA (कुल कमांड क्षेत्र) 🌍💧

GCA वह सम्पूर्ण भूमि क्षेत्र है जिसे सिंचाई प्रणाली द्वारा सेवा प्रदान की जाती है, जिसमें कृषि योग्य भूमि के अलावा अन्य गैर-कृषि क्षेत्र भी शामिल होते हैं।

  • उदाहरण: एक नहर प्रणाली 120 हेक्टेयर भूमि को सेवा प्रदान करती है, लेकिन केवल 100 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। इस प्रकार, GCA 120 हेक्टेयर और CCA 100 हेक्टेयर होगा।

2.2.8 सिंचाई की तीव्रता 🌧️💧

सिंचाई की तीव्रता उस सीमा को दर्शाती है, जिस पर पूरे फसल मौसम के दौरान सिंचाई पानी लागू किया जाता है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है, जो पानी की कुल आवश्यकता के अनुपात में लागू पानी को दर्शाता है।

  • सूत्र:

    सिंचाई की तीव्रता=सिंचित क्षेत्रकुल क्षेत्र×100\text{सिंचाई की तीव्रता} = \frac{\text{सिंचित क्षेत्र}}{\text{कुल क्षेत्र}} \times 100
  • उदाहरण: यदि 100 हेक्टेयर क्षेत्र में से 80 हेक्टेयर सिंचित किया गया है, तो सिंचाई की तीव्रता 80% होगी।


2.2.9 ड्यूटी को प्रभावित करने वाले कारक 🌿💧

ड्यूटी को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक:

  1. मिट्टी का प्रकार: बालूदार मिट्टी पानी को जल्दी अवशोषित करती है, जिससे सिंचाई अधिक बार करनी पड़ती है।
  2. फसल का प्रकार: विभिन्न फसलों की पानी की आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं।
  3. जलवायु: उच्च तापमान और वाष्पीकरण दर ड्यूटी को बढ़ाते हैं।
  4. पानी की गुणवत्ता: पानी में उच्च लवणता सिंचाई की प्रभावशीलता को घटा सकती है।
  5. सिंचाई प्रणाली: सिंचाई प्रणाली की दक्षता भी ड्यूटी को प्रभावित करती है।

2.2.10 जल आवश्यकता और नहर की क्षमता से संबंधित समस्याएँ 💧🔧

जल आवश्यकता और नहर क्षमता के प्रबंधन में कुछ सामान्य समस्याएँ हैं:

  1. जलभराव: जब मिट्टी में अधिक पानी हो जाता है, तो यह फसलों को नुकसान पहुँचा सकता है और मिट्टी की उर्वरता घटा सकता है।
  2. नहर की सिल्टिंग: समय के साथ नहरों में कीचड़ जमा हो जाता है, जिससे पानी परिवहन क्षमता घट जाती है।
  3. अपर्याप्त जल आपूर्ति: जल की आवश्यकता आपूर्ति से अधिक हो सकती है, जिससे सिंचाई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

2.3 सिंचाई जल के आवेदन की विधियाँ और इसका मूल्यांकन 💧🌾

जल को फसलों में लागू करने के विभिन्न तरीके हैं:

  1. बाढ़ सिंचाई: पानी को क्षेत्र में बाढ़ के रूप में लागू किया जाता है। यह चावल की खेती में सामान्य है।
  2. फरो सिंचाई: पानी को खेतों के किनारों पर बनी कूपों में लागू किया जाता है।
  3. ड्रिप सिंचाई: पानी को धीरे-धीरे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है, जिससे पानी का अपव्यय कम होता है।
  4. स्प्रिंकलर सिंचाई: पानी को खेतों पर इस प्रकार छिड़का जाता है जैसे प्राकृतिक वर्षा होती है।

मूल्यांकन: सिंचाई विधियों का उचित मूल्यांकन जल उपयोग को कुशल बनाता है और अपव्यय को कम करता है।


2.4 सिंचाई परियोजना के लिए सर्वेक्षण, डेटा संग्रह 🗺️📊

सिंचाई परियोजनाओं की योजना और कार्यान्वयन के लिए सर्वेक्षण और डेटा संग्रह आवश्यक हैं।

  • टोपोग्राफिक सर्वेक्षण: भूमि की ढलान, जल स्रोतों और उपयुक्त भूमि की पहचान करना।
  • हाइड्रोलॉजिकल डेटा: वर्षा, जल प्रवाह, भूमिगत जल स्तर आदि का संग्रह करना।
  • मिट्टी सर्वेक्षण: सिंचाई के लिए मिट्टी की बनावट, पारगम्यता और उर्वरता का विश्लेषण करना।

2.5 जलाशय की सिल्टिंग 🏞️💧

सिल्टिंग जलाशयों में मिट्टी के कणों का जमा होना है, जिससे उसकी भंडारण क्षमता घट जाती है।


2.5.1 सिल्टिंग की दर ⏳

सिल्टिंग की दर वह मात्रा है जो एक जलाशय में एक निश्चित अवधि में मिट्टी जमा होती है। यह दर भूमि की स्थिति, उपयोग और वर्षा की तीव्रता पर निर्भर करती है।

  • सूत्र:

    सिल्टिंग की दर=सिल्ट जमा होने की मात्रासमय अवधि\text{सिल्टिंग की दर} = \frac{\text{सिल्ट जमा होने की मात्रा}}{\text{समय अवधि}}
  • उदाहरण: यदि एक जलाशय में एक वर्ष में 1000 घन मीटर सिल्ट जमा होता है, तो सिल्टिंग की दर 1000 घन मीटर प्रति वर्ष होगी।


2.5.2 सिल्टिंग को प्रभावित करने वाले कारक और नियंत्रण उपाय 🛑🛠️

सिल्टिंग को प्रभावित करने वाले कारक:

  1. मिट्टी का क्षरण: उच्च क्षरण दरें जलाशय में अधिक सिल्ट लाती हैं।
  2. वर्षा की तीव्रता: भारी वर्षा मिट्टी के क्षरण को बढ़ाती है, जिससे सिल्टिंग बढ़ती है।
  3. वनस्पति की कमी: वनस्पति की कमी से मिट्टी आसानी से क्षरित होती है।

नियंत्रण उपाय:

  1. वनरोपण: जलाशय के जलग्रहण क्षेत्रों में वृक्षारोपण करना ताकि मिट्टी का क्षरण कम हो।
  2. मिट्टी संरक्षण: ढलान वाली भूमि में मिट्टी के क्षरण को कम करने के लिए उपाय अपनाना।
  3. सिल्ट ट्रैप: जलाशय में सिल्ट के जमाव को रोकने के लिए बैरियर या सिल्ट ट्रैप बनाए जाते हैं।

सारांश 🌾💧

फसल जल आवश्यकताओं और जलाशय योजना का कुशल प्रबंधन यह सुनिश्चित करता है कि जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग हो। फसल मौसम, फसल अवधि, ड्यूटी, डेल्टा, और सिंचाई के प्रभावी तरीके जैसे विचारों को समझना कृषि में पानी के उपयोग को अधिकतम करने में मदद करता है। जलाशयों में सिल्टिंग की समस्याओं का प्रबंधन और उपयुक्त सिंचाई विधियों का चयन कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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